लापरवाही के हादसे

By: Sep 12th, 2017 12:02 am

(रमेश सर्राफ, झुंझुनू (ई-मेल के मार्फत))

विकास का प्रतीक मानी जाने वाली सड़कें आज विनाश का पर्याय बनती जा रही हैं। देश में आज ऐसा कोई भी दिन नहीं गुजरता, जिस दिन देश के किसी भाग में सड़क हादसा न हो और कई लोगों को जान से हाथ धोना न पड़े। अधिकांशतः सड़क दुर्घटनाओं का शिकार होने वाले व्यक्ति आम जन होते हैं, इसलिए वे अखबारों की सुर्खियां भी नहीं बन पाते। पिछले साल औसतन एक घंटे में 55 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 17 लोगों की मौत हो गई। यह जानकारी एक सरकारी रिपोर्ट में सामने आई है। हालांकि कुल मिलाकर सड़क हादसों में 4.1 प्रतिशत की गिरावट आई है, लेकिन मृत्यु दर में 3.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। सड़क पर रोजाना 400 से ज्यादा लोग मारे जाते हैं। इन हादसों के शिकार लोगों में 46.3 प्रतिशत लोग युवा थे और उनकी उम्र 18 से 35 साल के बीच है। यह आकलन भारत में वर्ष 2016 में हुई दुर्घटनाओं पर आधारित है। पुलिस के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट के मुताबिक सड़क हादसों के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार एकमात्र कारण चालकों की लापरवाही है। मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाने के कारण ही 4,976 दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 2,138 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस तरह मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाना सड़क दुर्घटना का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है और आने वाले समय में इसके चलते हादसों में बढ़ोतरी की आशंका है। सरकार ने इन हादसों को रोकने के लिए एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा नीति तैयार की है। इस नीति का मकसद इन हादसों के प्रति लोगों को शिक्षित और जागरूक करना है। उम्मीद है कि इस नीति के प्रभावी क्रियान्वयन से देश में हर रोज कई लोगों की जान को बचाया जा सकेगा।


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