गीता रहस्य

By: Sep 23rd, 2017 12:05 am

स्वामी रामस्वरूप

अर्जुन क्षत्रिय था। श्रीकृष्ण महाराज उसे क्ष्त्रिय धर्म का वेदों से उपदेश देकर धर्म युद्ध करने की प्रेरणा दे रहे हैं। आज हम वेदों से अपने-अपने क्षेत्र के लिए कर्त्तव्य कर्म करके ही राष्ट्र में सुख-शांति एवं भाईचारा बढ़ा सकते हैं अन्यथा वेद के विरुद्ध जाकर मनगढ़ंत थोथे कर्म, पूजा-पाठ इत्यादि करते हुए दिन-प्रतिदिन अंधविश्वास, भ्रष्टाचार आदि पाप कर्मों एवं फलस्वरूप दुःखमय वातावरण उत्पन्न करते आ रहे हैं। ईश्वर का अटल नियम है कि वेद की ज्ञान दृष्टि को पाकर ही हम वेद विरोधी साधुओं के चंगुल से बच पाएंगे…

श्री कृष्ण महाराज द्वारा कहे वचन वेदों से ही लिए गए हैं। जैसा कि अथर्ववेद मंत्र 1/2/3/4 में कहा ‘‘श्रुतम मयि मयि एव’’ अर्थात हे ईश्वर! आचार्य के मुख से सुना हुआ ज्ञान मुझमें ही आ जाए। पुनः कहा ‘‘श्रुतम मयि मयि एव’’ आचार्य के मुख से सुना ज्ञान मुझमें ही स्थिर हो जाए। पुनः कहा ‘‘श्रुतेन संगमेमही’’ ज्ञान को सुनने  की परंपरा से हम सदा जुड़े रहें। आचार्य हमें ज्ञान सुनाते रहें और हम जीवन में धारण करें। ‘‘श्रुतेन मा विराधिषी’’  इस वैदिक ज्ञान को सुनने की परंपरा से हम कभी अलग न हों। चित्त की पांच स्थितियां  हैं क्षिप्त विक्षिप्त, मूढ़, एकाग्र एवं निरुद्ध। श्री कृष्ण महाराज संपूर्ण वेदों के ज्ञान को धारण करने वाले विलक्षण पुरुष हुए हैं। तभी उन्होंने अर्जुन को श्लोक 8/7 में कहा ‘‘ मयि अर्पित मानेबुद्धि’’ मेरे में मन बुद्धि लगाता हुआ अर्थात एकाग्र वृत्ति से मेरे ज्ञान को सुनकर धारण कर। अतः हम सदा अर्जुन की तरह आज भी वैदिक ज्ञान को सुनने की परंपरा का कभी त्याग न करें। अन्यथा कुल, समाज और प्राणी सदा दुःखों के सागर में ही डूबे रहेंगे। कभी सुख शांति प्राप्त नहीं कर पाएंगे। जैसा मनुस्मृति श्लोक 2/6 में कहा वेद से ही सब धर्मों शुभ कर्मों का उदय हुआ है। अर्जुन क्षत्रिय था। श्रीकृष्ण महाराज उसे क्ष्त्रिय धर्म का वेदों से उपदेश देकर धर्म युद्ध करने की प्रेरणा दे रहे हैं। आज हम वेदों से अपने-अपने क्षेत्र के लिए कर्त्तव्य कर्म करके ही राष्ट्र में सुख-शांति एवं भाईचारा बढ़ा सकते हैं अन्यथा वेद के विरुद्ध जाकर मनगढ़ंत थोथे कर्म, पूजा-पाठ इत्यादि करते हुए दिन-प्रतिदिन अंधविश्वास, भ्रष्टाचार आदि पाप कर्मों एवं फलस्वरूप दुःखमय वातावरण उत्पन्न करते आ रहे हैं। ईश्वर का अटल नियम है कि वेद की ज्ञान दृष्टि को पाकर ही हम वेद विरोधी साधुओं के चंगुल से बच पाएंगे। वेद विद्या में सुदृढ़ हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज जैसी महान