पेट्रोल कीमतों ने बिगाड़ी बजट की चाल

By: Sep 23rd, 2017 12:02 am

विजय शर्मा

लेखक, हमीरपुर से हैं

तेल की घटी कीमतों का लाभ उपभोक्ताओं को न देकर सरकार उनसे छल कर रही है। अब तो सरकार के मंत्री खम ठोंककर कह रहे हैं कि गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं हेतु उनका ऐसा करना अनिवार्य है, लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम कि पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने की सबसे ज्यादा मार गरीबों को ही पड़ती है…

सितंबर 2013 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 109.45 डालर प्रति बैरल थी। तब पेट्रोल के दाम दिल्ली में 76.06 रुपए प्रति लीटर, कोलकाता में 83.63 रुपए प्रति लीटर, मुंबई में 83.62 रुपए प्रति लीटर थे। तब भाजपा ने देश भर में धरना-प्रदर्शन करके खूब पुतले फूंके थे और कई बार लोकसभा तथा राज्यसभा की कार्यवाही बाधित की थी। इस साल सितंबर, 2017 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 54.58 डालर प्रति बैरल है। सितंबर, 2013 की तुलना में इस महीने पेट्रोल 54.89 डालर प्रति बैरल सस्ता है। आज दिल्ली में पेट्रोल 70.49 रुपए, कोलकाता में 73.25 रुपए और मुंबई में 79.62 रुपए प्रति लीटर के भाव बिक रहा है। इससे जनता में भारी रोष है। रोष विपक्षी पार्टियों में भी है, इसके बावजूद पूरा विपक्ष मिलकर भी इसे मुद्दा नहीं बना पाया। दरअसल मोदी सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घटी तेल की कीमतों का लाभ उपभोक्ताओं को नहीं दिया है, बल्कि घटती तेल कीमतों के साथ ही मोदी सरकार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाती रही। पिछले तीन वर्षों में एक लीटर पेट्रोल पर करीब 12 रुपए सिर्फ एक्साइज ड्यूटी में बढ़ा दिए हैं। सरकारी कंपनियों को तेल लगभग 27 रुपए में मिलता है, जिसमें परिवहन और दूसरे खर्च लगभग 3.75 रुपए और करीब 21.50 रुपए केंद्रीय कर मिलाकर यह करीब 52.50 पैसे का हो जाता है। डीलर का कमीशन 3.25 और स्टेट टैक्स और सेस करीब 15 रुपए लगने के बाद इसकी कीमत 70 रुपए के पार हो जाती है। कुछ राज्यों में और अधिक टैक्स के कारण इसकी कीमत 80 रुपए के पार हो चुकी है। पेट्रोल और डीजल को जीएसटी से बाहर रखने के कारण यह केंद्र और राज्यों की कमाई का सबसे बड़ा जरिया बन गया है, लेकिन आग में घी डालने का काम तो मोदी सरकार की एक्साइज ड्यूटी ने किया है। भारत में पड़ोसी देशों के मुकाबले पेट्रोल और डीजल के दाम अधिक हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मोदी सरकार मानती है कि भारत अपने पड़ोसी देशों से अधिक विकसित है, इसलिए सरकार को अधिक वसूली का अधिकार है। विपक्ष को चारों खाने चित करने और जनता के रोष से बचने के लिए मोदी सरकार ने पिछले कुछ दिनों से प्रतिदिन पेट्रोल और डीजल के दाम तय करने शुरू किए हैं। इसी दौरान पेट्रोल और डीजल के भाव 10 रुपए प्रति लीटर तक बढ़ गए। अब कीमतों में यह वृद्धि आम आदमी के बजट की चाल को बिगाड़ रही है, जबकि सरकारी राजस्व में लाखों करोड़ रुपए आने से इसके वारे-न्यारे हो चुके हैं।

सरकार का दावा है कि पेट्रोल-डीजल के दाम पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है और यह सही भी है, लेकिन पेट्रो उत्पादों पर टैक्स के नाम पर जो वसूली हो रही है, वह केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के नियंत्रण में है। तेल की घटी कीमतों का लाभ उपभोक्ताओं को न देकर सरकार उनसे छल कर रही है। अब तो सरकार के मंत्री खम ठोंककर कह रहे हैं कि गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं हेतु उनका ऐसा करना अनिवार्य है, लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम कि पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने पर सबसे ज्यादा मार गरीबों को ही पड़ती है। देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें तीन साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं और जनता परेशान है। जब कच्चे तेल के दाम लगातार गिर रहे हों और देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ रही हों, तो जनता के मन में सरकार की मंशा पर सवाल उठने लाजिमी हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मोदी सरकार गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर देश के मध्यम एवं निम्न वर्ग से ही अत्यधिक वसूली कर रही है। ऊपर से इसके मंत्री खम ठोंककर दावा कर रहे हैं कि गाड़ी चलानी है, तो पेट्रोल और डीजल की मनमानी कीमत देनी होगी। पूर्व नौकरशाह से मंत्री बने केजे अल्फोंस ने बयान दिया है कि पेट्रोल खरीदने वाले भूखे नहीं मर रहे हैं। हम उन्हीं लोगों पर कर लगा रहे हैं, जो कर अदा कर सकते हैं। जिनके पास कार है, बाइक है, निश्चित रूप से वे भूखे नहीं मर रहे हैं। जो कर चुका सकता है, उसे चुकाना चाहिए। ऐसे मंत्रियों को जमीनी जानकारी नहीं है। किसान से लेकर सफाई कर्मचारी तक के पास आज मोटरसाइकिल है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वे अमीर हो गए हैं। वे अपने घरों से 20 से 40 किलोमीटर दूर जाकर अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं, लेकिन सरकार को वे चुभने लगे हैं। मोदी सरकार रोजगार के मोर्चे पर विफल रही है और अब मेहनत मजदूरी से रोजी-रोटी कमा रहे निम्न एवं मध्यम वर्ग पर सीधे चोट कर रही है। एक्साइज ड्यूटी के नाम पर हजारों करोड़ रुपए वसूल कर मोदी सरकार अपने राजस्व के वारे-न्यारे कर चुकी है, लेकिन वह पेट्रोल और डीजल उत्पादों पर टैक्स बढ़ाकर कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर निम्न एवं मध्यम वर्ग से ही वसूली कर रही है। सरकार का दावा है कि अपने कार्यकाल में हर क्षेत्र में वह सफलतापूर्वक कार्य निष्पादित करती रही है। अगर नरेंद्र मोदी सरकार वास्तव में हर मोर्चे पर इतनी सफल रही है, तो फिर उसे औद्योगिक और व्यापारिक घरानों की चिंता छोड़कर देश की आम जनता की चिंता करनी चाहिए, वरना जनता आजकल अपना मन बड़ी तेजी से बदल लेती है। कहीं 2019 का लोकसभा चुनाव आते-आते भाजपा नीत सरकार से आम जनता का मोहभंग न हो जाए।


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