गुप्तकाल में शाक्त धर्म अपने चरम पर था

By: Sep 27th, 2017 12:05 am

गुप्तकाल में शाक्त धर्म अपने विकास के चरम पर था। हिमाचल प्रदेश में अनेक शक्ति पीठ स्थापित हैं, जो इस क्षेत्र में शाक्त धर्म की चरमोत्कर्षता का वर्णन करते हैं। इन मंदिरों में चंबा-भरमौर के तीन प्राचीन मंदिर तथा कांगड़ा के कुछ अति प्राचीन मंदिर उल्लेखनीय हैं…

हिमाचल में प्रचलित धर्म

शाक्त धर्म-हिंदू धर्म के विकास में शाक्त धर्म अर्थात शक्ति की पूजा का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। हिमाचल प्रदेश में शक्ति की पूजा बहुत प्राचीन समय से ही प्रचलित मालूम होती है। इसके विकास में शैव धर्म का विशेष रूप से योगदान रहा, क्योंकि प्राचीन काल में पार्वती को शिव की धर्म पत्नी के रूप में प्रकल्पित किया गया था और उसकी पूजा शिव के साथ-साथ की जाती थी। इस क्षेत्र में पार्वती की पूजा होना स्वाभाविक ही है, क्योंकि एक तरफ जहां पार्वती को नगाधिराज हिमालय की पुत्री होने का गौरव प्राप्त है, वहीं दूसरी तरफ कैलाश पति शिव उनके पति हैं। वैसे शिव को हिमालय का संरक्षक देवता भी माना जाता है। विभिन्न सांस्कृतिक इकाइयों के संपर्क में आने के कारण शक्ति उपासना में विविध पक्षों का विकास हुआ। शक्ति को पहले मां के रूप में कल्पित कर उसे संसार की उत्पत्ति का कारण माना गया। इसके साथ ही इसके सौम्य रूप का प्रचलन आरंभ हुआ। बाद में उसे सृष्टि की संरक्षिका स्वीकार किया गया और समय आने पर उसे आसुरी शक्तियों की विनाश कारिणी भी माना गया। इस तरह उसके रूप में एक भयानक रूप की भी कल्पना की गई। इसी के साथ उमा तथा पार्वती की जगह पर दुर्गा, चंडी, काली, महाकाली, चामुंडा तथा महिषासुरमर्दिनी आदि नामों से प्रतिष्ठित किया गया। बाद में उसके इन रूपों को उसकी मूर्तियों में भी यथा स्थान दिया गया। देवी की इस प्रकार की कल्पना में विभिन्न लोगों एवं पर्वतीय घाटियों तथा जंगलों में रहने वाली आदिम जातियों के धार्मिक विश्वासों और क्रियाओं ने अधिक योगदान दिया और उसकी पूजा विधियों, क्रियाओं तथा साधनाओं में उनके जादू-टोनों तथा रूढि़यों ने अपना स्थान बना लिया। धीरे-धीरे वे शक्ति उपासना के अंग बन गए। इन्हीं कारणों से हिमाचल क्षेत्र में शक्ति की उपासना बड़े जोरों से प्रारंभ हुई। हिमाचल में इन शक्ति के मदिंरों में संभवतः लाहुल में स्थित मृकुला देवी का मंदिर सबसे प्राचीन है। यह स्थान मध्यारनाला या चंद्रभागा नामक नदी के संगम पर बसे एक ग्राम में स्थित है। इस ग्राम का प्राचीन नाम मृकुला था, जो बाद में उदयपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, क्योंकि उसे चंबा नरेश उदय सिंह का राजकीय केंद्र बनाया गया था। वैसे तो इस मंदिर की सही तिथि अज्ञात है, परंतु फिर भी यह उत्तर गुप्तकाल में बना प्रतीत होता है। गुप्तकाल में शाक्त धर्म अपने विकास के चरम पर था। हिमाचल प्रदेश में अनेक शक्ति पीठ स्थापित हैं, जो इस क्षेत्र में शाक्त धर्म की चरमोत्कर्षता का वर्णन करते हैं। इन मंदिरों में चंबा-भरमौर के तीन प्राचीन मंदिर तथा कांगड़ा के कुछ अति प्राचीन मंदिर उल्लेखनीय है। अन्य भागों में शाक्त पीठों के अवशेष उपलब्ध नहीं।


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