घर-घर के ‘सौभाग्य’ की खातिर

By: Sep 27th, 2017 12:05 am

प्रधानमंत्री मोदी ने देश के बेहद गरीब, उपेक्षित, वंचित, अंधेरों में पाषाणकालीन जिंदगी जीने वाले हिंदोस्तान का ‘सौभाग्य’ लिखने का संकल्प घोषित किया है। आज भी चार करोड़ से ज्यादा घर ऐसे हैं, जिन्होंने बिजली नहीं देखी है। वे आज भी 18वीं सदी में जीने को अभिशप्त हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने जिस ‘सौभाग्य’ योजना की घोषणा की है, उसके तहत खुद सरकार गरीबों की दहलीज तक जाकर बिजली के कनेक्शन देगी और वह भी बिलकुल मुफ्त..! ऐसे गरीब घर शहर में हों या गांव में, सभी को ‘रोशन’ करने का संकल्प लिया गया है। ऐसा ही संकल्प 2015 में  प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से घोषित किया था कि जो 18,452 गांव आज भी घुप्प अंधेरों में जी रहे हैं, वहां 1000 दिनों में ‘उजाले’ बिखरने लगेंगे। ‘सौभाग्य’ के मंच से ही प्रधानमंत्री ने पुष्टि की और ऊर्जा मंत्रालय के आंकड़े भी खुलासा कर रहे हैं कि दो साल में ही 14,483 गांवों तक बिजली पहुंचा दी गई है। शेष गांवों में भी तय समय सीमा में ही बिजली पहुंचा दी जाएगी। जब करीब 80 फीसदी लक्ष्य हासिल हो चुका है, तो शेष 20 फीसदी लक्ष्य पर संदेह और सवाल कैसे किए जा सकते हैं? ‘सौभाग्य’ हिंदोस्तान के चप्पे-चप्पे, कोने-कोने को ‘रोशन’ करने का अगला और निर्णायक कदम है। सामाजिक, आर्थिक जनगणना में जिनके नाम हैं, उन्हें मुफ्त बिजली कनेक्शन दिया जाएगा। जिनके नाम नहीं भी हैं,,उनसे 500 रुपए लिए जाएंगे और यह राशि 50-50 रुपए की 10 किस्तों में दी जा सकेगी। यानी गरीब पर कोई बोझ नहीं, सरकारी दफ्तरों की धूल फांकने, धक्के खाने की कोई जरूरत नहीं, खुद सरकार आम नागरिक की चौखट पर आएगी। ‘सौभाग्य’ योजना पर 16,320 करोड़ रुपए की जो अनुमानित राशि खर्च होगी, उसमें से 14,000 करोड़ से ज्यादा के संसाधन गांवों के हिस्से में दिए जाएंगे। यानी पंडित दीनदयाल उपाध्याय की ‘अंत्योदय’ योजना का एक और विस्तार…विकास की शुरुआत गरीब तथा आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति से की जानी चाहिए। ‘सौभाग्य’ योजना गरीब कल्याण के प्रति भी एक सार्थक प्रतिबद्धता है। प्रधानमंत्री मोदी का दावा है कि ‘सौभाग्य’ से अढ़ाई से तीन करोड़ लोगों को फायदा मिलेगा। जो आबादी और घर 21वीं सदी में भी मोमबत्ती-ढिबरी जलाकर, लालटेन के जरिए, मिट्टी के तेल का दीया जलाकर या किसी और माध्यम से ‘उजालों’ का बंदोबस्त करते रहे हैं, महिलाओं को अंधेरे में ही खाना पकाना पड़ता हो, उनके लिए यह योजना वाकई ‘सौभाग्य’ साबित हो सकती है। योजना में यह भी प्रावधान है कि दूरदराज के इलाकों में सौर ऊर्जा या बैटरी पैक के जरिए बिजली मुहैया कराई जाएगी। उससे पांच एलईडी बल्ब, एक डीसी पंखा और एक प्लग की व्यवस्था हो सकेगी। बैटरी को मोबाइल की तरह चार्ज किया जा सकेगा। बेशक यह योजना जन-धन, उज्ज्वला, मुद्रा बैंक कर्ज, 12 रुपए की किस्त में जीवन सुरक्षा बीमा, आवास योजना सरीखी गरीब और वंचित वर्ग से जुड़ी योजनाओं का अगला पड़ाव है। बेशक ‘सौभाग्य’ की घोषणा के पीछे भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी का नजरिया भी राजनीतिक रहा होगा! योजना को दिसंबर, 2018 तक पूरी तरह से लागू करने का लक्ष्य तय किया गया है। पहले यह लक्ष्य मार्च, 2019 रखा गया था। अगले लोकसभा चुनाव मई, 2019 में संभावित हैं। ऐसी कौन सी सत्ता और राजनीतिक पार्टी है, जो ऐसी घोषणाओं का चुनावी लाभ न लेना चाहती हो? प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा भी उससे अछूते नहीं होंगे, लेकिन सवाल सामाजिक सरोकार और सोच का भी है। यदि ‘सौभाग्य’ वाकई अपने नामकरण को सार्थक करती है, तो वह सकारात्मक विकास का बड़ा उदाहरण होगा। बिजली ऐसा संसाधन है, जो न केवल जीवन शैली बदलता है, बल्कि शिक्षा को भी बढ़ावा देता है। आम आदमी देश के सरोकारों से परोक्ष रूप से जुड़ता है। अब हमारे देश में बिजली संकट का दौर गुजर चुका। अब हमारे पास फालतू बिजली है। देश में कोयले के साथ-साथ ऊर्जा का उत्पादन भी बढ़ा है। इसमें थर्मल के अलावा, सौर, परमाणु, पवन, पनबिजली और गैर परंपरागत सभी तरह की ऊर्जा शामिल है। प्रधानमंत्री मोदी ने इसी योजना के साथ एक आर्थिक सलाहकार परिषद का गठन भी किया है।  इसके अध्यक्ष नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय होंगे और उनके साथ कुछ और अर्थशास्त्री सदस्य के तौर पर जुड़ेंगे। सवाल यह है कि यदि देश का कोना-कोना ‘रोशन’ होगा, तो देश का विकास खुद ही बयां होगा। यदि यह घोषणा खोखली साबित हुई, तो इसका खामियाजा भी प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को ही झेलना पड़ेगा। हम आश्वस्त हैं कि ऐसा नहीं होगा, क्योंकि मोदी संकल्प को सिद्धि तक ले जाने वाले राजनेता हैं।


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