सीबीआई की साख पर न्याय की उम्मीद

By: Aug 2nd, 2017 12:02 am

कुलदीप चंदेल

लेखक, बिलासपुर से हैं

‘बिटिया’ के हत्यारे चाहे कोई भी हों, कितने ही रसूखदार क्यों न हों, उनके असली चेहरे सामने आने ही चाहिएं। इतना ही नहीं, उन्हें उनके कुकृत्य के लिए इतनी सख्त सजा मिलनी चाहिए कि दोबारा कोई दरिंदा किसी बिटिया की तरफ गंदी नजर उठाने से भी कतराए…

शिमला जिला के कोटखाई में स्कूली छात्रा ‘बिटिया’ से हुए सामूहिक दुष्कर्म व नृंशस हत्या के मामले से देवभूमि हिमाचल शर्मसार भी हुई और कलंकित भी हुई है। इस जघन्य कांड की जितनी निंदा हो रही है, उससे अधिक लोगों में पुलिसिया जांच की चर्चा होने लगी है। कोटखाई के गुस्साए लोगों ने पुलिस की जांच पर शक जाहिर करते हुए इसे सीबीआई के हवाले करने की मांग की। प्रदेश सरकार ने लोगों की भावनाओं को भांप कर मामला सीबीआई के सुपुर्द करने का फैसला लिया। आखिर पुलिस की तस्वीर ऐसी क्यों बनती जा रही है कि लोग में उसके प्रति अविश्वास पैदा होता जा रहा है। क्या यह पुलिस प्रशासन को अपने भीतर झांकने का अवसर नहीं है? एक स्कूली अबोध छात्रा को कुछ गुंडे किडनैप करके उससे सामूहिक बलात्कार करें, उसे बुरी तरह से तकलीफ दें, तो उनके खिलाफ किसी भी तरह की नरमी क्यों बरती जाए? कहा तो यह जा रहा है कि बिटिया को बलात्कार के बाद जब गुंडे मारने लगे, तो उसने जान बख्शने की गुहार लगाई, हाथ जोड़े, रोई, गिड़गिड़ाई। बिटिया ने कहा, मुझे मत मारो। वह किसी को नहीं बताएगी। वह जिंदा रहना चाहती है, लेकिन इन तमाम मिन्नतों से भी ‘बिटिया’ के हत्यारों का मन नहीं पसीजा, उनकी आत्मा नहीं कांपी। वे तो सबूत मिटाने पर तुले थे। पहले तो उन्होंने बलात्कार किया और फिर बिटिया को मार दिया। ऐसे दरिंदों से क्या व्यवहार होना चाहिए? यह चर्चा आज हिमाचल प्रदेश के हर गली, कस्बे, गांव, शहर में सुनी जा रही है। चर्चा हो भी क्यों नहीं? ‘बिटिया’ से तो हर जगह समाज स्नेह करता है। यदि ‘बिटिया’ के साथ इस तरह का बदसलूक किया जाने लगा, तो समाज में विस्फोट होना स्वाभाविक है। तभी तो ‘बिटिया’ को न्याय दिलाने के लिए उसके क्षेत्र से लेकर जिला मुख्यालय और सारे प्रदेश में लोग उत्तेजित हैं, आंदोलित हैं। इस दर्दनाक घटना ने समूचे समाज की चेतना को जगा दिया है। इसका दूसरा पहलू यह है कि पुरुष समाज महिलाओं को आज भी ‘वस्तु’ ही समझ रहा है। उसका भोग किया और तोड़-मरोड़ कर फेंक दिया। इस व्यथित करने वाले परिदृश्य में साहिर-लुधियानवी का गीत याद आता है-

औरत ने जन्म दिया मर्दों को और मर्दों ने उसे बाजार दिया, जब जी चाहा मसला, कुचला और फेंक दिया

