भरमौर में बड़ा अस्पताल बनता तो बनती बात

By: Sep 16th, 2017 12:05 am

‘‘उम्मीदों की नींव पर ही सही, इक पुल चाहिए। गांव-शहर से जुड़ें, डग भरने का हमें भी हक चाहिए।’’

मगर विडंबना यही रही कि लगातार उम्मीदों के कई पुल ढह गए और कई सोचे भी न जा सके। भौगोलिक परिस्थितियां सियासत के दृष्टिकोण पर इतनी भारी पड़ेंगी यही सोच कर भाषणबाजों पर तरस आता है। जब पता चलता है कि फलां भवन का नींव पत्थर 1980 में रखा गया या फिर 15 बर्ष से उद्घाटन को तरस रही सड़क। या फिर शहीद अथवा स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर घोषणाएं। ये तमाम बातें कुछ समय बाद जनता को सुविधा नहीं मिलने पर एक टीस जरूर दे जाती है। जनता को मतदाता समझने वाले राजनेताओं को पांच वर्ष बाद याद आती है, तब तक लोग ऊब चुके होते हैं और फिर अपने हकों की आवाज उठाते हैं। लोगों के इसी दर्द का हिस्सा बनने के लिए प्रदेश के अग्रणी मीडिया ग्रुप ‘दिव्य हिमाचल’ अपनी नई सीरीज ‘हक से कहो’ के तहत जनता की आवाज बनकर आगे आ रहा है।                              देखे विधानसभा क्षेत्र भरमौर का दर्द

शिक्षा में पिछड़ा जिला

भरमौर उपमंडल के ग्रीमा गांव के अजय कुमार का कहना है कि इलाकावासियों को अभी तक बस सुविधा नहीं मिल पाई है। लोगों की मांग पर कुछ दिन पहले बस सेवा आरंभ की गई, लेकिन मार्ग की खराब हालत का हवाला देकर निगम के चालकों ने बस चलाने से मना कर दिया। मजबूरन लोग आज भी टैक्सी में किराया खर्च कर सफर करने को मजबूर हैं। अजय कुमार का कहना है कि जनजातीय हलके में शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाएं भी पटरी से उतर चुकी हैं। विकास महज दावों तक ही सीमित है। खाली पद न भरने से यह स्थिति बनी हुई है।

लोगों की सेहत रामभरोसे

भरमौर के मलकौता गांव के सुभाष कुमार का कहना है कि पट्टी से भरमाणी मार्ग बदहाली के आंसू बहा रहा है। मार्ग की बिगड़ी हालत के चलते वाहन चालकों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सुभाष कुमार का कहना है कि भरमौर में स्वास्थ्य सेवाएं भी रामभरोसे हैं। लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं पाने के लिए जिला मुख्यालय का रुख करना पड़ रहा है। अगर सरकार भरमौर में कोई बड़ा मेडिकल अस्पताल बना देती तो बात बनती। सरकार को चाहिए था कि पहले लोगों की सेहत संबंधी जो वादे किए गए थे उन्हें पूरा करती। बेहतर सेवा न होने से लोग चंबा जाने को मजबूर है।

बस न होने से टैक्सी में सफर

भरमौर के बडग्रां के पाहदू राम का कहना है कि हरछू-बडग्रां सड़क को बस योग्य बनाकर लोगों को राहत प्रदान करने की मांग पर राजनेताओं के आश्वासन ही मिल पाए हैं। अरसा बीत जाने के बाद भी मार्ग को बस योग्य न बनाए जाने से लोग टैक्सी वाहनों में महंगे किराए पर सफर कर रहे हैं। पाहदू राम का कहना है कि देखरेख के अभाव में मार्ग की हालत ओर भी खराब होकर रह गई है। मार्ग की बिगड़ी हालत के चलते पूर्व में हुए सड़क हादसों में कई अनमोल इनसानी जिदंगियां अकारण ही काल के मुंह में समां चुकी हैं। अगर सरकार इन प्राथमिकताओं को पूरी करती तो बात कुछ ओर होती।

पहेली बनी बगडू सड़क

भरमौर के दुर्गठी गांव के पराक्रमी शर्मा का कहना है कि लाहल से बगडू सड़क निर्माण कार्य पहेली बनकर रह गया है। दस वर्ष पूर्व आरंभ इस सड़क निर्माण पर वन विभाग की ओर से लाखों रुपए खर्च किए गए हैं, जो कि न के बराबर हैं। पराक्रमी शर्मा का कहना है कि हलके में मूलभूत सुविधाओं की भी कमी है। स्कूलों व स्वास्थ्य संस्थानों में स्टाफ  की कमी अभी भी परेशानी बनी हुई है। उन्होंने बताया कि सरकार के सारे दावे हवा हो गए हैं। सरकार पांच साल में किए वादे पूरे करने में असफल रही है। क्षेत्र में कई काम होने बाकी हैं और जो काम शुरू हुए हैं, वे अधूरे पड़े हैं।


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