विभूतियों के ही वचन हैं कि हे अर्जुन तू सब काल में मेरे ही दिए हुए वैदिक ज्ञान का अनुसरण करके युद्ध कर। यदि तेरा मन और बुद्धि मुझमें अर्पित होगा अर्थात जो भाव मेरे(श्रीकृष्ण जी के) वही भाव तेरे मन और बुद्धि में होंगे, तब तू मुझे ही प्राप्त हो जाएगा। इसमें कुछ संदेह नहीं। यह जो श्लोक 8/7 में अंतिम वचन है कि इसमें कुछ संदेह नहीं। यह वैदिक मार्ग पर चलने वालों के लिए शत-प्रतिशत सत्य सिद्ध होते हैं। जैसे विद्वानों को वेदों, निराकार ब्रह्म एवं वेदों का ज्ञान देने वाले तत्त्वदर्शी ऋषियों पर कोई संदेह नहीं होता। उसी प्रकार श्रीकृष्ण महाराज का भाव है कि अर्जुन अथवा अर्जुन की तरह कोई भी साधक वेदों के ज्ञाता आचार्य के अनुसार अपने-अपने क्षेत्र में शुभ कर्म करता है तो वह निःसंदेह आज भी ईश्वर को ही प्राप्त करता है। अतः मनुष्य जाति कभी भी ईश्वरीय वाणी चारों वेदों पर संदेह न करें। इस अनादिकाल से चली आ  रही वेद विद्या के सत्य होने का यह प्रमाण आज वर्तमान काल में भी दिखाई देता है कि भारतवर्ष  के लगभग प्रत्येक मजहब के सद्ग्रंथ वेदों के अस्तित्व और इसके सत्य होने के प्रमाण को स्वीकार करते हैं। विश्वस्तर पर भी वेद विद्या को सबसे पुरातन सद्ग्रंथों में माना जाता है। श्लोक 8/8 में श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन से कह रहे हैं कि हे अर्जुन अभ्यास योग से युक्त होकर किसी अन्य तरफ न जाने देने वाले चित्त के द्वारा इस प्रकार योगाभ्यास के पश्चात एकाग्र चित्त से चिंतन करता हुआ परम दिव्य पूर्ण परमेश्वर को प्राप्त करता है। भाव-श्रीकृष्ण महाराज ने अभ्यास योगयुक्त शब्दों को कहकर यह दर्शाया है कि परमेश्वर की भक्ति के लिए इस तरह के योगाभ्यास से जुड़ो कि ‘‘नान्यगमिना  चेतसा ’’ चित्त की वृत्तियां किसी और दिशा में न जाकर अर्थात सांसारिक पदार्थों अथवा विषय विकार के आगे का चिंतन न करके निरंतर ‘‘चिंतन’’ ईश्वर के स्वरूप का चिंतन करे और उसी निरंतर योगाभ्यास से युक्त हुआ साधक अंत में परम दिव्य पुरुष जो परमेश्वर है, उसको प्राप्त कर ले। अब प्रश्न यह है कि जो परमात्मा सब जड़ एवं चेतन जगत का आधार है और हम सबको जीवन शक्ति एवं जीवन दान देने वाला है, उसकी तरफ हमारा ध्यान कैसे जाएगा। वह अभ्यास योग क्या है अर्थात उसका स्वरूप क्या है। जिसका हम निरंतर अभ्यास करते हैं। बिना इन प्रश्नों के उत्तर के गीता के इन श्लोकों को पढ़, सुन, रटकर सुनाना एवं सुनना अर्थहीन ही होगा। गीता वेदों पर आधारित ग्रंथ है। अतः उत्तर भी वेदों से ही प्राप्त होते हैं जो कि प्रामाणिक है।


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