दशहरे का मेला

By: Sep 24th, 2017 12:05 am

मौसम बदल रहा था और हल्की-हल्की ठंड पड़ने लगी थी। इसी बीच न जाने कैसे छोटू बीमार पड़ गया। मोहल्ले के सारे बच्चों में उदासी छा गई। सबका दादा और शरारतों की जड़ छोटू अगर बिस्तर में हो तो दशहरे की चहल- पहल का मजा तो वैसे ही कम हो जाता। ऊपर से अबकी बार मम्मयों को न जाने क्या हो गया था। रमा आंटी ने कहा कि अबकी बार मेले में खर्च करने के लिए बीस रुपए से ज्यादा नहीं मिलेंगे, तो सारी की सारी मम्मियों ने बीस रुपए ही मेले का रेट बांध दिया। मेला न हुआ, आया का इनाम हो गया। बीस रुपए में भला कहीं मेला देखा जा सकता था। यही सब सोचते-सोचते हेमंत धीरे-धीरे जूते पहन रहा था कि नीचे से कंचू ने पुकारा। हेमंत, हेमंत चौक नहीं चलना है क्या। दुर्गा पूजा की छुट्टियां हो गई थीं। मामा जी के घर के सामने वाले पार्क में हर शाम को ड्रामा होता था। हर बार सबके नए कपड़े सिलते और घर भर में हंगामा मचा रहता। अबकी बार कंचू ने गुलाबी रंग की रेशमी फ्राक सिलाई थी और ऊंची एड़ी की चप्पलें खरीदी थीं। आशू और स्टैकू मिलकर बार-बार उसकी इस अलबेली सजधज के लिए उसे चिढ़ा देते। शाम को वे लोग शहर में लगी रंगीन बत्तियों की रौनक देखते हुए चौक पहुंचे और घर में घुसते ही खाने की मेज पर जम गए। मामी ने खाने का जबरदस्त इंतजाम किया था। आशू के पसंद की टिक्कियां कंचू की पसंद के आलू और स्टैकू की पसंद की गरमागर्म चिवड़े-मूंगफली की खुशबू घर में भरी थी। रवि की पसंद के सफेद रसगुल्ले मेज पर आए तो सबको रवि की याद आ गई। मामी ने जोर से आवाज दी। ‘आया मां’ रवि की आवाज सबसे ऊपर वाले कमरे से आई। ‘अरे यह रवि ऊपर क्या कर रहा है। कंचू ने अचरज से पूछा। मामी ने बताया कि अबकी बार नाटक में उसने भी भाग लिया है इसलिए वह ऊपर टिंकू के साथ कार्यक्रम की तैयारी और रिहर्सल में लगा हुआ है। थोड़ी देर में पूरा मेकअप लगाए हुए टिंकू नीचे उतरा तो सभी उसे देखकर खिलखिला कर हंस दिए। टिंकू ने शरमा कर मुंह फेर लिया। ‘हमें अपने नाटक में नहीं बुलाओगे’ हेमंत ने पूछा। तो क्या तुम्हें हमारे नाटक के टिकट नहीं मिले। रवि ने अचरज से कहा, टिकट तो सारे स्टैकू के पास थे। ‘अरे हां जल्दी-जल्दी में टिकट मैं तुम्हें देना भूल गया, स्टैकू ने गिनकर तीन टिकट आशु, सोनू और कंचू के लिए निकाले। सोनू ने पूछा, बिना टिकट नाटक देखना मना है क्या। रवि ने कहा मना तो नहीं है, लेकिन कुर्सियां हमने टिकट के हिसाब से लगाई हैं। अरे तुम लोगों का अभी तक नाश्ता नहीं खत्म हुआ, देखो, रामदल के बाजे सुनाई पड़ने लगे। नाश्ता खत्म करे बिना घूमने को नहीं मिलेगा। फिर रात के बारह बजे तक तुम लोगों का कोई अता-पता नहीं मिलता। मामी ने रसोई में से ही चिल्लाकर कहा। जल्दी-जल्दी खा-पीकर वे सब ऊपर के छज्जे पर आ गए। मामा जी ने दल पर फेंकने के लिए ढेर-सी फूलों की डालियां खरीद ली थी। उन्होंने राम लक्ष्मण पर डालियां फेंकी, रामदल का मजा लिया और नीचे आ गए। पार्क में पहुंचे तो नाटक शुरू होने ही वाला था। सबने अपनी-अपनी कुर्सियां घेर लीं। थोड़ी देर में दर्शकों की भीड़ इतनी बढ़ गई कि पूरा पार्क भर गया। कुर्सियों के आसपास खड़े लोग कुर्सियों पर गिरे पड़ते थे, मानो तिल रखने को भी जगह नहीं थीं। इस सबसे घबराकर सोनू घर चलने की जिद करने लगा। थोड़ी देर तो वे लोग वहां बैठे पर जब उसने अधिक जिद की तो वे उठे और भीड़ में से किसी तरह रास्ता बनाते गिरते पड़ते सड़क पर आ गए। आशू ने एक मूंगफली वाले से मूंगफली खरीद कर अपनी सारी जेबें भर लीं और सभी बच्चों ने अपने पसंद की चीजें खरीदीं। वे घर लौट कर आए तो मामा जी ने कहा, अब तुम सब कार में बैठो, मैं तुम्हें घर छोड़ आऊं। सिर्फ आइस्क्रीम और मूंगफली में ही पंद्रह रुपए खर्च हो गए। फिर बीस रुपए में मेला कैसे देखा जाएगा। मामाजी मुस्करा कर बोले, मेले में तुम्हें मिठाइयां ही खरीदनी होती हैं न चलो भाई, अबकी बार मिठाई हम खरीद देंगे। बीस रुपए जमा करके तुम पुस्तकालय के सदस्य बन जाओ और नियमित रूप से पुस्तकें पढ़ो तो साल भर तुम्हारा ज्ञान भी बढ़ेगा और मनोरंजन भी होगा। सोनू ने पूछा, तो मामा जी, पुस्तकालय में कॉमिक्स भी मिलती हैं क्या। ‘हां- हां सब तरह की किताबें होती हैं वहां। कॉमिक्स से लेकर विज्ञान तक हर विषय की। कल सुबह तैयार रहना, तो तुम्हें पुस्तकालय दिखा लाऊंगा। बच्चे घर लौटे तो मेले की मिठाइयां भूलकर पुस्तकालय की बातें करने लगे। सामने दुर्गा जी के मंदिर में अष्टमी की आरती के घंटे बजने शुरू हुए तो दादी जी ने याद दिलाया, आरती लेने नहीं चलोगे क्या। यह पुकार सुन सभी बच्चे दादी जी के साथ आरती लेने चल दिए।


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