अजूबे से कम नहीं हैं खजुराहो के मंदिर

By: Sep 23rd, 2017 12:05 am

भारत में ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा देखे और घूमे जाने वाले पर्यटक स्थलों में अगर कोई दूसरा नाम आता है तो वह है खजुराहो। खजुराहो भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की एक नायाब मिसाल है। खजुराहो को इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है जो मध्यकालीन स्मारक हैं…

खजुराहो वैसे तो भारत के मध्य प्रदेश राज्य के छत्तरपुर जिले में स्थित एक छोटा-सा कस्बा है, लेकिन फिर भी भारत में ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा देखे और घूमे जाने वाले पर्यटक स्थलों में अगर कोई दूसरा नाम आता है तो वह है खजुराहो। खजुराहो भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की एक नायाब मिसाल है। खजुराहो को इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है जो कि देश के सर्वोत्कृष्ट मध्यकालीन स्मारक हैं। चंदेल शासकों ने इन मंदिरों की तामीर सन् 900 से 1130 ईस्वी के बीच करवाई थी। इतिहास में इन मंदिरों का सबसे पहला जो उल्लेख मिलता है, वह अबू रिहान अल बरूनी (1022 ईस्वी) तथा अरब मुसाफिर इब्न बतूता का है। दरअसल यह क्षेत्र प्राचीन काल में वत्स के नाम से, मध्य काल में जैजाक्भुक्ति नाम से तथा चौदहवीं सदी के बाद बुंदेलखंड के नाम से जाना गया। खजुराहो के चंदेल वंश का उत्थान दसवीं सदी के शुरू से माना जाता है। इनकी राजधानी प्रासादों, तालाबों तथा मंदिरों से परिपूर्ण थी। स्थानीय धारणाओं के अनुसार एक हजार साल पहले यहां के दरियादिल व कला पारखी चंदेल राजाओं ने करीब 84 बेजोड़ व लाजवाब मंदिरों की तामीर करवाई थी, लेकिन उनमें से अभी तक सिर्फ 22 मंदिरों की ही खोज हो पाई है। सामान्य रूप से यहां के मंदिर बलुआ पत्थर से निर्मित किए गए हैं, लेकिन चौंसठ योगिनी, ब्रह्मा तथा ललगुआं महादेव मंदिर ग्रेनाइट (कणाष्म) से निर्मित हैं। ये मंदिर शैव, वैष्णव तथा जैन संप्रदायों से संबंधित हैं। खजुराहो के मंदिरों का भूविन्यास तथा ऊर्ध्वविन्यास विशेष उल्लेखनीय है, जो मध्य भारत की स्थापत्य कला का बेहतरीन व विकसित नमूना पेश करते हैं। यहां मंदिर बिना किसी परकोटे के ऊंचे चबूतरे पर निर्मित किए गए हैं। आम तौर पर इन मंदिरों में गर्भगृह, अंतराल, मंडप तथा अर्धमंडप देखे जा सकते हैं। खजुराहो के मंदिर भारतीय स्थापत्य कला के उत्कृष्ट व विकसित नमूने हैं। यहां की प्रतिमाएं विभिन्न भागों में विभाजित की गई हैं। इनमें प्रमुख हैं देवी-देवता, अप्सरा, मिथुन (संभोगरत प्रतिमाएं) तथा पशु व व्याल प्रतिमाएं। इनका विकसित रूप कंदारिया महादेव मंदिर में देखा जा सकता है। खजुराहो के प्रमुख मंदिरों में लक्ष्मण, विश्वनाथ, कंदारिया महादेव, जगदंबी, चित्रगुप्त, दूल्हादेव, पार्श्वनाथ, आदिनाथ, वामन, जवारी तथा चतुर्भुज इत्यादि हैं।

इतिहास

खजुराहो का प्राचीन नाम खर्जुरवाहक है। सन् 900 से 1150 ई. के बीच यह चंदेल राजपूतों के राजघरानों के संरक्षण में राजधानी और नगर था। चंदेलों के राज्य की नींव आठवीं शती में महोबा के चंदेल नरेश चंद्रवर्मा ने डाली थी। तब से लगभग पांच शतियों तक चंदेलों की राजसत्ता जुझौति में स्थापित रही। इनका मुख्य दुर्ग कालिंजर तथा मुख्य अधिष्ठान महोबा में था। 11वीं शती के उत्तरार्द्ध में चंदेलों ने पहाड़ी किलों को अपनी गतिविधियों का केंद्र बना लिया। लेकिन खजुराहो का धार्मिक महत्त्व 14वीं शताब्दी तक बना रहा। इसी काल में अरबी यात्री इब्न बतूता यहां पर योगियों से मिलने आया था। खजुराहो धीरे-धीरे नगर से गांव में परिवर्तित हो गया और फिर यह लगभग विस्मृति में खो गया।

यातायात

खजुराहो, महोबा से 54 किलोमीटर दक्षिण में, छतरपुर से 45 किलोमीटर पूर्व और सतना जिले से 105 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशनों अर्थात महोबा, सतना और झांसी से पक्की सड़कों से खजुराहो अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। हवाई मार्ग में खजुराहो के लिए दिल्ली, बनारस और आगरा से प्रतिदिन विमान सेवा उपलब्ध रहती है। रेल मार्ग में दिल्ली से खजुराहो माणिकपुर होते हुए उत्तर प्रदेश संपर्क क्रांति ट्रेन से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा, दिल्ली-चेन्नई रेल मार्ग पर पड़ने वाले स्टेशनों महोबा (61 किमी), हरपालपुर (94 किमी) और झांसी (172 किमी) से भी ट्रेन बदलकर खजुराहो जाया जा सकता है। बस मार्ग में खजुराहो सतना, हरपालपुर, झांसी और महोबा से बस सेवा द्वारा जुड़ा हुआ है।

 


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