शब्दवृत्ति
मौत बांटते स्कूल
(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )
गुरु के ही इस ग्राम में, हुआ शिष्य का खून,
कहां खप गए कायदे, कहां लुटा कानून।
धंसी सुरक्षा भाड़ में, नियम रहे नित निचोड,
उग्र प्रदर्शन था हुआ, बेकाबू आक्रोश।
रेयान महाराजा बने फल रहा धनकोष,
गाढ़ दिए है कब्र में, सब आचार- विचार।
दारू पीकर धुत्त है, बस के खेवन हार,
फीस भरी, जेबें कटीं, पापा पड़ गए पस्त।
दिल दहलाता हादसा, मालिक पीकर मस्त,
रक्षक, भक्षक बन गए, बाढ़ चर गई खेत,
हुआ खिलौना चूर अब बिखर गई सब रेत।
रावण चौकीदार है, पड़ा नशे में चूर,
वेतन सीधा कर रहा, मस्ती है भरपूर,
घुसा बांटने मृत्यु वह वहशी था शैतान।
रोक- टोक कूछ भी नहीं, विद्यालय अनजान,
मठाधीश ऊंची पहुंच सांठ-गांठ के ठाठ,
नियम तोड़ते थे सदा, खड़ी हुई अब खाट।
हर बच्चे को मिल गया, शिक्षा का अधिकार
अब स्कूलों में मिले जीने का अधिकार।
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