…तो अवैध कब्जे कौन हटाएगा

By: Sep 18th, 2017 12:05 am

‘‘उम्मीदों की नींव पर ही सही, इक पुल चाहिए। गांव-शहर से जुड़ें, डग भरने का हमें भी हक चाहिए।’’ मगर विडंबना यही रही कि लगातार उम्मीदों के कई पुल ढह गए और कई सोचे भी न जा सके। भौगोलिक परिस्थितियां सियासत के दृष्टिकोण पर इतनी भारी पड़ेंगी यही सोच कर भाषणबाजों पर तरस आता है। जब पता चलता है कि फलां भवन का नींव पत्थर 1980 में रखा गया या फिर 15 बर्ष से उद्घाटन को तरस रही सड़क। या फिर शहीद अथवा स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर घोषणाएं। ये तमाम बातें कुछ समय बाद जनता को सुविधा नहीं मिलने पर एक टीस जरूर दे जाती है। जनता को मतदाता समझने वाले राजनेताओं को पांच वर्ष बाद याद आती है, तब तक लोग ऊब चुके होते हैं और फिर अपने हकों की आवाज उठाते हैं। लोगों के इसी दर्द का हिस्सा बनने के लिए प्रदेश के अग्रणी मीडिया ग्रुप ‘दिव्य हिमाचल’ अपनी नई सीरीज ‘हक से कहो’ के तहत जनता की आवाज बनकर आगे आ रहा है।

न पार्किंग… न बस स्टैंड मिला

गांव रक्कड़ के अशोक का कहना है कि जनता सैकड़ों समस्याओं से जूझ रही है । जितना यह क्षेत्र विकसित होना चाहिए था उतना नहीं हो पाया।

* 1967 के बाद से आज तक सरकारें पंचरुखी शहर को बेहतर पार्किंग सुविधा व बस स्टैंड नहीं दे पाई हैं । वर्षों से भूमि न होने की बात करती रहीं पर सैकड़ों अवैध कब्जों पर किसी ने कार्रवाई नहीं की।

* विश्व मानचित्र पर यह क्षेत्र  चित्रकार सोभा सिंह, नाटककार नोरा रिचर्ड व पोटरी के चलते अंद्रेट्टा पंचरुख़ी अंकित है । देश-विदेश से हजारों पर्यटकों का यहां आना-जाना है,  पर  सरकारें इस शहर को आज तक पर्यटक दृष्टि से विकसित नहीं कर पाईं।

* सरकारें हर बार आश्वासनों की झड़ी लगाती रहीं, पर जमीनी स्तर पर लोगों को एक भी सुविधा मुहैया नहीं करवाई गई। पर्यटन के नाम से भवन बना वह भी वर्षों से आधा अधूरा है

अनाज बेचने वाले खुद खरीद रहे

भुआणा से किसान मनजीत का कहना है । यहां पर सरकारों ने वोट की राजनीति ही की। क्षेत्र के उत्थान के लिए मात्र भाषण व आस्वासन देकर जनता को बेवकूफ बना कर चलते बने।

*  बंदरों के आतंक के चलते किसानों ने खेती करना छोड़ दिया है। खुद के लिए अनाज रखकर कुछ अनाज बेचने वाले किसान आज खुद बाजार से राशन खरीदने के लिए मजबूर हो गए हैं।

*  पंचायतों में गोसदन बनाने की मुहिम भी सिरे नहीं चढ़ पाई, जिससे लावारिस पशु फसलों को चट कर रहे हैं

*  सड़कें दम तोड़ रही हैं। सरकारें आती है व चुनावों के निकट घोषणा कर चलती बनती हैं । बेहतर सड़कें बनाने की इच्छा शक्ति सरकारों में आज तक नजर नहीं आई।

*  1967 में आस्तित्व में आए इस क्षेत्र में आज तक कोई तकनीकी संस्थान सरकारें नहीं दे पाईं।

* सरकारें रोजगार देने का दम भरती हैं, लेकिन यहां पीडब्ल्यूडी, सिंचाई एवं स्वास्थ्य विभा व बिजली बोर्ड के कार्यालयों में स्टाफ की कमी है।

15 साल में सिर्फ दो ट्रेड

एमसी कटोच का कहना है कि दोनों सरकारों  ने क्षेत्र के प्रति उपेक्षित रवैया ही अपनाए रखा । आज भी दर्जनों मूलभूत सुविधाओं से क्षेत्र वंचित है। सुविधाएं न मिलने से लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

*  पंचरुखी में 2002 में आईटीआई  संस्थान खोला गया। 15 वर्षों से यहां सिर्फ दो ट्रेड ही सरकारी हैं, बाकी 13 यूनिट निजी है। इससे अभिभावकों की जेब पर डाका पड़ रहा है। हालांकि यहां इस वक्त 33 सरकारी पोस्टें हैं ।

*  2013 में पंचरुखी को सब-तहसील मिली, पर अभी तक भवन तो दूर, भूमि तक उपलब्ध नहीं हो पाई है ।

*  क्षेत्र के लोग वर्षों से फायर स्टेशन की मांग कर रहे हैं । प्राकृतिक आपदाओं से जूझते इस क्षेत्र में फायर स्टेशन का होना आवश्यक है, परंतु सरकारों ने झूठे आश्वासनों के सिवाय कुछ नहीं दिया।

*  क्षेत्र से गुजरने वाली ट्रेन को बाबा आदम के जमाने के इंजन खिंच रहे हैं । सरकारें यहां बेहतर इंजन ला पाने में असमर्थ रहीं। इसस लोगों को आए दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।


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