चुनाव की आंखें

By: Sep 27th, 2017 12:05 am

चुनाव आयोग के शिविर में हिमाचल पर दृष्टिपात अब करीब-करीब पूरा हो चुका है। प्रबंधों की बारीकियों और चुनावी तैयारियों का जायजा लेकर आयोग यह सुनिश्चित कर रहा है कि कब घंटी बजा दी जाए। दूसरी ओर नागरिक जागरूकता का नया इतिहास बनाने को आतुर हिमाचल की पलकों पर लोकतांत्रिक इच्छाशक्ति सवार। ऐसे में प्रदेश विश्वविद्यालय की दृष्टिहीन छात्रा मुस्कान ठाकुर को यूथ आइकॉन बनाकर चुनाव आयोग ने हिमाचल के नजरिए को पुख्ता किया है। समाज के लिए चुनाव का त्योहार एक ऐसी परिपाटी है, जहां लोकतांत्रिक इरादे जाहिर होते हैं। चुनाव आयोग के सामने हिमाचल सदैव एक आदर्श मॉडल रहा है और इसी बानगी में मतदाता अपनी संवेदना, तर्क और चिंतन शक्ति का परिचय देता रहा है। भारत में लोकतांत्रिक ढांचे की आंखें जब किन्नौर जैसे कबायली इलाके में खुलीं, तो पहली बार लोकसभा चुनाव का पहला मतदान भी यहीं हुआ। कल्पा का वह चुनावी बूथ आज भी सच्चे-पक्के और अच्छे लोकतंत्र की गवाही देता है। देश के पहले मतदाता श्याम शरण नेगी पुनः हिमाचल विधानसभा चुनाव में एक स्तंभ की मानिंद सारी प्रक्रिया में जोश भर रहे हैं, तो यह प्रदेश की लोकतांत्रिक परिकल्पना है, जिसे साकार करने की तमन्ना में करीब सवा लाख नए मतदाता भी बटन दबाएंगे। यह दीगर है कि श्याम शरण नेगी ने इस दौरान आजादी के लुत्फ को वीरान होते देखा, क्योंकि उन्हें महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी तथा भ्रष्टाचार में फंसे देश को लेकर कोफत होती है। वह देश के मौजूदा राजनीतिक आचरण में युवा आशाओं को आहत होते देखते हैं और सच भी यही है कि चुनाव के मायने तकरीर तक ही सीमित हैं। युवा आकांक्षा व कुंठा के दो छोरों के बीच बहती मतदान की धारा को केवल राजनीतिक संभावना मानना अनुचित है। हर मतदान के साथ कोई न कोई सपना और शर्त है। यह प्रदेश और देश की राजनीति में कुछ अच्छा चुनने का संकल्प है, लेकिन आंधियों में बिखरते पत्तों के मानिंद मत की अभिव्यक्ति भी मौजूदा राजनीतिक रेगिस्तान में गुम हो जाती है। विडंबना यह भी कि मुद्दों की ज्वाला सियासी रंजिश और जीत का अस्त्र बनकर प्रस्तुत होती है, जबकि आम जनता के सवाल अनुत्तीर्ण हैं। प्रदेश में विकास पहले खुद चलकर मतदाता को आवाज देता था, इसलिए सामाजिक सुरक्षा के नारे यथार्थ में बदले, लेकिन अब राजनीति का चेहरा अहंकारी और कदाचारी हो गया। पहले राजनीति के प्रशंसक-समर्थक होते थे, लेकिन अब कार्यकर्ता केवल सत्ता की दुहाई देता है, इसलिए विकास का ठेकेदारी में अनुवाद होता गया। यानी सारी चुनावी प्रक्रिया के बीच बुलंद होते नारों और आक्रोश के बीच सत्ता के टिकटार्थी और लाभार्थी समुदाय का प्रदर्शन। श्याम शरण नेगी ने लोकतंत्र की आंख को किन्नौर के उजालों में देखा और इतिहास गवाह है कि 1951-52 के चुनाव से लेकर आज तक हिमाचल ने प्रगति की है। प्रति व्यक्ति आय या साक्षरता दर के हिसाब से हिमाचल देश का अग्रणी राज्य बना, तो इसलिए मतदाता की जागरूकता सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हुई। सरकारों के सिंहासन बदलने और नए समीकरणों को आजमाने की खोज में हिमाचली जनता हमेशा लोकतंत्र का चिराग लेकर चलती है। इसलिए जब चुनाव आयोग दृष्टिबाधिक युवा चेहरे को आगे लाता है, तो चुनाव की आंखें पूरी तरह देखती हैं। यह हिमाचली अस्तित्व को सदा रोशन रखने का प्रतीक है कि यूथ आइकॉन उस बहादुर बेटी मुस्कान ठाकुर को बनाया जा रहा है, जो अपने अभिभावकों और समाज के लिए मशाल की तरह रोशन है। विडंबना यह है कि राजनीति का वर्तमान दौर अंधा हो चला है। नेता अपनी दृष्टि का सही इस्तेमाल न करते हुए अपने परिवार और स्वार्थ तक सिमट गए हैं। बदलते दौर की एक दूसरी कहानी मुस्कान ठाकुर भी है, जो अपनी पैदायशी कमजोरी से लड़ते हुए विजयी है। ऐसे में मत प्रतिशतता को सक्षम मतदान में बदलने की शर्त यही है कि जब मतदान करें तो खुली आंखों से यह सुनिश्चित करें कि हम जाति, क्षेत्र या समुदाय की सोच से भिन्न, देश और प्रदेश के हित में स्वतंत्र व निष्पक्ष होकर फैसला ले रहे हैं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App