समसामयिकी

By: Aug 23rd, 2017 12:07 am

तीन तलाक पर ऐतिहासिक फैसला

समसामयिकीउच्चतम न्यायालय ने पिछले कल ऐतिहासिक फैसले में तलाक-ए-बिदअत (लगातार तीन बार तलाक कहने की प्रथा) को असंवैधानिक तथा गैर इस्लामिक करार देते हुए निरस्त कर दिया। मुख्य न्यायाधीश जेएस केहर, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ ने बहुमत के फैसले के आधार पर तलाक-ए-बिदअत को असंवैधानिक और गैर-इस्लामिक करार दिया। संविधान पीठ ने अपने 395 पृष्ठ के फैसले में लिखा है, ‘इस मामले में न्यायाधीशों के अलग-अलग मंतव्यों को ध्यान में रखते हुए तलाक-ए-बिदअत अथवा तीन तलाक की प्रथा को (3 र् 2 के ) बहुमत के फैसले के आधार पर निरस्त किया जाता है। मुख्य न्यायधीश जेएस खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर ने कहा कि यह1400 साल पुरानी प्रथा और मुस्लिम धर्म का अभिन्न हिस्सा है और इसे कोर्ट नहीं रद्द कर सकता । जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएएफ नारिमन और जस्टिस यूयू ललित ने एक बार में तीन तलाक को असंवैधानिक ठहराया और इसे खारिज कर दिया। तीनों जजों ने 3 तलाक को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करार दिया। जजों ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है। जस्टिस नजीर और चीफ जस्टिस खेहर ने नहीं माना था असंवैधानिक। चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस नजीर ने अल्पमत में दिए फैसले में कहा कि तीन तलाक धार्मिक प्रैक्टिस है, इसलिए कोर्ट इसमें दखल नहीं देगा। दोनों ने कहा कि तीन तलाक पर छह महीने का स्टे लगाया जाना चाहिए, इस बीच में सरकार कानून बना ले और अगर छह महीने में कानून नहीं बनता है तो स्टे जारी रहेगा। हालांकि, दोनों जजों ने माना कि यह पाप है। वहीं कोर्ट के निर्णय पर सरकार की तरफ से प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि यह मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में अच्छा फैसला है। इस मामले की शुरुआत तब हुई थी, जब उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर तीन तलाक और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। कोर्ट के फैसले से पहले तीन तलाक की पीडि़ता और याचिकाकर्ता शायरा बानो ने कहा था कि मुझे लगता है कि फैसला मेरे पक्ष में आएगा।

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