आत्म पुराण

By: Sep 16th, 2017 12:05 am

शंका – हे याज्ञावल्क्य! क्या श्रवण, मनन और निदिध्या सन आदि उपायों के बिना किसी अन्य उपाय से मनुष्य ब्राह्मण नहीं बन सकता। अगर कोई ऐसा उपाय हो तो बताओ।

समाधान- हे कहोल! अभी जो श्रावण-मनन-निदिध्यास का उपाय बताया, उसके सिवाय मनुष्य और किसी तरह ब्राह्मण पद को प्राप्त नहीं कर सकता। इससे हे कहोल! नाम-रूप-क्रिया से रहित तथा स्वप्रकाश सुख जो अद्वितीय ब्रह्म है, वही मैं हूं, इस तरह का निर्विकलप ज्ञान जिस पुरुष को हो चुका है, उसी ब्रह्म वेता को श्रुति ब्राह्मण मानती है। ऐसा ब्राह्मणत्व किसी अन्य उपाय से नहीं मिलता, पर यदि कोई इसको बिना श्रवण मनन आदि के बिना ही प्राप्त कर सके, तो वह निस्संकोच वैसा करे, हमें उसका विरोध नहीं। हे कहोल! जैसे नदी के पार उतरने का मुख्य साधन से नहीं पार कर ले तो भी हम उसका विरोध नहीं करते। फिर भी हम जानते हैं कि जो नदी महान वेग और अत्यंत विस्तार वाली हो, जिसमें अगाध जल हो, उसको पार करने का एकमात्र साधन नाव ही है, तूमा आदि से उसे पार नहीं किया जा सकता। वैसे ही ब्राह्मण प्राप्त करने का स्वाभाविक और सबके लिए उपयोगी उपाय श्रवण-मनन आदि द्वारा चित्त शुद्ध करके उत्कृष्ट कर्म करने से ही आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है। अनित्य और अशुचिः दुःख रूप मानव देह को पवित्र और सुख का साधन मानना, इसे विपरीत भावना कहते हैं, यह विपरीत-भावना निदिध्यासन ही आत्मज्ञान के मुख्य साधन हैं और इनसे ही ब्राह्मण-भाव की प्राप्ति होती है। हे कहोल! जिस पुरुष ने गुरुमुख से वेदांत शास्त्र श्रवण नहीं किया, मनन ओर निदिध्यासन, केवल सांसारिक भोगों में ही जो आसक्त हैं, ऐसे साधनहीन पुरुष को कभी उक्त ब्राह्मणतत्त्व प्राप्त हुआ तो तुम उसे बताओ। जैसे नियमपूर्वक अन्न का आहार करने से तृप्ति होती है। अन्न भोजन के अतिरिक्त तृप्त होने का और कोई उपाय नहीं है, वैसे ही ब्राह्मण का पद पाने का उपाय भी श्रवण-मनन आदि ही है। योगी पुरुषभी प्रणव के अर्थ का विचार करके ही आत्म साक्षात्कार में समर्थ होते हैं। इस प्रकार याज्ञवक्ल्य के उत्तर को सुनकर कहोल ने उसकी बुद्धिमता जान ली और वह अपने आसान पर बैठ गया। तब तक के विषय में प्रसिद्ध वचुके ऋषि की पुत्री गार्गी अनुमान प्रमाण के अप्रसार करने को सम्मुख आई। गार्गी-हे याज्ञवल्क्य! इस संसार में जितने पदार्थ हैं, उनका कोई कारण होता है, जैसे वस्त्र रूप का कारण सृत होता है। इस प्रकार संसार में जितने पदार्थ दिखाई पड़ते हैं, वे कार्य रूप हैं और उनके बाहर भीतर जल व्याप्त रहता है। यदि उनमें जल व्याप्त न हो तो वे मुट्ठी भर सत्तू की तरह बिखर जाए। इससे सिद्ध होता है कि संसार के सभी स्थावर-जंगम पदार्थों का कारण जल है। हे याज्ञवल्क्य! इस पृथ्वी तत्त्व की तरह जल, भी अपने स्थान में कार्य रूप हैं और इसलिए उनका भी कोई कारण में ओत-प्रोत है। यद्यपि शास्त्र में जल का कारण तेज को बताया है और तेज की उत्पत्ति वायु से है। इस कारण वायु को जल कारण कहना शास्त्र विरुद्ध जान पड़ता है। तो भी संसार में तेज का प्रमुख साधन काष्ठ ही दिखाई देता है, उससे अग्नि और जल दोनों विपरीत पदार्थों की उत्पत्ति बतलाना  युक्ति युक्त नहीं लगता। जल का कारण आग को बतलाने में केवल शास्त्र ही प्रमाण हैं।

याज्ञवक्ल्य – वह नक्षत्र लोक में ओत प्रोत है।

गार्गी – नक्षत्र लोक का कारण क्या है?।


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