भ्रम विनाशिनी माँ भरमाणी
यहां माता के दो मंदिर बने हुए हैं, एक पुराना मंदिर एवं एक नया मंदिर। बताया जाता है कि 17 अक्तूबर, 1999 की रात को माता के मंदिर में रात्रि जागरण का आयोजन हुआ। पूजा के दौरान माता की पिंडी का आकार बढ़ने लगा तथा पिंडी पर दो लाल आंखें ज्योति के रूप में प्रकट हुईं…
मां भरमाणी देवी मंदिर भरमौर शहर से 6 किलोमीटर ऊपर पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर तक जाने के लिए सड़क काफी तंग तथा चढ़ाई वाली है। यह स्थान भी काफी ठंडा है क्योंकि पहाड़ी पर सामने पिघलता हुआ ग्लेशियर माता भरमाणी के चरणों को धोता हुआ भरमौर शहर में उतर आता है। माता भरमाणी मदिर परिसर के बाहर श्रद्धालुओं ने स्नान हेतु वर्ष 2006 में एक तालाब का निर्माण भी किया है। श्रद्धालु स्नान करके मंदिर में प्रवेश करते हैं। यहां माता के दो मंदिर बने हुए हैं, एक पुराना मंदिर एवं एक नया मंदिर। बताया जाता है कि 17 अक्तूबर, 1999 की रात को माता के मंदिर में रात्रि जागरण का आयोजन हुआ। पूजा के दौरान माता की पिंडी का आकार बढ़ने लगा तथा पिंडी पर दो लाल आंखें ज्योति के रूप में प्रकट हुईं। मंदिर के महंत को खेल आई, जिसमें माता ने बकरे की बलि लेने से इनकार कर दिया तथा बलि के बकरे को मंदिर में खुला जीवित छोड़ने का आदेश दिया। माता ने मंदिर में नारियल की बलि अथवा भोग लगाने की आज्ञा दी। सुबह चार बजे तक यह कार्यक्रम चला तथा पिंडी पुनः अपने पुराने आकार में आ गई। इस मंदिर के बारे में एक और बात प्रसिद्ध है कि मणिमहेश जाने वाले श्रद्धालु जब तक इस मंदिर में माता के दर्शन न कर लें, तब तक उनकी यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती है। भरमौर में ही चौरासी मंदिर है, जिसमें चौरासी शिवलिंग स्थापित हैं। जिनकी स्थापना गुरु गोरखनाथ के शिष्यों द्वारा की गई बताते हैं। इस मंदिर का निर्माण राजा मेरु वर्मन द्वारा सातवीं शताब्दी में किया गया है। यहां धर्मराज मंदिर,नरसिंह मंदिर, सूर्य मंदिर, लक्षणा देवी आदि मुख्य मंदिर हैं। लक्षणा देवी मंदिर काष्ठ कला का अद्भुत नमूना है। यह मंदिर देवी महिषासुर मर्दिनी को समर्पित है, जिसमें अष्टधातु की प्रतिमा स्थापित है।
– राजेश कुमार कोतवाल, मंडी
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