‘कांग्रेसमुक्त’ भारत संभव है !

By: Sep 26th, 2017 12:05 am

नरेंद्र मोदी के देश की सत्ता में आने और भाजपा की कुछ अविश्वसनीय सी चुनावी जीतों के बाद एक राजनीतिक मुहावरा चलन में आया था-कांग्रेसमुक्त भारत। प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत अधिकतर भगवा नेताओं ने इसे प्रचार का मुद्दा बनाया और राष्ट्रीय विकल्प के तौर पर भाजपा को पेश किया। भाजपा की नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए  जनमत, जन समर्थन भी मांगा गया। भाजपा के हिस्से ऐसा समर्थन भी आता रहा। नतीजतन भाजपा और उसके सहयोगी दलों की देश के 18 राज्यों में सरकारें हैं। ‘कांग्रेसमुक्त’ भारत के नारे पर कांग्रेस और उसके सहयोगी दल भी हंसते रहे हैं और इसे मोदी-भाजपा की खुशफहमी करार देते रहे हैं। कई तटस्थ और पेशेवर विश्लेषकों ने भी सवाल उठाए हैं कि कांग्रेस का जिस तरह देश के कोने-कोने में विस्तार है, उसके मद्देनजर क्या उसका समूल खात्मा संभव है? एक-दो चुनाव में कांग्रेस की विजय हुई, तो फिर सवाल प्रासंगिक होने लगा कि ‘कांग्रेसमुक्त भारत’ की परिकल्पना क्या एक राजनीतिक यथार्थ हो सकती है? हम भी सवालिया और संदेहास्पद् स्थिति में हैं, लेकिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जिस तरह देश के प्रवास पर रहते हैं  और 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही बूथ स्तर पर भाजपा को मजबूत करने में लगे हैं, उसमें ‘कांग्रेसमुक्त भारत’ का अभियान भी निहित है। इस मुद्दे पर भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी विमर्श किया गया। अमित शाह ने फिर अपना मिशन दोहराया है-भाजपा 360-सीटें। इसके लिए कांग्रेस का आधार और नेटवर्क छीनना पड़ेगा, यही शाह की रणनीति है। भाजपा ने जो गोपनीय चुनाव योजना तैयार की है, उसके मद्देनजर 18 राज्यों में 123 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जो कांग्रेस और विपक्ष का अभेद्य गढ़ रही हैं। मसलन-मध्य प्रदेश में रतलाम, छिंदवाड़ा, गुना। हरियाणा में रोहतक। छत्तीसगढ़ की दुर्ग। पंजाब की अमृतसर, जालंधर, लुधियाना और पटियाला, संगरूर आदि। सीटों की फेहरिस्त लंबी है। भाजपा अध्यक्ष इन सीटों पर पुराने कांग्रेसियों को तोड़ने में लगे हैं। इन सीटों पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के बूथ कार्यकर्ताओं को भी भाजपा अपने साथ मिलाने की कोशिश में है। इसके अलावा, देश की 2.5 लाख पंचायतों में जितने भी हारे हुए सरपंच हैं, उन्हें भी भाजपा में शामिल किया जाएगा। इस काम के लिए अमित शाह ने अपनी टीम को मैदान में उतार रखा है और स्थानीय स्तर पर संघ भी मदद कर रहा है। भाजपा अध्यक्ष का आकलन है कि बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को तोड़ने से कांग्रेस को जड़ से कमजोर किया जा सकेगा। उसी से ‘कांग्रेसमुक्त भारत’ की नींव रखी जा सकेगी। अमित शाह इस तरह कांग्रेस का नेटवर्क ही खत्म करना चाहते हैं। यह कोई असंभव काम नहीं है। गुजरात में कई कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफे दिए और भाजपा में शामिल हुए हैं। असम में हिमंत बिस्ब सरमा कांग्रेस सरकार में ताकतवर मंत्री रहे हैं, लेकिन आज पूरे पूर्वोत्तर में भाजपा के अग्रणी नेता हैं और असम सरकार में दूसरे स्थान के मंत्री हैं। पूर्वोत्तर में ही अरुणाचल और मणिपुर में जो कांग्रेस सरकारें थीं, वे आज भाजपा के नाम दर्ज हैं। पूर्वोत्तर में तो भाजपा का कोई जनाधार ही नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे आसार और माहौल ऐसा बन रहा है कि वहां कांग्रेस का सफाया हो रहा है। यह वैचारिक स्तर का परिवर्तन नहीं है, बल्कि विशुद्ध राजनीतिक पालाबदल है। यह मोदी-शाह की राजनीति की देन भी है। यही ‘कांग्रेसमुक्त भारत’ की बुनियाद है। कर्नाटक में जो शख्स कांग्रेसी मुख्यमंत्री था, केंद्र की यूपीए सरकार में विदेश मंत्री भी रहा, वही एसएम कृष्णा आज भाजपा में हैं। उत्तराखंड में चुनाव से पहले कई कांग्रेसी दिग्गजों ने पार्टी को अलविदा कहा और भाजपा में आ गए। आज वहां भाजपा की सरकार है और पूर्व कांग्रेसी आज भाजपाई मंत्री हैं। उत्तर प्रदेश में व्यापक स्तर पर पालाबदल हुआ है, लिहाजा ‘कांग्रेसमुक्त भारत’ के संकेत तो सामने आ रहे हैं। अपने आप को धर्मनिरपेक्षता के प्रवक्ता कहने वाले नेता भी आज भाजपा के साथ गठबंधन में हैं और सरकारें चला रहे हैं। एक बड़ा चुनाव मई, 2018 में होना है। यदि उस चुनाव में कांग्रेस हार जाती है, तो कर्नाटक की उस हार के साथ ही भारत लगभग ‘कांग्रेसमुक्त’ हो जाएगा। फिर देश में कांग्रेसी सत्ता के कुछ छोटे-छोटे अवशेष ही रह जाएंगे। बहरहाल 2019 के महत्त्वपूर्ण चुनाव तक अमित शाह की रणनीति क्या रंग दिखाती है, वह देखना दिलचस्प होगा।


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