ममता के फरमान का ‘विसर्जन’

By: Sep 23rd, 2017 12:02 am

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी देश की सबसे घोर सांप्रदायिक नेता हैं। हिंदू होते हुए भी वह हिंदुओं के लिए ‘सौतेली मां’ हैं। कोलकाता उच्च न्यायालय के एक फैसले ने हमारी इस धारणा की पुष्टि की है। अदालत ने मुख्यमंत्री के उस फरमान को रद्द कर दिया है, जिसमें मुहर्रम के लिए दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर रोक लगाई गई थी। यह ममता बनर्जी की मुस्लिमवादी सियासत पर ही आधारित फरमान था। कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने ममता सरकार पर जो सवाल दागे हैं, उनका सार यह है कि मुहर्रम के दिन दुर्गा मूर्तियों का विसर्जन क्यों नहीं हो सकता? मुख्यमंत्री सांप्रदायिक सौहार्द के लिए हैं अथवा सांप्रदायिक तनाव के लिए…! बंगाल संविधान से चलेगा या ‘तुगलकी फरमान’ से? मुख्यमंत्री ने अपने असीमित अधिकारों का इस्तेमाल क्यों किया है? आखिर मुख्यमंत्री हिंदू-मुसलमान में दरार पैदा क्यों कर रही हैं? सांप्रदायिक सद्भाव क्यों तोड़ा जा रहा है? आखिर मुख्यमंत्री के फरमान की बुनियादी वजह क्या है? पाबंदी तो आखिरी विकल्प होना चाहिए और उसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाना चाहिए। इन सवालों के साथ हाई कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिए हैं कि वह दुर्गा मूर्ति विसर्जन और मुहर्रम  के लिए अलग-अलग रूट तय करे। मुख्यमंत्री के फरमान को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया, लेकिन ममता बनर्जी परोक्ष रूप से अदालत की अवमानना कर रही हैं। उनका बयान आया है कि बेशक उनके माथे पर बंदूक रख दी जाए, लेकिन जब तक वह जिंदा हैं, इसी नीति को जारी रखेंगी। यह तुष्टिकरण नहीं, बंगाल की संस्कृति है, उनकी अपनी संस्कृति है। ममता के साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। उन्हें अदालत ने कई मौकों पर फटकार लगाई है। दरअसल मुख्यमंत्री बंगाल के 27-28 फीसदी मुसलमानों के प्रति ‘ममता’ रखती हैं, लेकिन हिंदुओं के प्रति ‘निर्ममता’ क्यों रखती हैं? यह सवाल बंगाल की सियासत को बयां करता है। क्या ममता को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के मद्देनजर मुख्यमंत्री पद पर रहना चाहिए? क्या उन्हें सजा नहीं दी जानी चाहिए? आखिर वह हिंदू आस्थाओं का विसर्जन कब तक करती रहेंगी? ऐसे प्रहार कब तक जारी रहेंगे? क्या ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को हिंदू-मुसलमान विभाजन के लिए ही जनादेश मिला था? आखिर ऐसे सांप्रदायिक फरमानों का ‘विसर्जन’ कब होगा? दरअसल जिस तरह की घोर सांप्रदायिक राजनीति ममता बनर्जी कर रही हैं, उसके मद्देनजर उनकी ‘सत्ताई विदाई’ का वक्त आ गया है। क्या मोदी सरकार ममता सरकार को बर्खास्त करने की हिम्मत दिखा सकेगी? बंगाल में मुसलमानों की आबादी 27-28 फीसदी है, लेकिन मात्र दो फीसदी को ही सरकारी नौकरी नसीब है। बेशक 140 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं। मुस्लिम वोटर 2.5 करोड़ से भी ज्यादा हैं, नतीजतन तृणमूल के 32 मुस्लिम विधायक हैं। लिहाजा ममता ‘आधी मुसलमान’ के तौर पर व्यवहार करती हैं। वह नमाज भी अता करती हैं। उन्हें सिर्फ वोट बैंक ही दिखाई देता है। इससे पहले भी उन्होंने रामनवमी के मौके पर हिंदुओं का जुलूस नहीं निकलने दिया था। हनुमान जयंती पर भक्तों पर पुलिस से लाठी चार्ज कराया था। मकर संक्रांति पर आरएसएस की सभा पर पाबंदी लगा दी थी। बीते दिनों सरसंघचालक मोहन भागवत कोलकाता में एक बैठक को संबोधित करना चाहते थे, लेकिन ऐन वक्त पर सभागार की बुकिंग ही रद्द करा दी। ऐसा ही बर्ताव भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की एक बैठक के संदर्भ में किया गया। ममता की दलीलें होती हैं कि संघ-भाजपा विभाजनकारी ताकतें हैं। उनकी सक्रियता से समाज का सौहार्द खत्म होता है और माहौल हिंसक बनता है। लेकिन उन्होंने मुहर्रम और विसर्जन पर जो निर्णय किए, क्या वे सामाजिक सद्भाव के थे? बीते साल मुहर्रम के मौके पर 16 दंगे हुए थे, लेकिन पाबंदी दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर ही चस्पां की गई थी। तब भी अदालत ने हस्तक्षेप किया था। क्या यह ममता का सांप्रदायिक चेहरा नहीं है? वह आरोप लगाते हुए नहीं थकतीं कि संघ-भाजपा सांप्रदायिक हैं, लेकिन अदालत ने उनके खिलाफ न तो कोई फैसला सुनाया और न ही कोई चेतावनी दी। कोई टिप्पणी तक नहीं की। आखिर ममता हिंदुओं से इतनी नफरत क्यों करती हैं? क्या मुस्लिम वोट बैंक की ही खातिर…? ऐसी सियासत के जवाब में ध्रुवीकरण तो हिंदुओं में भी हो सकता है। वे तृणमूल के खिलाफ लामबंद हो सकते हैं। क्या  32 मुस्लिम विधायकों के बल पर ममता अपनी सत्ता स्थापित कर सकती हैं? अब  अदालत के फैसले के बाद ममता ने आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं कि केंद्र सरकार अपनी एजेंसियों के जरिए साजिश कर रही है। वह एक दिन इस साजिश को खत्म कर देंगी। खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे…! बहरहाल अदालत के फैसले के बाद अब दुर्गा मूर्ति विसर्जन और मुहर्रम पर्व साथ-साथ मनाए जाएंगे। दरअसल हमारी संस्कृति यही है कि हम अपनी आस्थाओं के मुताबिक धर्म का पालन करते हैं और तीज-त्योहार एक साथ खुशी-खुशी मनाते हैं।


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