जयलाल नागट ने नमक का कानून तोड़ा

By: Sep 27th, 2017 12:05 am

17 अप्रैल, 1921 ईस्वी को जयलाल ने विदेशी कपड़ों की होली जलाने और स्वदेशी ग्रहण करने में भाग लिया। वह पालमपुर और ठियोग के क्षेत्रों में भी काफी सक्रिय थे। 1920-22 में इन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया। 1936 से 1959 ईस्वी  तक पालमपुर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। 1931 ईस्वी में नमक का कानून तोड़ा…

श्री जीवन शर्मा

इनका जन्म मंडी जिला के पांगणा उप-मंडल में पांगणा गांव में 1917 ई. में हुआ। इन्होंने सुकेत सत्याग्रह में भाग लिया और जेल भेजे गए, परंतु सामाजिक सेवा के लिए इनका उत्साह निरंतर जारी रहा और बाद में इन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया। इनका निधन 4 जनवरी, 2010 ई. को 93 वर्ष की आयु में हुआ। इनको प्रदेश सरकार द्वारा सम्मानित किया गया और इन्हें स्थानीय तौर पर ‘जिउणु पंडित’ कहते थे

श्री कांशी राम

इन का जन्म जिला बिलासपुर, डाकघर चांदपुर गांव चंदवाड़ में 1918 ई. में हुआ। इनके पिता का नाम श्री जिंदू राम था। 1935 ई. में यह स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष में शामिल हुए। 1942 ईस्वी में इन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। इसके लिए कठोर कारावास के लिए  इनको लुधियाना जेल भेजा गया। 1945 ई. में फिरोजपुर प्रजा मंडल आंदोलन में शामिल हुए और इन्होंने रियासत के लोगों को उकसाया। 1946 और 1947 ई. में लुधियाना और अमृतसर में राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े रहे। इनको प्रदेश सरकार द्वारा सम्मानित कर ताम्रपत्र भेंट किया गया।

श्री जयलाल नागट

इनका 27 नवंबर, 1909 ईस्वी को शिमला में 6 आइना लॉज दिग्गल एस्टेट में हुआ। उनके पिता श्री मोहन लाल नागट थे। इनकी शिक्षा प्राइमरी तक हुई और इन्हें अंग्रेजी, हिंदी, पंजाबी और संस्कृत का औपचारिक ज्ञान था। 17 अप्रैल, 1921 ईस्वी को इन्होंने विदेशी कपड़ों की होली जलाने और स्वदेशी ग्रहण करने में भाग लिया। वह पालमपुर और ठियोग के क्षेत्रों में भी काफी सक्रिय थे। 1920-22 में इन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया। 1936 से 1959 ईस्वी  तक पालमपुर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। 1931 ईस्वी में नमक का कानून तोड़ा। 1941 ई. में वह धर्मशाला गुरदासपुर और सियालकोट में 6 महीने जेल में रहे। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 24 अगस्त, 1942 ईस्वी से जून 1944 तक उन्हें आबेरी गांव में घर में ही कैद रखा गया। 14 मार्च, 1947 को उन्हें 3 महीने के लिए पालमपुर तहसील से निर्वासित किया गया। वह पंडित पद्म देव और सरदार दरबारा सिंह व मंगत राम खन्ना के साथ जेल में रहे। 1936 से 1958 तक वह आर्य समाज पालमपुर के प्रधान रहे। उनको राज्य सरकार द्वारा 1972 में ताम्रपत्र से सम्मानित भी किया गया।


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