जैविक खेती में निहित हैं खुशहाली के बीज

By: Sep 7th, 2017 12:02 am

कर्म सिंह ठाकुर

 लेखक, सुंदरनगर, मंडी से हैं

युवाओं के हाथों में कृषि व्यवस्था में रोजगार के साधन उपलब्ध  कराए जाएं, तो युवा पीढ़ी भी नए भारत निर्माण में अपना योगदान दे सकती है। किसान व युवा वर्ग किसी भी राष्ट्र की दिशा व दशा बदलने का दम रखते हैं। जैविक खेती को अपनाकर युवाओं व किसानों के भविष्य को संवारा जा सकता है…

कृषि व्यवस्था जीवन का महत्त्वपूर्ण पहलू है। भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी कृषि ही है। प्राचीन समय में खेतीबाड़ी गोबर, गोमूत्र व देशी प्रयोगों पर आधारित थी। उस समय किसानों को भारी-भरकम धन रासायनिक उर्वरकों या खरपतवारों पर नहीं खर्चना पड़ता था, इसीलिए किसानों की आर्थिकी काफी सुदृढ़ थी। उस दौरान कृषि उत्पाद भी स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद गुणकारी थे। आधुनिकता की अंधी दौड़ में कृषि व्यवस्था में कीटनाशकों व यूरिया के प्रयोग से फसलों की पैदावार में तो बढ़ोतरी हुई, लेकिन गुणवत्ता का स्थान विषैले व मानव जीवन के लिए घातक कीटनाशकों ने ले लिया। आज की कृषि पूर्ण रूप से जहरीली हो चुकी है। अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग एक तरफ भूमि की उर्वरकता को नष्ट कर रहा है, वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। उपभोक्ता पैसे देकर जहर खरीद रहा है। जानलेवा बीमारियां जैसे हार्ट अटैक, कैंसर, दस्त, उल्टियां, अपच कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग का ही नतीजा है। एक तरफ आज की युवा पीढ़ी कृषि से अपना मुंह मोड़ रही है, वहीं औद्योगिकीकरण, विकासशील गतिविधियों तथा बढ़ती जनसंख्या भूमि को सिकोड़ रही है। ऐसी परिस्थिति में जिस बची-खुची भूमि पर खेती हो रही है, वह पूर्ण रूप से विषैली हो चुकी है। कभी मौसम की मार, कभी बीज व अन्य कृषि उपकरणों के अभाव से किसान पिसता रहता है।

ऐसे में कृषि व्यवस्था को अपनाना घाटे का सौदा बन गया है। यही कारण है कि युवा पीढ़ी कृषि से हट कर महज चंद रुपए के लिए नौकरी करने को मजबूर हो गई है। गर्त में जाती कृषि व्यवस्था को बचाने का एकमात्र उपाय जीरो बजट आर्गेनिक खेती ही हो सकती है। जैविक खेती बिना कोई धन खर्च करके की जा सकती है। किसानों को देशी गउओं के गोबर और गोमूत्र का प्रयोग कीटनाशकों और खाद के रूप में करके, महंगे व हानिकारक कीटनाशकों पर पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा। गोमूत्र में जहरीले पौधे खासकर नीम का प्रयोग करके फसलों की गुणवत्ता को बरकरार रखा जा सकता है। जैविक कृषि की कई ऐसी विशेषताएं हैं, जिन्हें जानकर हम समझ सकते हैं कि जैविक खेती आज के समय की जरूरत क्यों बन चुकी है? इसका पहला और महत्त्वपूर्ण लाभ है कम लागत तथा उपलब्धता। जैविक खादों को सल्फर, जिंक तथा अन्य रासायनिक तत्त्वों की तुलना में स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कृषि के व्यर्थ उत्पादों द्वारा अपेक्षाकृत सस्ती दर पर खादों का निर्माण किया जा सकता है। जब जैविक खेती के प्रचलन को प्रोत्साहन दिया जाए, तो अधिकाधिक किसानों द्वारा रासायनिक उर्वरकों व खादों पर बर्बाद होने वाली मुद्रा को बचाया जा सकता है। खेती की इस विधा में उत्पादन एवं पोषण में अपेक्षाकृत अंतर साफ देखा जा सकता है। जैविक खादों से उत्पादित वस्तुओं में गुणवत्ता, पौष्टिकता एवं ठहराव की स्थिति ज्यादा होती है, जबकि रासायनिक खादों से उत्पादित वस्तुओं में साइड इफेक्ट ज्यादा होते हैं। संभवतः इसी वजह  से डाक्टर या वैद्य अपने मरीजों को यह सलाह दिया करते हैं कि वे जैविक खादों द्वारा उत्पादित वस्तुओं का अधिकाधिक मात्रा में सेवन किया करें। रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग ने जल, जंगल व जमीन को दूषित ही किया है। ऐसे में पर्यावरण को बचाने की दिशा में भी जैविक खेती एक कारगर उपाय साबित हो सकती है।

एक गाय का गोबर पांच बीघा जमीन की खेती के लिए उपयुक्त रहता है। साथ में दूध भी प्राप्त होता है, जबकि बड़ी कंपनियां आर्गेनिक फार्मिंग से फसलें तैयार करने के नाम पर मोटी कमाई कर रही हैं। इस संदर्भ में किसानों में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है। किसान खुद समर्थवान हैं, वे अपनी मेहनत से फसलें पैदा कर सकते हैं। बाजार में जैविक उत्पादों की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। मांग अच्छी हो तो दामों का अच्छा मिलना स्वाभाविक ही है। आज का डिग्री धारक युवा लाखों रुपए खर्च करके महज पांच-सात हजार की नौकरी के लिए घूमता-फिरता रहता है। यदि युवा वर्ग को जीरो बजट खेती की ओर लगाया जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वर्ष 2022 तक देश में फसल उत्पादन व किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य पूरा हो सकता है। युवाओं को रोजगार भी उपलब्ध होगा। कृषि व्यवस्था में फैली गंदगी को भी साफ किया जा सकता है। उत्पादन प्रणाली स्वच्छ, समृद्ध व संपन्न होगी तो स्वतः ही बाजार में भी स्वास्थ्यवर्द्धक उत्पाद उपलब्ध होंगे। स्वस्थ भारत के निर्माण के लिए स्वच्छ उत्पादन व ईमानदार विपणन प्रणाली का होना अति आवश्यक है। किसान समृद्ध हो गया, तो देश की गिरती अर्थव्यवस्था को भी बचाया जा सकता है। युवाओं के हाथों में कृषि व्यवस्था में रोजगार के साधन उपलब्ध  कराए जाएं, तो युवा पीढ़ी भी नए भारत निर्माण में अपना योगदान दे सकती है। किसान व युवा वर्ग किसी भी राष्ट्र की दिशा व दशा बदलने का दम रखते हैं। जैविक खेती को अपनाकर युवाओं व किसानों के भविष्य को संवारा जा सकता है। सिक्किम जैसा छोटा सा राज्य जैविक खेती की सफलता का गवाह है।

ई-मेल : ksthakur25@gmail.com


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