रोहिंग्या मसले पर सतर्कता जरूरी

By: Sep 9th, 2017 12:05 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्रीभारत का शायद ही कोई मीडिया समूह अराकान की पहाडि़यों में जाने की जहमत उठा रहा है। वह केवल भारत में पश्चिमी मीडिया की जूठन ही उगल रहा है। एक समूह, वहां के वहाबी संगठनों के माध्यम से रोहिंग्या मुस्लिमों को जम्मू में बसाने की वकालत करता है और एक दूसरा समूह चाहता है कि भारत सरकार रोहिंग्या मसले को लेकर म्यांमार सरकार और वहां के सुरक्षा बलों की निंदा का अभियान चलाए, ताकि प्रतिक्रिया में म्यांमार एक बार फिर चीन की गोद में जाकर बैठ जाए। भारत सरकार को रोहिंग्या के मामले में देशहित में सही स्टैंड लेना होगा…

रोहिंग्या मुसलमानों के मामले को लेकर दो बातें बार-बार चर्चा में आ रही हैं। पहली यह कि म्यांमार में वहां की सेना रोहिंग्या मुसलमानों के मानवीय अधिकारों का हनन कर रही है, उनकी औरतों के साथ बलात्कार कर रही है, उनके घरों को जला कर उन्हें देश के बाहर धकेल रही है। दूसरी चर्चा यह है कि भारत सरकार इन रोहिंग्या मुसलमानों, जो भारत में शरणार्थी बनकर आ रहे हैं, के साथ भी अमानवीय व्यवहार कर रही है और उन्हें भारत में बसने नहीं दे रही। रोहिंग्या लोग बांग्लादेश की चिटगांव पहाडि़यों में रहने वाले लोग हैं। भारत में इस्लामी हमलों के समय इनको बलपूर्वक मुसलमान बना लिया गया था। जब भारत में ब्रिटिश सरकार का कब्जा हो गया तो म्यांमार में सस्ते मजदूरों की तलाश में लगे अंग्रेजों का ध्यान रोहिंग्या की ओर भी गया और वे इन्हें म्यांमार में अरकान के पर्वतीय इलाकों में बसाने लगे। अब वहां इनकी जनसंख्या लगभग दस लाख है। अब सऊदी अरब से निकला वहाबी आंदोलन दुनिया भर में मतांतरित किए गए मुसलमानों को शुद्ध इस्लाम सिखाने के नाम पर उनको उनकी पारंपरिक जड़ों से ही काटने का प्रयास नहीं कर रहा, बल्कि वह प्रत्येक देश को तोड़ कर उसके भीतर बहाबी इस्लामी देश स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। म्यांमार के रोहिंग्या भी इसी बहाबी आंदोलन का शिकार हुए और सऊदी अरब के पैसे के बल पर अराकान की पहाडि़यों में उन्होंने अराकान रोहिंग्या मुक्ति सेना स्थापित कर, म्यांमार देश के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। रोहिंग्या मुसलमानों की यह आतंकवादी सेना वहां के बौद्ध मतावलंबी स्थानीय लोगों को खदेड़ कर वहां इस्लामी राज्य स्थापित करना चाह रही है। हजारों म्यांमारियों को मारा और बाकी बचे लोगों को वहां से भगा दिया। यह काम वहां अभी भी चल रहा है।

इन गतिविधियों में रोहिंग्या आतंकवादियों को पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों की ओर से निरंतर सहायता मिल रही है। अब म्यांमार की सेना इन आतंकवादी संगठनों को खदेड़ने का काम कर रही है, तो पश्चिमी मीडिया इसे रोहिंग्या मुसलमानों के मानवाधिकारों का हनन बता कर प्रचारित कर रही है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग का कार्यालय इस प्रकार की कहानियां प्रचारित करने में मुख्य भूमिका निभा रहा है। उसी प्रचार की जूठन को भारतीय मीडिया यहां के लोगों को परोस रहा है। रोहिंग्या आतंकवादी संगठन वहां स्थानीय लोगों पर क्या अत्याचार कर रहे हैं और म्यांमार की सेना पर आक्रमण कर रहे हैं, इसकी चर्चा पश्चिमी मीडिया और सऊदी अरब के पैसे के बल पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के कार्यालय में पलने वाले ग्रुप भला क्यों करेंगे? पश्चिमी चर्च समूहों का भी इन पूरे हालात में अपना स्वार्थ है। यदि म्यांमार में सरकार कमजोर होती है तो उस स्थिति में पर्वतीय इलाकों में रहने वाले समुदायों को ईसाई बनाने में चर्च को सहायता मिलेगी। म्यांमार की आंग सांग सुई ने बहुत सही कहा है कि जो हालात कश्मीर घाटी में हैं, वही लगभग म्यांमार की अराकान पहाडि़यों में हैं। घाटी के कश्मीरियों को विदेशी जिहादी शक्तियां भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए उकसा रही हैं। आतंकवादी संगठन सुरक्षा बलों पर निरंतर आक्रमण करते रहते हैं। जब सुरक्षाबल आतंकवादियों को पकड़ते हैं, तो सारा पश्चिमी मीडिया इसे मानवाधिकारों का हनन बता कर प्रचारित करता है। कश्मीरी पंडितों को इन आतंकवादियों ने बाहर निकाल फेंका, इसकी ओर मानवाधिकारवादियों का ध्यान नहीं जाता। यही स्क्रिप्ट म्यांमार की अराकान पहाडि़यों में दोहराई जा रही है। रोहिंग्या आतंकवादी संगठनों के हमलों के कारण बौद्ध अपने ही देश में शरणार्थी बनने के लिए विवश हो रहे हैं, इसकी चर्चा कोई नहीं करता। यह ठीक है कि कुछ निर्दोष रोहिंग्या जरूर भागने के लिए विवश हो रहे हैं।

