दलित शोषण का अनुच्छेद-35 (ए)

By: Sep 2nd, 2017 12:08 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

newsबाबा साहेब ने पंडित नेहरू को पत्र लिखा था कि वह दलित समाज को पाकिस्तान से वापस लाने की व्यवस्था करें, क्योंकि दलित समाज केवल सफाई कर्मचारियों का काम करने के लिए नहीं है। अंबेडकर को क्या पता था कि उनके आंखें मूंदते ही, जवाहर लाल नेहरू के सक्रिय मार्गदर्शन में ही चलने वाली जम्मू-कश्मीर सरकार वाल्मीकियों को धोखे से बुला कर दशकों के लिए केवल स्वीपर का ही काम करने के लिए बाध्य कर देगी। इस प्रकार के अन्यायों के खिलाफ जब कोई अंगुली उठाता है, तो उसके पेट में अनुच्छेद-35(ए) की कटार राज्य सरकार घोंप देती है…

जम्मू-कश्मीर के संविधान में धारा छह वहां के स्थायी निवासी को पारिभाषित करती है। भारत का वही नागरिक वहां का स्थायी निवासी बन सकता है जो या तो 1954 में वहां का स्थायी निवासी हो या फिर उसके पूर्वज 1944 से वहां रह रहे हों और उनके पास राज्य में अचल संपत्ति हो। वहां का स्थायी निवासी ही राज्य में जमीन खरीद सकता है, नौकरी पा सकता है, शिक्षा संस्थानों में दाखिल हो सकता है, विधानसभा के लिए चुनाव लड़ सकता है या फिर उस चुनाव में मतदान कर सकता है। उससे भी बड़ी बात है कि जम्मू-कश्मीर की कार्यपालिका ने ही भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद-35(ए) डाल दिया है, जिसकी खबर भारतीय संसद को भी नहीं लगने दी। इस नए अनुच्छेद में यह व्यवस्था कर ली कि स्थायी निवासी को लेकर जम्मू-कश्मीर सरकार जो भी कानून बनाएगी, चाहे वह संविधान के विपरीत ही क्यों न हो, उसे किसी भी सूरत में असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकेगा। सरकार का कहना था कि जम्मू-कश्मीर खास राज्य है, इसलिए उससे सामान्य तरीके से व्यवहार नहीं किया जा सकता।

अब सवाल उठता है कि यह खास क्यों है? यह खास इसलिए है, क्यों क्योंकि यह मुस्लिम बहुल है। लेकिन यह पूरी घेराबंदी करने पर जम्मू-कश्मीर सरकार ने स्थायी निवासी की परिभाषा और अवधारणा का इस्तेमाल दलित समाज के शोषण व दमन के लिए शुरू किया। राज्य सरकार के सामने बड़ा प्रश्न था कि राज्य में शौचालयों और अन्य सफाई से जुड़े काम कौन करेगा? लेकिन इसका इलाज भी उसने सोच रखा था।  जैसे ही 1957 में जम्मू-कश्मीर में नया संविधान लागू हुआ, राज्य सरकार ने पंजाब के वाल्मीकि समाज पर डोरे डालने शुरू कर दिए कि वे जम्मू-कश्मीर में आएं, वहां उनके लिए नौकरी और शिक्षा के बेहतर अवसर उपलब्ध हैं। वाल्मीकि समाज क्या, पंजाब का बच्चा-बच्चा तब तक जान गया था कि राज्य में बेहतर अवसर तो क्या, किसी भी नागरिक को उपलब्ध होने वाले सामान्य अधिकार भी उपलब्ध नहीं हैं।

स्थायी निवासी का प्रमाण पत्र न होने पर कोई व्यक्ति चाहे सारी उम्र जम्मू-कश्मीर में गुजार दे, तब भी कोई अवसर उसके नजदीक नहीं फटकेगा। लेकिन राज्य सरकार को तो सफाई के लिए स्वीपर हर हालत में चाहिए थे, इसलिए उसे पंजाब के वाल्मीकि समाज को सब्ज बाग दिखाने थे। उसने पंजाब के दो सौ वाल्मीकि परिवारों को लालच दिया कि यदि वे रियासत में आकर सफाई से जुड़े काम करने के लिए तैयार हैं, तो उन्हें राज्य के स्थायी निवासी का प्रमाण पत्र और अन्य सभी सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। राज्य सरकार स्वयं भी जानती थी कि यह काम वह राज्य के संविधान में बिना संशोधन किए नहीं कर सकती। लेकिन सरकार ने पंजाब के अनुसूचित जाति के वाल्मीकियों को धोखे से रियासत में बुला लिया। आश्चर्य इस बात का कि यह निर्णय भी वहां के मंत्रिमंडल ने लिया। इस प्रकार से इन वाल्मीकियों को स्वीपर के काम में लगा दिया गया। यह ठीक है कि उन्हें सरकार ने स्थायी निवासी के प्रमाण पत्र भी जारी कर दिए। लेकिन उन्हें स्थायी निवासी के जो प्रमाण पत्र जारी किए गए, उन पर दर्ज कर दिया गया कि वे केवल स्वीपर के नाते काम करने के लिए ही योग्य होंगे।

