चिंताजनक है शिक्षकों का चारित्रिक पतन

By: Sep 6th, 2017 12:02 am

सुरेश शर्मा

लेखक, राजकीय अध्यापक शिक्षा महाविद्यालय, धर्मशाला में सह प्राध्यापक हैं

हालांकि आज भी बहुत से अध्यापक समर्पण, निष्ठा, लगन व ईमानदारी से शिक्षा जगत में अपने कार्यों का निर्वहन कर रहे हैं। कुछ लोगों के गिरे हुए आचरण व निकृष्ट व्यवहार के कारण सारे शिक्षक समाज को लज्जित होना पड़ता है। इस असुरक्षित वातावरण में माता-पिता का शिक्षकों व शिक्षा व्यवस्था पर विश्वास उठने लगा है…

शिक्षा का मूल उद्देश्य मनुष्य जीवन का संतुलित एवं सर्वांगीण विकास करना है। मानवीय विकास की इस यात्रा में शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, संवेगात्मक, भावनात्मक, सांस्कृतिक विकास के साथ-साथ चारित्रिक विकास होना प्रत्येक नागरिक की आवश्यकता है। किसी भी एक व्यक्ति का चरित्र उसके परिवार, समाज, प्रांत तथा देश के चरित्र को प्रतिबिंबित व परिभाषित करता है। चारित्रिक विकास शिक्षा के बिना संभव नहीं है, चाहे वह पाठशालाओं में औपचारिक शिक्षण हो या परिवार व समाज का अनौपचारिक शिक्षण। शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों को इसी उद्देश्य से कई गतिविधियां व अवसर प्रदान किए जाते हैं, क्योंकि शिक्षा का अंतिम उद्देश्य केवल परीक्षाओं में अच्छे अंक या डिग्रियां प्राप्त करना ही नहीं, बल्कि ऐसे मानवीय यंत्रों का निर्माण करना है, जो कि समाज व राष्ट्रीय विकास में अपना संपूर्ण योगदान दे सकें। इसलिए शिक्षा में चरित्र निर्माण पर बल दिया जाता है। विद्यार्थियों का चारित्रिक विकास तब तक नहीं हो सकता, जब तक उनके जीवन निर्माणकर्ता अध्यापक अपने आप को शिक्षण संस्थाओं व समाज में अनुकरणीय रूप में प्रस्तुत न कर पाएं। शिक्षण संस्थाओं में बच्चों के अभिभावक अपने बच्चों को एक अटूट विश्वास के साथ भेजते हैं तथा यह मान कर कि उनके बच्चे शिक्षण संस्थाओं में सुरक्षित हैं। अभिभावक इसी भरोसे के सहारे माता-पिता तुल्य अध्यापकों के पास उन्हें भेजते हैं। वर्तमान में दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि आज देश में अविश्ववास का वातावरण है। बड़े-बड़े गुरु, बाबा, संत, महात्मा भी चारित्रिक पतन का शिकार हो चुके हैं व अनैतिक कार्यों में संलिप्त हैं। गुरु-शिष्य जैसे संबंध भी कुकर्मों से तार-तार हो रहे हैं। इस तरह से तो समाज, परिवार व संस्थाओं के सारे संबंध अनैतिक आचरण के साए में समाप्त हो सकते हैं। समाज में अविश्वास पनप सकता है। मानवीय संबंधों में बिखराव हो सकता है। हम मनुष्यत्व से पशुत्व की तरफ बढ़ रहे हैं। वर्ष भर के अखबारों के पन्ने पलट कर देखें, तो हम अनाचार, अत्याचार व बलात्कार की घटनाओं के सैकड़ों समाचार पढ़ते हैं। विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि ये दुराचार, परिवार, समाज, रिश्तेदारी के किसी नजदीकी व्यक्ति द्वारा किए जाते हैं। अगर हमारे बच्चे परिवार व शिक्षण संस्थाओं में भी सुरक्षित नहीं हैं, तो यह एक तरह से सामाजिक संबंधों के ताने-बाने के लिए खतरे की घंटी है।

एक उदाहरणीय अध्यापक से जहां जीवन निर्माण, समाज निर्माण व राष्ट्रीय निर्माण की अपेक्षा की जाती है, वहां आज भी कई अध्यापकों को पाठशालाओं के भीतर ही ताश खेलते, नशे में झूमते, बीड़ी-सिगरेट, शराब पीते तथा इस तरह के अनैतिक आचरण करते देखा जा सकता है। इस तरह का आचरण शिक्षा की दृष्टि से अमान्य है तथा व्यावसायिक नैतिकता के बिलकुल विपरीत है। व्यावसायिक नैतिक आचरण का अर्थ अपने निजी, सामाजिक व व्यावसायिक जीवन में विश्वास व गरिमा बनाए रखना तथा उस व्यवसाय के न्याय संगत नियमों का पालन करना होता है। अध्यापन एक पवित्र व्यवसाय है। उसकी पवित्रता बनाए रखना अध्यापक का धर्म व नैतिक जिम्मेदारी होती है। इसके बिना संस्था व समाज का सही अर्थों में विकास नहीं हो सकता। सन् 2016-17 में प्रदेश के स्कूलों में शिक्षकों द्वारा छात्राओं से छेड़छाड़ व बलात्कार की अनेक घटनाएं दर्ज हुई हैं, जो कि शिक्षा व मानवीय दृष्टिकोण से शर्मनाक है। हाल ही में जिला शिमला के कोटखाई में बिटिया दुष्कर्म व हत्या प्रकरण मानवता के ऊपर एक काला धब्बा है। जिला चंबा के तीसा में पाठशाला की छात्रा के साथ बलात्कार शिक्षक तथा शिक्षा पर एक बहुत बड़ा कलंक व प्रश्नचिन्ह है तथा यह शिक्षा व समाज को शर्मसार करने वाली घटना है। कुछ लोगों के गिरे हुए आचरण व निकृष्ट व्यवहार के कारण सारे शिक्षक समाज को लज्जित होना पड़ता है। हालांकि आज भी बहुत से अध्यापक समर्पण, निष्ठा, लगन व ईमानदारी से शिक्षा जगत में अपने कार्यों का निर्वहन कर रहे हैं। गहराई व गंभीरता से अध्ययन करने पर पता चलता है कि इस असुरक्षित वातावरण में माता-पिता का शिक्षकों व शिक्षा व्यवस्था पर विश्वास उठने लगा है। अभिभावक अपने बच्चों को पाठशालाओं की सांस्कृतिक व खेलकूद गतिविधियों में अपने बच्चों को भेजने से कतराने लगे हैं। मानवीय विश्वास समाप्त हो रहा है, संबंध तार-तार हो रहे हैं। आज आवश्यकता है कि अध्यापक अपने आप को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करें। एक आदर्श अध्यापक को अपने आप को विद्यार्थियों, अभिभावकों व समाज के समक्ष उदाहरणीय व अनुकरणीय रूप में प्रस्तुत करना होगा। यदि विद्यालय के भीतर कोई अनैतिक कार्य होता है, तो तुरंत उसकी सूचना पाठशाला के मुखिया व प्रशासन को दें। किसी भी तरह के अनैतिक आचरण को अपने ही स्तर पर न सुलझाएं। शिक्षा का सही व्यवहार, प्रचार-प्रसार व शिक्षण कार्य विद्यार्थियों, अभिभावकों व अध्यापकों के सहयोग बिना नहीं हो सकता। शिक्षकों को इस बात का एहसास होना चाहिए कि उनका चारित्रिक पतन, समाज व राष्ट्र के पतन का कारण बन सकता है।


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