लेकिन प्रश्न यह है कि वे भाग कर हिंदोस्तान में क्यों आ रहे हैं।  बांग्लादेश उनके नजदीक पड़ता है और वे मूलतः बांग्लादेश के ही रहने वाले हैं। लेकिन उनको जम्मू-कश्मीर में लेकर कौन आ रहा है? नेशनल कान्फ्रेंस और पीडीपी दोनों ही इन रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर अचानक इतनी द्रवित क्यों हो रही हैं? जम्मू-कश्मीर में तो स्थायी निवासी के अतिरिक्त कोई भारतीय नागरिक भी नहीं बस सकता, फिर इन रोहिंग्या मुसलमानों के मामले में वहां की सरकार इतनी उदार कैसे हो रही है? उससे भी बड़ा प्रश्न है कि ये रोहिंग्या म्यांमार से इतना लंबा सफर तय करके केवल जम्मू में ही क्यों पहुंचते हैं?  यहां सवाल यह भी उठता है कि जम्मू-कश्मीर में भी वे कश्मीर घाटी तक जाने के बजाय जम्मू में ही क्यों रुक जाते हैं? इसका कोई न कोई जवाब नेशनल कान्फ्रेंस या पीडीपी के पास तो होना ही चाहिए। क्या रोहिंग्या संकट का लाभ उठा कर कुछ संगठन किसी योजना और रणनीति के तहत जम्मू का जनसांख्यिकी अनुपात तो नहीं बदलना चाहते? इससे पहले इस काम में अवैध बांग्लादेशी मुसलमानों के माध्यम से सफलतापूर्वक किया जा रहा है। इस रणनीति के अनेक आयाम हैं और ये सभी आपस में जुड़े हुए हैं। इस रणनीति को सफलतापूर्वक क्रियान्वित करने के लिए अनेक समूह परस्पर योजना से कार्य कर रहे हैं। पहला समूह, भारत को मानवीय आधार पर रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देना चाहिए, इस बात का प्रचार करता है। इस काम के लिए वे जलते घरों के वीडियो का प्रयोग करता है। म्यांमार में रोहिंग्या पर सुरक्षा बलों के अत्याचारों की झूठी-सच्ची कहानियां प्रचारित की जाती हैं। ऐसा प्रदर्शित किया जा रहा है कि दुनिया जहां के जुल्मो-सितम इन्हीं लोगों पर हो रहे हैं। इन सूचनाओं के स्रोत पश्चिम के मानवाधिकार संगठन ही हैं। भारत का शायद ही कोई मीडिया समूह अराकान की पहाडि़यों में जाने की जहमत उठा रहा है। वह केवल भारत में पश्चिमी मीडिया की जूठन ही उगल रहा है। दूसरा समूह इन रोहिंग्या मुसलमानों को जम्मू-कश्मीर पहुंचाता है। तीसरा समूह, वहां के वहाबी संगठनों के माध्यम से उन्हें जम्मू में बसाने की वकालत करता है और अंतिम समूह चाहता है कि भारत सरकार रोहिंग्या मसले को लेकर म्यांमार सरकार और वहां के सुरक्षा बलों की निंदा का अभियान चलाए, ताकि प्रतिक्रिया में म्यांमार एक बार फिर चीन की गोद में जाकर बैठ जाए। भारत सरकार को रोहिंग्या के मामले में देशहित में सही स्टैंड लेना होगा।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com


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