महिमा पुराणों की

By: Sep 9th, 2017 12:05 am

पांचवां पुराण है भागवत पुराण। इसमें 18000 श्लोक तथा 12 स्कंद हैं। इस ग्रंथ में आध्यात्मिक विषयों पर विभिन्न ऋषियों के बीच की वार्तालाप शामिल है। इस पुराण में भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता का बखान किया गया है। विष्णु और कृष्णावतार की कथाओं के अतिरिक्त महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि- मुनियों तथा असुरों की कथाएं भी इसमें संकलित हैं…

पुराण विश्व साहित्य के प्रचीनत्म ग्रंथ हैं। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों में लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं। वेदों की भाषा तथा शैली बेशक कठिन है किंतु पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं। उन में जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है। पुराणों का विषय नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परंपराएं विज्ञान तथा अन्य विषय हैं।

पुराण के मुख्य देवगण

महर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश उन पुराणों के मुख्य देव हैं। त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छह पुराण समर्पित किए गए हैं।

आइए जानते है 18 पुराणों के बारे में।

ब्रह्म पुराण- पुराणों में सबसे प्राचीन है ब्रह्म पुराण। इसमें कुल 246 अध्याय तथा 14000 श्लोक हैं। ब्रह्म पुराण में जगत्पिता ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा अवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथाएं संकलित हैं। इसी पुराण में हमें सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिंधु घाटी सभ्यता तक की जानकारियां मिलती हैं।

पद्म पुराण- दूसरा पुराण है पद्म पुराण। इसमें 55000 श्लोक हैं और यह पांच खंडों में विभाजित है। इनके नाम सृष्टिखंड, स्वर्गखंड, उत्तरखंड, भूमिखंड तथा पातालखंड हैं। पद्म पुराण में पृथ्वी आकाश तथा नक्षत्रों की उत्पति के रहस्य  पर प्रकाश डाला गया है। जीवों की सर्वप्रथम उत्पत्ति के बारे में बताते हुए इसमें उदिभज, स्वेदज, अंडज तथा जरायुज श्रेणी का वर्णन है। यह श्रेणी पूर्णतया वैज्ञानिक है। इसके अलावा भारत के सभी पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी पद्म पुराण में विस्तार से वर्णन है। इस पुराण में शकुंतला, दुष्यंत से ले कर भगवान राम तक के कई पूर्वजों का इतिहास भी शामिल है। इन्हीं शकुंतला और दुष्यंत के प्रतापी पुत्र राजा भरत के नाम से हमारे देश का नाम जंबूदीप से भरतखंड और  उसके पश्चात भारत हुआ।

विष्णु पुराण- तीसरा पुराण है विष्णु पुराण। इसमें 6 अंश तथा 23000 श्लोक हैं। इसमें भगवान विष्णु, बालक धु्रव तथा कृष्णावतार की कथाएं संकलित हैं। इसके अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी इसमें शामिल है जिस के कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पड़ा था। इस पुराण में सर्ू्यवंशी तथा चंद्रवंशी राजाओं का इतिहास है। भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों पुरानी है जिस का प्रमाण विष्णु पुराण के निम्नलिखित शलोक में मिलता हैः

उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम। वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र संततिः। अर्थात वह भौगोलिक क्षेत्र जो उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर से घिरा हुआ है भारत देश है तथा उस में निवास करने वाले सभी जन भारत देश की ही संतान हैं। विष्णु पुराण वास्तव में एक ऐतिहासिक ग्रंथ है।

शिव पुराण- चौथा पुराण है शिव पुराण। इसमें 24000 श्लोक हैं तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है। इस ग्रंथ में भगवान शिव की महिमा तथा उन से संबंधित घटनाओं को संकलित किया गया है। इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं। इस में कैलाश पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्त्व सप्ताह के दिनों के नामों की रचनाएं, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के संबंध में वर्णन किया गया है। सप्ताह के दिनों के नाम हमारे सौर मंडल के ग्रहों पर आधारित हैं और आज भी लगभग समस्त विश्व में प्रयोग किए जाते हैं।

भागवत पुराण- पांचवां पुराण है भागवत पुराण। इसमें 18000 श्लोक तथा 12 स्कंद हैं। इस ग्रंथ में आध्यात्मिक विषयों पर विभिन्न ऋषियों के बीच की वार्तालाप शामिल है। इस पुराण में भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता का बखान किया गया है। विष्णु और कृष्णावतार की कथाओं के अतिरिक्त महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि-मुनियों तथा असुरों की कथाएं भी इसमें संकलित हैं। इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के बाद श्रीकृष्ण का देहत्याग, द्वारिका नगरी के जलमग्न होने और यदु वंशियों के नाश तक का संपूर्ण विवरण दिया गया है।


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