क्यों काली है यमुना

By: Sep 23rd, 2017 12:05 am

यमुना या कालिंदी नदी को गंगा की ही तरह पवित्र माना जाता है। यमुना को श्रीकृष्ण की परम भक्त माना जाता है। गंगा को ज्ञान की प्रतीक माना जाता है तो यमुना भक्ति की। कृष्ण की भक्ति में रंगी यमुना नदी का पानी काला दिखाई देता है। यमुना नदी का उद्गम यमनोत्री से हुआ है। यमुनोत्री उत्तरांचल में स्थित है। इस नदी को कालिंदी भी कहा जाता है क्योंकि यह कलिंद नामक पर्वत से निकलती है। गंगा के समानांतर बहते हुए यह नदी प्रयाग में गंगा में मिल जाती है।  प्रयाग में यमुना नदी का काला पानी गंगा में मिलते हुए साफ  दिखाई देता है। शास्त्रों के अनुसार यमुना सरस्वती नदी की सहायक नदी रही है। जो बाद में गंगा में मिलने लगी। गंगा ज्ञान की प्रतीक है और यमुना भक्तिरस की धारा है। कृष्ण रंग में रंगी यमुना का जल प्रेम की गहनता लिए श्रीकृष्ण के श्याम वर्ण (काला) के समान ही दिखाई देता है। शास्त्रों के अनुसार यमुना नदी को यमराज की बहन माना गया है। यमराज और यमुना दोनों का ही स्वरूप काला बताया जाता है जबकि यह दोनों ही परम तेजस्वी सूर्य की संतान हैं। फिर भी इनका स्वरूप काला है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य की एक पत्नी छाया थी, छाया दिखने में भयंकर काली थी इसी वजह से उनकी संतान यमराज और यमुना भी श्याम वर्ण पैदा हुए। यमुना से यमराज ने वरदान ले रखा है कि जो भी व्यक्ति यमुना में स्नान करेगा उसे यमलोक नहीं जाना पड़ेगा। दीपावली के दूसरे दिन यम द्वितीया को यमुना और यमराज का मिलन बताया गया है। इसी वजह से इस दिन भाई-बहन के लिए भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। यमुना श्रीकृष्ण की भक्ति में पूरी तरह लीन है। इस वजह से भी इसके पानी का रंग काला माना जाता है। धार्मिक महत्त्व के अतिरिक्त प्राकृतिक कारण यह है कि यमुना जिन स्थानों से बहकर निकलती है वहां की मिट्टी और वातावरण यमुना के जल को श्याम वर्ण प्रदान करते है।

दूसरा कारण (ऐतिहासिक) -यमुना का उदगम स्थान हिमालय के हिमाच्छादित में स्थित कालिंद पर्वत पर है, जिसके नाम पर यमुना को कालिंदजा कहा जाता है। पुराणों से ज्ञात होता है कि प्राचीन वृंदावन में यमुना गोवर्धन के निकट प्रवाहित होती थी। जबकि वर्तमान में यह गोवर्धन से लगभग 4 मील दूर हो गई है। प्रागऐतिहासक काल में यमुना मधुवन के समीप बहती थी, जहां उसके तट पर शत्रुघ्न जी ने सर्वप्रथम मथुरा नगरी की स्थापना की थी। वाल्मीकि रामायण और विष्णु पुराण में इसका विवरण मिलता है। कृष्ण काल में यमुना का प्रवाह कटरा केश्व देव के निकट था।

तीसरा कारण (वर्तमान)- यमुना नदी ज्यादातर भारत के शहरों से ही गुजरती है। जिसमें दिल्ली सबसे बड़ा शहर है, इसके बाद अन्य दूसरे कई और शहर हैं। इस भू-भाग में मस्कर्रा, कठ, हिंडन और सबी नामक नदियां मिलती हैं, जिनके कारण इसका आकार बहुत बढ़ जाता है। इसके ठीक तट पर बसा हुआ दिल्ली का वजराबाद बैराज यमुना को आगे बढ़ने से रोक देता है। वजराबाद के एक तरफ यमुना का पानी एकदम साफ और दूसार ओर एकदम काला। इसी जगह नदी का सारा पानी उठा लिया जाता है और जल शोधन संयत्र के लिए भेज दिया जाता है ताकि जनता को पीने का पानी भी मिल सके। बस यहीं से इस नदी की बदहाली भी शुरू हो जाती है। लोगों द्वारा गंदगी के ढेरों को अपने में समाहित करते हुए यमुना नदी आगे निकल जाती है। दुखद बात तो यह है कि पवित्र होते हुए भी आज इस नदी का पानी इतना साफ क्यों नहीं है।


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