संकल्प करेंगे और करके रहेंगे

By: Aug 11th, 2017 12:02 am

भारत छोड़ो आंदोलन की याद में संसद में विशेष चर्चा का निष्कर्ष यह रहा कि वह पीएम मोदी के संकल्प और सोनिया गांधी की नफरतवादी भयातुर सियासत में बंट कर रह गया। राज्यसभा में तृणमूल कांगे्रस के एक सांसद ने भाजपा भारत छोड़ो के नारे के साथ एक और राजनीति का आगाज किया। 1942 के क्रांति दिवस का बुनियादी मकसद ही पिटकर रह गया। भारत छोड़ो आंदोलन को सही मायनों में न तो याद किया जा सका और न ही उसकी प्रासंगिकता स्थापित हो सकी। अलबत्ता पीएम मोदी ने संसद के जरिए 125 करोड़ के राष्ट्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपिता गांधी के मूलमंत्र करो या मरो को नई शाब्दिक व्याख्या दी और देश को एक संकल्पवादी नारा दिया। करेंगे और करके रहेंगे। इस संकल्प में खोखले आश्वासन नहीं हैं, बल्कि एक मकसद को पूरा करने की प्रतिबद्धता है। प्रधानमंत्री ने संकल्प लिया है-‘हम भ्रष्टाचार दूर करेंगे और करके रहेंगे। गरीबों को अधिकार दिलाएंगे और दिलाकर रहेंगे। युवाओं को स्वरोजगार के मौके देंगे और देकर रहेंगे। कुपोषण की समस्या खत्म करेंगे और करके रहेंगे। महिलाओं की बेडि़यां काटेंगे और काटकर रहेंगे। पीएम मोदी ने गरीबी, गंदगी, बीमारी, शोषण से लेकर भ्रष्टाचार तक खत्म करने का संकल्प लिया है। बेशक यह संकल्प किसी दल या सरकार का नहीं, बल्कि 125 करोड़ देशवासियों का होना चाहिए, लेकिन कांगे्रस अध्यक्ष सोनिया गांधी को इस विशेष अवसर पर भी देश में भय, अंधकार, विभाजन ही याद आए। उन्होंने कहा कि देश में नफरत और विभाजन की राजनीति के बादल मंडराए हुए हैं। सामाजिक, लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी मूल्य खतरे में पड़ते जा रहे हैं। बहस की गुंजाइश कम हो गई है। ऐसा एहसास होता है मानो देश में अंधकार छाने लगा हो, लिहाजा आजादी को सुरक्षित रखने के मद्देनजर हर दमनकारी शक्ति के खिलाफ संघर्ष करना होगा। दरअसल सोनिया गांधी समेत विपक्ष का हरेक नेता अकसर ही ऐसे जुमलों और संघ-भाजपा विरोधी शब्दों का इस्तेमाल करते रहे हैं। फिर संसद के भीतर ऐसे ऐतिहासिक, राष्ट्रीय और क्रांतिकारी दिवस के आयोजन का मतलब क्या था? 1942 की अगस्त क्रांति में असंख्य छात्रों, किसानों और मजदूरों ने व्यापक तौर पर हिस्सेदारी निभाई थी। संसद के आयोजन के दौरान याद करना चाहिए था कि कितने क्रांतिकारी शहीद हुए, कितनों ने ब्रिटिश सत्ता की चूलें हिला दी थीं, उस आंदोलन में अहिंसा के साथ-साथ हिंसा भी खूब हुई। किसान दिन में खेती करते थे और दिन ढलने के बाद क्रांति की रेस में शामिल हो जाते थे। याद करना चाहिए था कि किन शहरों और तालुकाओं में भारतीयों ने ब्रिटिश कब्जे ध्वस्त करके अपनी सत्ताएं कायम की थीं। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ महात्मा गांधी का आह्वान था, जिसके लिए देश के तमाम हिंदू और मुसलमान औसत हिंदोस्तानी के तौर पर लड़े, लेकिन सोनिया गांधी ने एक बार फिर आरएसएस को निशाना बनाया कि ऐसे संगठनों ने अगस्त क्रांति का विरोध किया। सोनिया समेत कांगे्रसियों और विपक्षियों को इतिहास का अध्ययन करना चाहिए। तब सच सामने आएगा कि सरसंघ चालक हैडगेवार और संघ के प्रचारकों ने हजारों क्रांतिकारियों के लिए क्या भूमिका निभाई थी और उन्हें किस तरह लामबंद किया था? गाली देने और कोसने की एक पुरानी परंपरा है, जिसकी लीक पीटी जा रही है। दरअसल संसद में विशेष आयोजन का मकसद यह था कि 1942 की क्रांति को याद किया जाए और उसकी तर्ज पर 2017-22 के दौरान की चुनौतियों पर विमर्श कर नए संकल्प, नए रोड मैप तय किए जाएं, लेकिन दुर्भाग्य है कि ऐसा नहीं हो सका। गांधी को भी एक शब्द और प्रसंग के तौर पर याद किया गया। इस मौके पर ममता बनर्जी के भाजपा भारत छोड़ो आह्वान के मायने क्या हैं? देश के 18 राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा क्या भारतीय नहीं है? क्या वह सांप्रदायिक बनाम धर्मनिरपेक्ष की राजनीति को चुनौती दे रही है? क्या भाजपा के कारण ही विपक्षी एकता का पाखंड और दिवालियापन उजागर होता रहा है? यह ऐसा क्रांतिकारी मौका था कि सभी देशवासियों का समवेत स्वर गूंजना चाहिए था, लेकिन क्या करें? अब भी ब्रिटिश राज के अवशेष एक खास तबके पर राज कर रहे हैं।

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