हिमाचल की विभूतियां

By: Aug 9th, 2017 12:05 am

नौकरी छोड़ क्रांतिकारी बने लाल चंद प्रार्थी

नौकरी से त्यागपत्र देकर लाल चंद प्रार्थी ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और देश की स्वतंत्रता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन् 1952 ई. से 1962, 1967 ई. में  वह विधानसभा के सदस्य बने। 1964 ई. में कुल्लू कांग्रेस कमेटी के संयोजक बने। 1967 ई. में हिमाचल प्रदेश  में उन्हें सहकारिता मंत्री बनाया गया…

श्री लाल चंद प्रार्थी

इनका जन्म कुल्लू की प्राचीन राजधानी नग्गर में मार्च, 1916 ई. में एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय हाई स्कूल में हुई। इसके बाद वह लाहुल चले गए और 1934 ई. में एसडी कालेज से स्नात्क की डिग्री आयुर्वेद में प्राप्त की। वहां उनका संपर्क क्रांतिकारी दल से हुआ और विद्यार्थी कांग्रेस में वह एक अग्रणी व्यक्ति बन गए। उन्होंने एक  उत्साही सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपना जीवन शुरू किया और कुल्लू में सफलतापूर्वक प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों की  व्यवस्था की। इसके परिणामस्वरूप उन्हें पंचायत अधिकारी नियुक्त किया गया। नौकरी से त्यागपत्र देकर भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और देश की स्वतंत्रता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन् 1952 ई. से 1962, 1967 ई. में  वह विधानसभा के सदस्य बने। 1964 ई में कुल्लू कांग्रेस कमेटी के संयोजक बने। 1967 ई. में हिमाचल प्रदेश  में उन्हें सहकारिता मंत्री बनाया गया। वह कला, संस्कृति और लोक संस्कृति के विद्यार्थी थे। उनकी कृति व शोधकार्र्य ‘कुलूत देश की कहानी’ है। प्रदेश के लिए भी उन्होंने सराहनीय कार्य किए। उनका निधन 11 दिसंबर, 1982 को हुआ।

श्री लेख राम ठाकुर

इनका जन्म सोलन जिला की तहसील नालागढ़ के गांव चकखेरा में 10 अक्तूबर 1926 ई. को हुआ।  वह 1946 में भूतपूर्व रियासत नालागढ़ में प्रजामंडल के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और इसके महासचिव के रूप में इन्होंने 1948 तक कार्य किया। 1951 ई. तक कोहिस्तान (पेप्सू) जिला कांग्रेस कमेटी के महासचिव रहे। 1952 में वह एक आजाद उम्मीदवार के रूप में पेप्सू राज्य विधानसभा के लिए चुने गए। फरवरी 1965 ई. तक नालागढ़ पंचायत समिति के सदस्य भी रहे। 1967 ई. में एक आजाद प्रत्याशी चुने गए। 1972 से 1977 ई. तक हिमाचल प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष रहे।

श्री अमीर चंद

इन का जन्म 18 मार्च, 1916 को हमीरपुर जिला के पपलाह गांव में हुआ। 1937 में स्वतंत्रता संघर्ष में हिससा लेने के लिए इन्हें 4 साल की जेल भी हुई। 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भाग लेने के लिए उन्हें फिर दो साल की जेल हुई। 1962 से 1972 तक वह विधानसभा के सदस्य और उपाध्यक्ष भी रहे। 19 मई, 1977 को इनका देहांत हो गया।

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