भारत का इतिहास

By: Sep 27th, 2017 12:05 am

संविधान समितियों में समझौता और समन्वय

गतांक से आगे-

संविधान सभा में प्रक्रिया

सविधान सभा की कार्यप्रणाली  की प्रारंभ से अंत तक एक प्रमुख विशेषता यह रही है कि सभी सदस्यों को अभिव्यक्ति का पूरा अवसर दिया गया तथा विभिन्न मतों को सभी स्तरों पर पूरी गंभीरता और सच्चाई के साथ विचारा गया। प्रारूप समिति की ओर से डा. अंबेडकर, अल्लादी, कृष्णास्वामी, केएम मुंशी आदि ने कटु से कटु आलोेचनाओं का बड़े धैर्य और संतुलन के साथ उत्तर दिया तथा विभिन्न अनुच्छेदों की आवश्यकतानुसार विश्व व्याख्या की और उनके निहितार्थों को साफ-साफ समझाने का प्रयास किया। संविधान सभा में नेताओं की बराबर कोशिश यही रही कि समझौते और समन्वय की भावना से काम हो तथा निर्णय बहुमत के आधार पर नहीं, बल्कि  आम राय के आधार पर लिए जाएं। इसी का परिणाम था कि जो संविधान बना उसे संविधान सभा का ही नहीं अपितु विस्तृत जनमत की भी भारी सहमति और स्वीकृति प्राप्त थी। जैसा कि संविधान सभा के अध्यक्ष, डा. राजेंद्र प्रसाद ने 26 नवंबर, 1947 को अपने समापन भाषण में कहा था, संविधान सभा, कुल मिलाकर एक ऐसे संविधान का निर्माण करने में सफल हुई जो देश के व्यापक हितों में था। जब 9 दिसंबर को संविधान सभा ने अपनी कार्यवाही प्रारंभ की, तो कार्य संचालन तथा प्रक्रिया संबंधी उसके अपने कोई नियम नहीं थे। अतः दूसरे दिन ही 10 दिसंबर को संविधान सभा ने एक प्रस्ताव पास करके स्थायी अध्यक्ष के निर्वाचन के लिए प्रक्रिया तय की और जब तक संविधान सभा के अपने नियम बने, तब तक के लिए अस्थायी तौर पर केंद्रीय विधानसभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन संबंधी नियमों को स्वीकार कर लिया गया। संविधान सभा के अध्यक्ष को  यह अधिकार दे दिया गया कि वह इन नियमों में, अपने विवेक के अनुसार, जो भी परिवर्तन अवश्यक समझें कर लें। साथ ही , इस दिन प्रक्रिया नियम समिति  ( कमेटी ऑन रूल्स ऑफ प्रोसिजर) बनाए जाने के बारे में एक प्रस्ताव भी पास किया गया। प्रस्ताव आचार्य कृपलानी ने रखा था और उसमें कहा गया था कि समिति में अध्यक्ष के अतिरिक्त 15 सदस्य होंगे, संविधान सभा के अध्यक्ष स्वयं  इस समीति के अध्यक्ष होंगे तथा सदस्यों का निर्वाचन सभा करेगी। समिति का काम होगा कि वह सभी प्रक्रिया संबंधी नियमों, अध्यक्ष की शक्तियों, सभा के कार्य के संगठन तथा अधिकारियों की नियुक्ति और सभा में होने वाले रिक्त स्थानों को भरने की प्रक्रिया के बारे में सिफारिशें करे। प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि जब तक संविधान सभा इस विषय में कोई निर्णय नहीं लेती तब तक के लिए अध्यक्ष ही सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतन और भत्ते आदि निश्चित करेंगे। एक अन्य प्रस्ताव द्वारा संविधान सभा कार्यालय के वर्तमान संगठन की पुष्टि कर दी गई।


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