धारी माता मंदिर

By: Sep 16th, 2017 12:07 am

Aasthaदेश के कई कोनों में प्राचीन मंदिर हैं और उससे जुड़े कई रहस्य व चमत्कार की बातें, किस्से व कहानियां लोगों से सुनने को मिलती हैं। एक ऐसा ही मंदिर है, जहां देवी की मूर्ति एक दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। यह चामत्कारिक मंदिर धारी माता का है, जो बद्रीनाथ व केदारनाथ मार्ग से लगभग 15 किमी. दूर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। मंदिर में स्थित पुजारियों के अनुसार यह गाथा है कि एक रात जब भारी बारिश के चलते नदी में जल बहाव तेज था, धारी गांव के समीप एक स्त्री की बहुत तेज ध्वनि सुनाई दी, जिससे गांव के लोग सहम गए। जब गांव के लोगों ने उस स्थान के समीप जाकर देखा तो वहां पानी में तैरती हुई एक मूर्ति दिखाई दी। किसी तरह पानी से ग्रामीणों ने वो मूर्ति निकाली, तो उसी दौरान देवी ने उन्हें मूर्ति उसी स्थान पर स्थापित करने का आदेश दिया। धारी गांव के लोगों ने इस स्थल को धारी देवी का नाम दिया। मां धारी देवी मंदिर पौड़ी गढ़वाल से करीब 15 किमी. दूर कलियासौड़ मार्ग व रुद्रप्रयाग से करीब 26 किमी. की दूरी पर स्थित है।  मंदिर में मां धारी की पूजा-अर्चना धारी गांव के पंडितों द्वारा की जाती है। यहां के तीन भाई पंडितों द्वारा चार-चार माह पूजा-अर्चना की जाती है। पुजारियों के अनुसार मंदिर में मां काली की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है। कालीमठ एवं कालीस्य मठों में मां काली की प्रतिमा क्रोध मुद्रा में है, परंतु धारी देवी मंदिर में काली की प्रतिमा शांत मुद्रा में स्थित है। मंदिर में स्थित प्रतिमाएं साक्षात व जाग्रत के साथ- साथ पौराणिक काल से ही विद्यमान हैं। जनश्रुति के अनुसार मंदिर में स्थित मां काली प्रतिदिन तीन रूपों में परिवर्तित होती है। प्रातः कन्या, दोपहर में युवती व सायंकाल में वृद्धा रूप धारण करती है। मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र व शारदीय नवरात्रों में हजारों श्रद्धालु अपनी मनौतियों के लिए दूर- दूर से पहुंचते हैं। मां धारी देवी मंदिर का इतिहास पौराणिक होने के साथ ही रोचक भी है। वर्ष 1807 से ही मंदिर में अनेकों प्राचीन अवशेष हैं, जो इसके साक्ष्य को प्रमाणित करते हैं। हालांकि 1807 से पहले बाढ़ के दौरान कुछ साक्ष्य नष्ट हो गए थे। बताया जाता है कि जब शंकराचार्य जी इस मार्ग से ज्योतिर्लिंग की स्थापना हेतु जोशीमठ गए, तो रात्रि विश्राम श्रीनगर में किया। इस दौरान अचानक उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई थी, तत्पश्चात उन्होंने मां धारी देवी की आराधना की, जिससे कुछ समय बाद ही उनकी तबीयत में अचानक सुधार हुआ, इसके बाद शंकराचार्य ने मां धारी देवी की आराधना शुरू की।

 


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