सौर ऊर्जा व पंप स्टोरेज से मिलेगी ऊर्जा स्वतंत्रता

By: Aug 16th, 2017 12:05 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

डा. भरत झुनझुनवालादेश की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए ऊर्जा सुरक्षा स्थापित करना नितांत आवश्यक है। हमारे पास न कोयला है, न यूरेनियम है, न तेल है। नदियां पूजनीय हैं, लेकिन हमारे पास धूप और पहाड़ हैं। इनका जोड़ बना दें, तो हम अपने संसाधनों से ही सुबह-शाम की पीकिंग बिजली छह-सात रुपए के सस्ते दाम पर बना सकते हैं। देश की सच्ची स्वतंत्रता पीकिंग ऊर्जा के घरेलू उत्पादन से स्थापित होगी…

देश को स्वतंत्र हुए वैसे तो 70 साल हो गए हैं, परंतु कई मायनों में हम परतंत्र होते जा रहे हैं। फास्फेट फर्टिलाइजर, ईंधन तेल, कोयले और यूरेनियम के आयात पर हम निर्भर हो गए हैं। इन वस्तुओं की यदि किसी कारणवश आपूर्ति बंद हो जाए तो हमें एक सप्ताह में ही विदेशी ताकतों के सामने घुटने टेक देने होंगे। ऊर्जा की परतंत्रता सबसे ज्यादा विकट है। देश की ऊर्जा की जरूरतें बढ़ती जा रही हैं, लेकिन हमारे स्रोत सीमित हैं। थर्मल बिजली के उत्पादन को कोयला चाहिए। हमारे कोयले के भंडार लगभग 150 साल के लिए ही पर्याप्त हैं। वर्तमान में ही हम कोयले का आयात कर रहे हैं। देश में तेल कम ही उपलब्ध है। 80 प्रतिशत तेल का हम आयात कर रहे हैं। न्यूक्लियर ऊर्जा के लिए अपने देश में यूरेनियम कम ही उपलब्ध है। इसके आयात के लिए हम निरंतर न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप की सदस्यता हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं, जो कि हमारी विवशता को दर्शाता है। थर्मल तथा न्यूक्लियर ऊर्जा में एक और समस्या पीकिंग पावर की है। देश में उर्जा की मांग सुबह एवं शाम 6-10 बजे सर्वाधिक रहती है। दिन तथा रात में जरूरत कम रहती है, लेकिन थर्मल तथा न्यूक्लीयर ऊर्जा को समयानुसार शुरू तथा बंद नहीं किया जा सकता है। एक बार बायलर के गर्म हो जाने के बाद इसे गर्म रखना पड़ता है। थर्मल तथा न्यूक्लीयर ऊर्जा दिन के 24 घंटे बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए उपयुक्त होती है। तेल से बनी ऊर्जा की तुलना में जल्द शुरू एवं बंद किया जा सकता है, परंतु ऊर्जा के सभी स्रोतों में यह सबसे महंगा पड़ता है, इसलिए धाबोल जैसी महत्त्वपूर्ण तेल आधारित परियोजनाओं को हमें बंद करना पड़ा है।

बचते हैं सौर तथा जल ऊर्जा स्रोत। सौर ऊर्जा का उत्पादन केवल दिन के समय होता है। पीकिंग पावर की जरूरत पूरा करने में यह स्रोत पूरी तरह नाकाम है। तुलना में जलीय ऊर्जा से पीकिंग पावर को बखूबी बनाया जा सकता है। हाइड्रोपावर का उत्पादन नदी के पानी को डैम के पीछे रोक कर किया जाता है। टरबाइन को मनचाहे समय शुरू और बंद किया जा सकता है। इसलिए हमारे इंजीनियरों को यह स्रोत सर्वाधिक पसंद है, लेकिन हाइड्रोपावर के पर्यावरणीय एवं सामाजिक दुष्प्रभाव भयंकर हैं। टिहरी, भाखड़ा और सरदार सरोवर जैसे बांधों में नदी द्वारा लाई गई गाद जमा हो रही है। कुछ समय में बांध के पीदे की झील पूरी तरह से गाद से भर जाती है। टिहरी हाइड्रोपावर कंपनी द्वारा कराए गए अध्ययनों में पाया गया है कि टिहरी की झील 140 से 170 वर्षों में पूरी तरह गाद से भर जाएगी। इसके बाद झील में बरसात के पानी का भंडारण नहीं हो सकेगा। टिहरी डैम का मूल लाभ है कि मानसून के पानी को एकत्रित करके जाड़े एवं गर्मी में उपयोग किया जाता है। मानसून में झील में पानी का भंडारण करके इच्छित समयानुसार बिजली का उत्पादन किया जाता है। झील में गाद के भर जाने के बाद ऐसा नहीं हो सकेगा। साथ-साथ गाद के झील में जमा होने से हमारे तटीय क्षेत्रों का समुद्र भक्षण करने लगता है। नदी द्वारा लाई गई गाद से समुद्र की गाद की भूख की पूर्ति हो जाती है। झील में गाद के जमा होने से नदी द्वारा गाद कम मात्रा में लाई जाती है और समुद्र द्वारा अपनी भूख को मिटाने के लिए ही हमारे तटों का भक्षण किया जाता है। वर्तमान में गंगासागर द्वीप का समुद्र द्वारा भक्षण इसी प्रकार किया जा रहा है। छोटी हाइड्रोपावर योजनाओं में डैम के पीछे बड़ी झील नहीं बनाई जाती है।

