बुलेट के रणनीतिक आयाम

By: Sep 16th, 2017 12:02 am

बुलेट ट्रेन सिर्फ एक रेलगाड़ी ही नहीं है, जो 320-350 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलेगी। बुलेट ट्रेन की परियोजना भारत के लिए एक रणनीतिक और संतुलनकारी आयाम भी साबित होगी। बेशक इसके साथ ही हम चीन को मात नहीं दे सकेंगे, जिसकी बुलेट टे्रन करीब 500 किलोमीटर की गति से चलती है। लेकिन हम अपनी बुलेट के जरिए दुनिया के उन देशों की जमात में शामिल हो जाएंगे, जहां बुलेट टे्रन उनकी रोजाना जिंदगी का एक अहम हिस्सा है। बुलेट और सामान्य रेलगाड़ी की तुलना न करें। पटरियों से रेलगाड़ी का उतरना या पलटना हमेशा का अभिशाप नहीं है। उसका स्थायी समाधान सामने आएगा, लेकिन बुलेट टे्रन कूटनीतिक और अंतरराष्ट्रीय समीकरण भी बदल सकती है। भारत-जापान की गहराती दोस्ती मजबूरी भी है और समकालीन जरूरत भी। यह दोस्ती चीन की दादागिरी को जड़ से उखाड़ सकती है। यदि दक्षिण चीन सागर में चीन अपना वर्चस्व बनाए है, तो हिंद-प्रशांत महासागर में अमरीका की मदद से भारत-जापान ज्यादा सक्रिय हो सकते हैं। नतीजतन मध्य एशिया में भारत-जापान भी  बराबर की शक्ति साबित हो सकते हैं। इससे कूटनीतिक रिश्तों में प्रगाढ़ता के साथ क्षेत्रीय संतुलन भी स्थापित हो सकेगा। भारत-जापान में यह करार भी हुआ है कि यदि कोई तीसरा देश इनमें से किसी पर भी हमला करता है, तो दूसरा देश तुरंत उसकी सहायता में खड़ा होगा। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने डोका ला विवाद पर भी बातचीत की और आतंकवाद पर तो खुलेआम पाकिस्तान के खिलाफ बयान दिए। हालांकि रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत-जापान के अलावा अमरीका के साथ सामरिक गठजोड़ बनाने की कोशिश को भी एक नए आयाम के तौर पर देखा जाना चाहिए। हालांकि भारत अमरीका के लिए उस तरह प्रॉक्सी का काम नहीं कर सकता, जैसा पाकिस्तान उनके लिए करता रहा है। लिहाजा एक अलग दृष्टिकोण से भी सोचना होगा। लेकिन जापान चाबहार परियोजना में भारत के साथ जुड़ता है, तो यह मध्य एशिया के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण होगा। भारत ईरान और अफगानिस्तान के साथ चाबहार बंदरगाह को एक ट्रांजिट हब के तौर पर विकसित करने के मद्देनजर समझौते पर विचार कर रहा है। इसका एक मकसद पाकिस्तान को एक किनारे कर मध्य एशिया तक पहुंच बनाना है। चाबहार बंदरगाह के विकास पर भारत 50 करोड़ डालर खर्च करने के वादे को पाकिस्तान के ग्वादर में चीन की बंदरगाह योजना की तुलना में संतुलन साधने के तौर पर देख रहा है। विशेषज्ञों का यह मानना भी है कि यदि भारत और जापान अफ्रीका ग्रोथ गलियारे पर आगे बढ़ते हैं, तो यह चीन की ‘वन बेल्ट, वन रोड’ का कड़ा जवाब भी हो सकता है। बहरहाल बुलेट टे्रन परियोजना रणनीतिक के साथ-साथ देश में रोजगार और विकास के आयाम खोलने वाली भी साबित होगी। फिलहाल बुलेट के लिए 4000 अफसरों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके अलावा, बुलेट टै्रक को बिछाने और स्थापित करने में हजारों हाथों को काम मिलेगा। 2022 में इस बुलेट को पूरा करने के बाद अन्य परियोजनाओं पर काम शुरू होगा, तो यही हुनरमंद हाथ वहां भी काम आएंगे। अब यह सतत और स्थायी रोजगार बनने वाला है। इस परियोजना से ‘मेक इन इंडिया’ के सपने को भी सही मायनों में पंख लगेंगे, क्योंकि बुलेट टे्रन की तकनीक जापान की है, लेकिन इसके तमाम कल-पुर्जे और अन्य उपकरण, संसाधन भारत में ही बनाए जाएंगे। इससे औद्योगिक गति भी बढ़ेगी और हमें नई प्रौद्योगिकी भी हासिल होगी। बहरहाल कहा जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी बिना मकसद के कोई भी काम नहीं करते। लिहाजा इसके संदर्भ में भारतीय रेल के जर्जर ढांचे से जुड़े सवाल नहीं किए जाने चाहिएं। वह एकदम अलग मुद्दा है। जिस तरह मेट्रो और सामान्य रेल की कोई तुलना नहीं की जा सकती, मेट्रो का प्रयोग बेहद कामयाब रहा है, उसी तरह बुलेट का संदर्भ भी अलग रखना चाहिए। कल्पना करें, जब 2022 में प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री अबे बुलेट टे्रन से मुंबई तक की यात्रा कर रहे होंगे, तो वह सफल प्रतीक हमारे कौशल का भी होगा। जो हाथ तकनीकी तौर पर हुनरमंद होंगे, वे बुनियादी तौर पर भारत की सफलता ही होंगे। राजनीति को छोड़ दीजिए। जो नेता काम करेगा, उसे जनता से समर्थन भी मिलेगा और देश का फायदा भी होगा, लिहाजा फिलहाल चिल्ल-पौं बंद करें।


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