राम रहीम प्रकरण से कितनी आंखें खुली

By: Aug 29th, 2017 12:05 am

(डा. शिल्पा जैन सुराना, वारंगल, तेलंगाना )

ढोंगी बाबा राम रहीम को मिली सजा ने फिर से साफ कर दिया है कि देर से ही सही, मगर अपराधी को सजा मिलकर ही रहती है। हमारे देश को आजादी मिले इतने वर्ष हो गए, पर ऐसे पाखंडियों से आजादी पाने में हम आज भी नाकाम दिखते हैं, जो अपनी इच्छाओं को पूरा करवाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। धार्मिक आस्थाओं का होना तो अपनी जगह सही हो सकता है, लेकिन धर्मांधता की बेडि़यां हमें कब तक जकड़े रखेंगी? धर्म के नाम पर कब तक ये पाखंडी अपनी रोटियां सेंककर समूचे संत समाज को बदनाम करते रहेंगे? आखिर क्यों लोग इतनी आसानी से इन जैसे लोगों के चंगुल में फंस जाते हैं? आसाराम, रामपाल और अब राम रहीम के समर्थकों ने जो हल्ला और उत्पात मचाया, उसके लिए इन बाबाओं ने ही षड्यंत्र रचे थे। समझ मेें नहीं आ रहा कि लोग क्या इतने अंधे हो गए हैं कि इतने सबक मिलने के बाद भी सही और गलत का फर्क समझ नहीं पा रहे? यहां गलती हमारी है, जो हम ऐसी शक्तियों को अपने ऊपर हावी होने देते हैं। कोई छोटी सी भी परेशानी हुई नहीं कि पहुंच जाते हैं ऐसे बाबाओं के पास। समस्या खत्म तो इसके लिए श्रेय देते हैं बाबाओं को, भले वह समस्या अपने ही प्रयासों से क्यों न सुलझाई हो। पढ़े-लिखे लोग भी विवेकशून्य हो गए प्रतीत होते हैं। आश्चर्य होता है देखकर कि क्यों वे अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं करते। इस प्रकरण के बाद भी अगर लोगों ने सबक नहीं सीखा, तो उनका कोई भी भला नहीं कर सकता।

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