24 घंटे में जितना पानी पीछे से आता है, उतना ही बिजली बना कर आगे छोड़ दिया जाता है। परंतु इन योजनाओं से मछली के आने जाने के रास्ते बंद हो जाते हैं। जैसे हरिद्वार में भीमगोडा तथा ऋषिकेश में पशुलोक बैराज बनाने से माहशीर मछली का रास्ता बंद हो गया है और जो मछली पूर्व में 100 किलो तक की होती थी, अब वह पांच किलो की रह गई है। मछली के कमजोर होने से नदी के पानी की गुणवत्ता भी कमजोर होती है, चूंकि मछली नदी में आ रहे कूड़े को खाकर साफ कर देती है। हाइड्रोपावर योजनाओं में विस्थापन की सामाजिक समस्या भी रहती है। इसलिए हाइड्रोपावर हमारे लिए उपयुक्त नहीं है। मैंने कोटलीमेल परियोजना के पर्यावरणीय दुष्प्रभावों का आर्थिक मूल्यांकन किया तो पाया कि हाइड्रोपावर की वास्तविक उत्पादन लागत 15-20 रुपए प्रति यूनिट है। इंजीनियरों द्वारा इसे सस्ता माना जाता है, चूंकि पर्यावरण के दुष्प्रभावों को बिना बताए चुपके से निरीह जनता पर सरका दिया जाता है, जैसे जोंक द्वारा बिना संकेत दिए खून चूस लिया जाता है। उर्जा स्वतंत्रता की समस्या विकट है। थर्मल तथा न्यूक्लियर के लिए हम आयातों पर निर्भर हो जाते हैं और पीकिंग पावर भी नहीं बना सकते हैं। तेल महंगा पड़ता है। सौर ऊर्जा का उत्पादन दिन में होता है, जबकि जरूरत सुबह-शाम ज्यादा होती है। हाइड्रो पावर के पर्यावरणीय एवं सामाजिक दुष्प्रभाव भयंकर हैं। इस विकट समस्या का हल सौर ऊर्जा तथा पंप स्टोरेज के जोड़ से निकल सकता है। सामान्य हाइड्रो योजना में ऊपर से आ रहे पानी को एक बार बिजली बनाते हुए नीचे छोड़ दिया जाता है। पंप स्टोरेज योजना में दो झीलें बनाई जाती हैं-एक ऊपर तथा एक नीचे। जिस समय सौर, थर्मल अथवा न्यूक्लियर बिजली की आपूर्ति अधिक एवं मांग कम रहती है और बाजार में बिजली का दाम लगभग दो रुपए रहता है, उस समय नीचे की झील के पानी को पंप से ऊपर की झील में डाल दिया जाता है। इसके बाद जब बिजली की मांग ज्यादा होती है और बिजली का दाम 8-12 रुपए प्रति यूनिट रहता है, तो ऊपर की झील से पानी छोड़ बिजली को बनाया जाता है। जिस प्रकार हलवाई दूध को एक गिलास से दूसरे गिलास में ऊपर नीचे डालता है, उसी तरह पानी को ऊपर से नीचे डाल कर दिन के समय उपलब्ध सरप्लस बिजली को सुबह-शाम की पीकिंग बिजली में बदला जाता है।

वर्तमान में भागीरथी पर कोटेश्वर जैसी पंप स्टोरेज योजना में नदी पर बांध बनाया जाता है। परंतु ऐसी परियोजना को नदी छोड़ कर पहाड़ों पर स्वतंत्र रूप से भी बनाया जा सकता है। मेरा अनुमान है कि स्वतंत्र पंप स्टोरेज योजना से चार रुपए प्रति यूनिट के खर्च से दिन की बिजली को पीकिंग में बदला जा सकता है। नदी के पाट से बाहर बनाने के कारण ऐसी परियोजनाओं के गाद, मछली आदि पर दुष्प्रभाव नहीं पडे़ंगे। वर्तमान में सोलर पावर का रेट 2.50 पैस प्रति यूनिट आ गया है। इसके साथ स्वतंत्र पंप स्टोरेज को जोड़ दें तो पीकिंग बिजली छह रुपए प्रति यूनिट में उत्पादित की जा सकती है जो कि वर्तमान में हाइड्रोपावर के 10 रुपए प्रति यूनिट से बहुत कम है। देश की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए ऊर्जा सुरक्षा स्थापित करना नितांत आवश्यक है। हमारे पास न कोयला है, न यूरेनियम है, न तेल है। नदियां पूजनीय हैं, लेकिन हमारे पास धूप और पहाड़ हैं। इनका जोड़ बना दें, तो हम अपने संसाधनों से ही सुबह-शाम की पीकिंग बिजली छह-सात रुपए के सस्ते दाम पर बना सकते हैं। देश की सच्ची स्वतंत्रता पीकिंग ऊर्जा के घरेलू उत्पादन से स्थापित होगी।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com

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