लोक कहावतों में स्वास्थ्य

By: Aug 7th, 2017 12:05 am

लोक कहावतों के अनुसार लोग अपने व्यक्तिगत जीवन और स्वास्थ्य के प्रति सजग रहकर लंबे समय तक स्वस्थ और सुखमय जीवन बिताया करते थे। लोक कहावतों में स्वस्थ शरीर के लिए विशेष उल्लेख किया गया है, जिसे अपना कर आप भी लंबे समय तक स्वस्थ और सुखमय जीवन व्यतीत कर सकते हैं। स्वास्थ्य से संबंधित कुछ प्रचलित लोक कहावतों का यहां संकलन किया गया है…

हमारे समाज में प्राचीनकाल से ही लोक कहावतों को काफी महत्त्व दिया जाता रहा है। उस समय के लोग लोक कहावतों के अनुसार मास, मौसम और व्यवहार को अपनाकर स्वस्थ जीवन व्यतीत करते थे। लोक कहावतों के अनुसार लोग अपने व्यक्तिगत जीवन और स्वास्थ्य के प्रति सजग रहकर लंबे समय तक स्वस्थ और सुखमय जीवन बिताया करते थे। लोक कहावतों में स्वस्थ शरीर के लिए विशेष उल्लेख किया गया है, जिसे अपना कर आप भी लंबे समय तक स्वस्थ और सुखमय जीवन व्यतीत कर सकते हैं। स्वास्थ्य से संबंधित कुछ प्रचलित लोक कहावतों का यहां वर्णन किया जा रहा है, जिन्हें अपना कर आप भी लोक जीवन के साथ-साथ अपना जीवन सुखमय बना सकते हैं :

सावन हर्रे, भादो चीता, क्वांर मास गुड़ खाओ मीता। कार्तिक मूली अगहन तेल, पूस में दूध से मेल। माघ मास घी खिचड़ी खाय, फागुन उठके प्रातः नहाय। चैत्र मास नीम सेवती, वैशाखहि में खाय बासुमति। जेठ मास में दिन में सोय, ताकौ ज्वर अषाढ़ में रोय।

जो व्यक्ति सावन में हर्रे का चूर्ण, भादो में चित्रक का चूर्ण खाता है, क्वांर में गुड़ का सेवन करता है, कार्तिक में मूली, पूस में दूध पीता है, माघ में घी डालकर खिचड़ी खाता है, फागुन में सवेरे उठकर स्नान करता है, चैत्र में नीम की कोमल पत्तियों का सेवन करता है, वैशाख में बासमती चावल खाता है और जेठ में दिन में सोता है, उसे आषाढ़ में बुखार नहीं चढ़ता है।

प्रातःकाल खटिया से उठिके पीये तुरैत पानी, बांके घर में वैद्य न आवे।

सवेरे सोने के बाद उठकर जो व्यक्ति तुरंत पानी पीता है, उसके घर में वैद्य या डाक्टर की जरूरत नहीं।

चैते गुड़, बैशाखे तेल, जेठ महुआ, आषाढ़े बेर। सावन दुदुआ, भादो दही, क्वांर करेला, कार्तिक माही, घाघ भड्डरी सांची कही मर है ना तो पर है सही।

चैत में गुड़, बैशाख में तेल, जेठ में महुआ तथा आषाढ़ में बेर खाने वाला, सावन में दूध पीने वाला, भादो में दही, क्वांर में करेला एवं कार्तिक में मट्ठा खाने वाला शीघ्र मर जाता है। यदि मरे नहीं तो भयंकर बीमार पड़ जाता है। लोक कहावतों में इस बात का भी वर्णन किया गया है कि हमें किस मौसम में किस प्रकार का भोजन करना चाहिए और किस प्रकार का भोजन नहीं करना चाहिए। यह भी उल्लेख है कि किस मौसम में कितनी बार भोजन करना चाहिए, जिससे हमारा शरीर स्वस्थ और निरोग बना रहे।

स्यावन प्यालू जब तक कीजै, भादो में फिर नाम न लीजै। क्वांर मास में दोनों पाख प्यारे देह जुगति से राख। जब तक लेड दिवालिया बारि, तब तक खइयो बिरिया चारि।

सावन में दिन में एक बार भोजन करना चाहिए। भादो में शाम को कभी भोजन नहीं करना चाहिए। क्वांर (आश्विन) में दोनों समय भोजन करें, लेकिन कम खाएं और शरीर पर विशेष ध्यान दें। जब तक कार्तिक में दीपावली बीत जाए तब दिन में चार बार भोजन करने से कोई हानि नहीं है। हमारे स्वास्थ्य के लिए बासी भोजन करना नुकसानदायक है। इस लोकोक्ति में इस विषय में कहा गया है :

साधु बै दासी, चारे बै खांसी, प्रेम बिनासै हांसी। होय उनकी बुद्धि बिनासै, खाय जो रोटी बासी।

जिस प्रकार साधु को वासना, चोर को खांसी और प्रेम को हंसी नष्ट कर देती है, उसी प्रकार बासी रोटी खाने से बुद्धि नष्ट हो जाती है। यूं तो सोना हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है, लेकिन मौसम और समय को ध्यान में रखकर सोना ही हमारी सेहत के लिए हितकर माना गया है :

आषाढ़ माह जो दिन में सोय, ओकर सिर सावन में रोय

आषाढ़ में दिन में सोना हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है। आषाढ़ में दिन में सोने से सावन में सिर में पीड़ा होती है।

चैत्र चना, वैशाखे बेल, जेठ शयन अषाढ़े खेल।

चैत में चना, वैशाख में बेल खाने तथा जेठ की दोपहरी में सोने एवं आषाढ़ में खेलकूद करने से शरीर स्वस्थ और निरोग रहता है। आप स्वास्थ्य से संबंधित इन लोक कहावतों को अपनी दिनचर्या में शामिल कर न केवल दीर्घ जीवन जी सकते हैं, बल्कि अपने शरीर को स्वस्थ और निरोग बनाए रख सकते हैं।

-पुष्पेश कुमार

विनीता भवन, निकट-बैंक आफ इंडिया, काजीचक, बाढ़-803213 (बिहार)

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