भारत छोड़ो-पार्ट टू

By: Sep 20th, 2017 12:02 am

म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तक पहुंच गया है। सुरक्षा परिषद के सदस्यों की सहानुभूति रोहिंग्या के प्रति लगती है, लिहाजा जारी हिंसा और खून-खराबे को ‘जातीय सफाया’ करार दिया गया है। सुरक्षा परिषद ने एक सुर में ही म्यांमार सरकार से आग्रह किया है कि रोहिंग्या अल्पसंख्यकों के खून-खराबे पर तुरंत रोक लगाई जाए। पहली बार सुरक्षा परिषद के इस समवेत स्वर में चीन की भी सहमति शामिल है। सुरक्षा परिषद ने मांग की है कि जो रोहिंग्या दर-ब-दर हैं और अपने देश म्यांमार लौटना चाहते हैं, हुकूमत उन्हें आने दे और उन्हें अपने गांव, कस्बों के घरों में वापस बसने दे। म्यांमार सरकार की संयुक्त राष्ट्र के ऐसे प्रस्ताव पर क्या राय बनेगी, यह दीगर मुद्दा है, लेकिन भारत की मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 16 पन्नों का हलफनामा देकर साफ  कर दिया है कि रोहिंग्या भारत की अपनी सुरक्षा के लिए खतरा हैं, वे आतंकी संगठनों के संपर्क में हैं और वे मानव-तस्करी में भी शामिल पाए गए हैं, लिहाजा विदेशी घुसपैठियों को भारत छोड़ना होगा। देश की सुरक्षा की दलीलें हवा-हवाई नहीं हैं, बल्कि हमारी खुफिया एजेंसियों के अलावा बांग्लादेश और म्यांमार के खुफिया सूत्रों के ‘इनपुट’ और सूचनाओं पर आधारित हैं। हमारी सुरक्षा संयुक्त राष्ट्र तय नहीं कर सकता। यदि ऐसा होता,तो कश्मीर का मुद्दा हल हुए सालों बीत गए होते! आतंकवाद की परिभाषा तय हो चुकी होती और जैश-ए-मोहम्मद के सरगना आतंकी मसूद अजहर समेत कई और आतंकियों पर वैश्विक अपराधी और हत्यारों की मुहर लग चुकी होती! भारत अपनी आंतरिक  और सरहदी सुरक्षा खुद देखेगा या रक्षा और विदेश मंत्रालयों को सुरक्षा परिषद के हवाले सौंप देगा ? यदि म्यांमार में बौद्धों और रोहिंग्या समुदायों के बीच हिंसा है या 1834 से लेकर आज तक रोहिंग्या म्यांमार में घुलमिल नहीं सके हैं, तो उसमें किसी दूसरे देश का क्या दोष है? रोहिंग्या मुसलमान भारत में ही क्यों आएं? भारत ही उन्हें शरण क्यों दे? संयुक्त राष्ट्र उन्हें पाकिस्तान चले जाने की सलाह क्यों नहीं देता? भारत कोई ‘धर्मशाला’ है क्या? जम्मू-कश्मीर में ही रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने की बात किसी साजिश का हिस्सा लगता है। हलफनामे में मोदी सरकार ने स्पष्ट उल्लेख किया है कि किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि के तहत रोहिंग्या को शरणार्थी बनाने को भारत बाध्य नहीं है। अवैध विदेशी व्यक्ति को संविधान के तहत अधिकार प्राप्त नहीं हैं। वह अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और सुरक्षा का मौलिक अधिकार तो मांग सकता है, लेकिन देश में रहने का अधिकार नहीं मांग सकता। यह अधिकार अनुच्छेद 19 (1)(ई)(डी) के तहत नागरिकों को ही उपलब्ध है। इस संदर्भ में संविधान पीठ का फैसला मौजूद है, जिसमें विदेशी नागरिकों को देश से बाहर निकालने के आदेश को उचित ठहराया गया है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि स्टेट्स ऑफ  रिफ्यूजीज 1951 कन्वेंशन और 1967 की रिफ्यूजीज प्रोटोकॉल से भारत बंधा हुआ नहीं है, क्योंकि उसने इन संधियों पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। भारत राजनीतिक और नागरिक अधिकारों की संधियां मानता है, लेकिन उसे अवैध नागरिकों को देश में रहने और बसने देने के लिए विस्तारित नहीं किया जा सकता। इनसानियत देश की सुरक्षा से प्राथमिक और ऊपर नहीं है। जम्मू-कश्मीर में साजिश के संकेत तो इसी सवाल में निहित हैं कि म्यांमार से निकल कर बांग्लादेश होते हुए सुदूर कश्मीर तक हजारों रोहिंग्या पहुंचे कैसे? जम्मू-कश्मीर में रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या 10,000  के करीब बताई जाती है। वहां उनके समर्थक भी उग आए हैं,जो टीवी चैनलों पर उनके लिए छातियां पीट रहे हैं। अनुच्छेद 370 के तहत जिस जम्मू-कश्मीर में औसत भारतीय नागरिक नहीं बस सकता, तो हजारों रोहिंग्या शरणार्थियों के मुखौटों में आतंकियों को क्यों बसने दें? यदि लश्कर और जैश के आतंकी रोहिंग्या शरणार्थियों के साथ कश्मीर में भी घुस आए, तो हालात और भी बिगड़ जाएंगे। आतंकवाद घाटी के साथ-साथ जम्मू में भी पसर सकता है। रोहिंग्या और आतंकियों में सांठ-गांठ है, यह कई आपरेशनों में साफ  हो चुका है। मोदी सरकार का मानना है कि कुछ रोहिंग्या आईएसआईएस और अल कायदा सरीखे आतंकी संगठनों के संपर्क में है। इसका यह उदाहरण पर्याप्त है कि हाल ही में दिल्ली पुलिस ने एक आतंकी को पकड़ा है, जो अल कायदा के लिए काम कर रहा था। बांग्लादेश से भारत में आया था और वह मिजोरम या मणिपुर में बेस बनाकर आतंकियों को टे्रनिंग देकर म्यांमार में घुसाने की फिराक में था। आतंकवाद से कश्मीर पहले से ही जख्मी और हताहत है। दरअसल रोहिंग्या मुसलमानों को देश से बाहर निकालने का फैसला भारत सरकार का नीतिगत है। यह कुछ ऐसा फैसला है, जिस तरह 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन चलाया गया था। जिसे इस मुद्दे की आड़ में भी ‘मुस्लिमवादी’ सियासत करनी है, तो वह कर सकता है, लेकिन देश देख रहा है कि कौन,क्या फैसले कर रहा है?


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