किसी दौर में लिखा गया वह गीत आज भी उतनी ही शिद्दत के साथ सच्चाई को उकेर रहा है। इस तरह की करतूतों का चित्रण करते हुए कवि-लेखक की कलम भी कांप जाती है। पुलिस पर कई बार इल्जाम लगते हैं। कई बार उसकी कार्रवाई सवालों के घेरे में आती है, लेकिन पता नहीं क्यों पुलिस में सुधार नहीं हो पाता। हरियाणा के जाट आंदोलन के दौरान महिलाओं से दुर्व्यवहार, पुलिस का व्यवहार और उसके कार्यप्रणाली आज भी चर्चा में रहती है।खैर, कोटखाई का ‘बिटिया’ हत्याकांड अब देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी को जांच हेतु सौंपा जा चुका है। वह मामले की गंभीरता को समझते हुए उतनी की गंभीरता के साथ छानबीन कर रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सीबीआई अपनी साख बचाएगी। लोगों को भरोसा दिलाएगी। लोगों का सरकारी जांच एजेंसियों से भरोसा उठना नहीं चाहिए। यदि यह भरोसा उठ जाता है, तो फिर समाज खुद इनसाफ करने पर उतारू हो जाता है। आम तौर पर वैसी घटनाएं भी किसी सभ्य में अपेक्षित नहीं रहतीं। आज हर जगह ‘बिटिया’  के केस पर लोग नजरें जमाए हुए हैं। सुबह उठकर उनके लिए ‘बिटिया’ से जुड़ी खबरें अखबारों में पहले पढ़नी होती हैं। आज क्या हुआ? असली हत्यारे पकड़े या नहीं? बस यही चर्चा। जहां देखो, वहां लोग हाथ में अखबार लेकर इसी कांड की चर्चा करते देखे जाते हैं। ‘बिटिया’ के हत्यारे चाहे कोई भी हों, कितने ही रसूखदार क्यों न हों, उनके असली चेहरे सामने आने ही चाहिएं। इतना ही नहीं, उन्हें उनके कुकृत्य के लिए इतनी सख्त सजा मिलनी चाहिए कि दोबारा कोई दरिंदा किसी बिटिया की तरफ गंदी नजर उठाने से भी कतराए। अगर इस मामले में न्याय नहीं हो पाया, तो उसका एक दुष्परिणाम समाज में अपराध में वृद्धि के रूप में झेलना पड़ सकता है। ऐसे में हर सूरत में बिटिया को न्याय दिलाना ही होगा। समाज शांति से रह सके, इसके लिए जरूरी है कि कानून का डर पहले की ही तरह बना रहे। इसके लिए प्रदेश पुलिस व प्रशासन को भी किसी स्थिति से समझौता करने से बचना होगा। धन बल, रसूख इस केस की जांच में आड़े नहीं आना चाहिए। यही इनसाफ का तकाजा है। सीबीआई ने कई अनसुलझे मामले सुलझाए हैं। इसी वजह से आज भी समाज में कहीं अपराध पनपता है, तो सीबीआई से लोगों की सहज ही अपेक्षाएं जुड़ जाती हैं। लोगों को यदि सीबीआई पर भरोसा है तो यह बड़ी बात है। इस भरोसे को बने रहना चाहिए। यही समाज व राष्ट्र हित में है। उन तत्त्वों पर भी नजर रहनी चाहिए जो झूठी अफवाहें फैलाकर समाज में अफरातफरी का माहौल बनाते हैं। जांच सही दिशा में बढ़े। निष्पक्ष जांच हो। ‘बिटिया’ को इनसाफ मिले। आज घर-घर में ‘बिटिया’ है।  जब से कोटखाई का यह जघन्य कांड सामने आया है, हर ‘बिटिया’ के माता-पिता सहमे हुए हैं, डरे हुए हैं। यह अच्छा संकेत नहीं है। समाज को भी सावधान, सजग रहने की जरूरत है। जहां भी किसी ‘बिटिया’ को किसी से परेशान देखें, वहीं विरोध होना चाहिए। मुंह फेर कर आगे निकल जाने की मनोवृत्ति त्यागनी होगी। यह ‘बिटिया’ के हित में होगा।

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