आज छह दशक बाद, जब उन परिवारों की संख्या भी बढ़ गई है, उनके बच्चे पढ़-लिख गए हैं, लेकिन नौकरी के नाम पर वे केवल स्वीपर ही लग सकते हैं। वे राज्य में जमीन नहीं ले सकते और उनके बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए राज्य से बाहर जाना पड़ता है। यदि मान भी लिया जाए कि संविधान राज्य सरकार को स्थायी निवासियों के वर्ग बनाने का अधिकार देता है तो क्या राज्य सरकार को यह अधिकार भी देता है कि स्थायी निवासी का एक वर्ग केवल स्वीपर का काम ही कर सकता है? कोई भी सरकार, चाहे वह कितनी भी खास क्यों न हो, यह कैसे कह सकती है कि उसके राज्य में वाल्मीकि समाज केवल स्वीपर का ही काम कर सकता है? चाहे वह कितना भी पढ़-लिख जाए या कितना भी योग्य हो, लेकिन जम्मू-कश्मीर सरकार उसे केवल स्वीपर के काम के योग्य ही समझती है। इसी सामाजिक अन्याय का विरोध बाबा साहिब भीमराव अंबेडकर सारी आयु संघर्ष करते रहे। उन्होंने दलित समाज के लिए ही कुछ विशेष काम नियत किए गए हैं, इसको कभी स्वीकार नहीं किया। अंबेडकर का कहना था कि किसी भी व्यक्ति को अपनी योग्यता और रुचि के अनुसार काम चुनने का अधिकार होना चाहिए। लेकिन जम्मू-कश्मीर सरकार ने पंजाब के हजारों वाल्मीकियों को एक प्रकार से बंधक बना रखा है और उन पर स्वीपर का काम बलपूर्वक लाद रही है। यह शोषण के विरुद्ध अधिकार का खुले तौर पर उल्लंघन है और भारत के संविधान के अनुसार तो यह अपराध की श्रेणी में माना जाएगा। इसका अर्थ तो यह हुआ कि जम्मू-कश्मीर सरकार स्थायी निवासी प्रमाण पत्र के नाम पर स्थायी निवासियों से ही भेदभाव नहीं कर रही, बल्कि वह जाति के आधार पर भी भेदभाव कर रही है। जब पाकिस्तान बना था तो वहां की सरकार दलित हिंदुओं को भारत आने से रोक रही थी। उसकी दलील थी कि इनके चले

जाने से पाकिस्तान के नगरों में सफाई का काम कौन करेगा?

तब बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने दलित समाज के लोगों से अपील की थी कि वे किसी भी स्थिति में पाकिस्तान में न ठहरें और भारत आ जाएं। उन्होंने तो यह भी कहा था कि उनमें से यदि कुछ को जबरदस्ती मुसलमान भी बना लिया गया है, तो वे चिंता न करें और आ जाएं, उन्हें स्वयं ही शुद्ध कर लिया जाएगा। बाबा साहेब ने पंडित जवाहर लाल नेहरू को भी पत्र लिखा था कि वह दलित समाज को पाकिस्तान से वापस लाने की व्यवस्था करें, क्योंकि दलित समाज केवल सफाई कर्मचारियों का काम करने के लिए नहीं है । अंबेडकर को क्या पता था कि उनके आंखें मूंदते ही, जवाहर लाल नेहरू के सक्रिय मार्गदर्शन में ही चलने वाली जम्मू-कश्मीर सरकार वाल्मीकियों को धोखे से बुला कर दशकों के लिए केवल स्वीपर का ही काम करने के लिए बाध्य कर देगी। इस प्रकार के अन्यायों के खिलाफ जब कोई अंगुली उठाता है, तो उसके पेट में अनुच्छेद-35(ए) की कटार राज्य सरकार घोंप देती है।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com

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