राह देखा करेगा सदियों तक जमाना

By: Aug 27th, 2017 12:05 am

वह हमारे कलमी दोस्त थे, पिछल एक साल से बीमार चल रहे थे। आखिर 11 अगस्त को अलविदा कह गए। दयाराम सकलानी पत्रकार स्थित सरकाघाट तहसील मुख्यालय से मेरा गूढ़ परिचय सितंबर, 2008 में ही हुआ था, जबकि वह ‘दिव्य हिमाचल’ के जन्म से ही इसके साथ बतौर संवाददाता संबद्ध हो गए थे। सरकाघाट से बाहर नौकरी के कारण सरसरी तौर पर ही उनके बारे जानता था कि ‘दिव्य हिमाचल’ के लिए लिखते हैं। इस सदी का पहला दशक ‘दिव्य हिमाचल’ के संघर्ष और अपनी पहचान बनाने का दशक था।  शुरुआती दौर में हर पत्र-पत्रिका के लिए यह समय आता है। मैं ‘दिव्य हिमाचल’ का इसलिए पक्षधर था कि यह हिमाचल से प्रकाशित होने वाला पहला बड़ा समाचार पत्र था, जिसकी पूरी जड़ें पहाड़ की मिट्टी से जुड़ीं थीं। पक्षधर तो आज भी हूं इस खुशी के साथ कि इस अंधी प्रतियोगिता के दौर में ‘दिव्य हिमाचल’ ने स्वयं को स्थापित और सिद्ध किया है। मेरी रचनाएं कविता, कहानी, रिपोर्ट आलेख, निरंतर ‘दिव्य हिमाचल’ में प्रकाशित होते रहे हैं। सिलसिला आज भी जारी है। जब मैं सरकाघाट के समीप के स्कूल नवाही में ट्रांसफर होकर आया तो सकलानी से रोज मुलाकात होने लगी। वे सिर्फ मेरा नाम जानते थे कि कोई लेखक हैं, कहां से हैं और कौन हैं इतना परिचय नहीं था। सरकाघाट बस स्टैंड की पिछली गली में उनका एक छोटा सा दफ्तर था। वहीं बैठकर लिखते भी थे। मैं अकसर वहीं पर उनसे मिलता था। वे अपने लेख के विषय और शीर्षक पर मेरी राय मांग लेते थे। ‘साब एक नजर मारा भला’। मैं कहता सब चकाचक है, लिखते जाओ। निरंतर अभ्यास से भाषा पर पकड़ हो गई थी। अच्छा और धाराप्रवाह लिखने में महारत हो गई थी।

मुझे जोर देकर कहते रहते किसी अखबार से जुड़ जाओ। मैं टालता रहा। आज उनका दफ्तर बंद है। अब वहां कोई पर्यावरण पे्रमी, शब्दों का खिलाड़ी नहीं बैठेगा। वो गली उदास है और ‘दिव्य हिमाचल’ के पृष्ठ कुछ तलाश रहे हैं। मानो! सरकाघाट के शब्द प्रेमी उनके परिचित, मित्र मायूस हैं। आखिर कुदरत के आगे सभी नतमस्तक हैं। सकलानी साब, बहुत याद आते रहोगे। विनम्र श्रद्धांजलि ः

न हाथ थाम सके, न पकड़ सके दामन

बड़े करीब से उठकर चला गया कोई।

-हंसराज भारती, सरकाघाट, मंडी

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