संवेदना के सुजगे कहानीकार : एसआर हरनोट

By: Sep 17th, 2017 12:05 am

लेखक के संदर्भ में किताब

हिमाचल का लेखक जगत अपने साहित्यिक परिवेश में जो जोड़ चुका है, उससे आगे निकलती जुस्तजू को समझने की कोशिश। समाज को बुनती इच्छाएं और टूटती सीमाओं के बंधन से मुक्त होती अभिव्यक्ति को समझने की कोशिश। जब शब्द दरगाह के मानिंद नजर आते हैं, तो किताब के दर्पण में लेखक से रू-ब-रू होने की इबादत की तरह, इस सीरीज को स्वीकार करें…

जब रू-ब-रू हुए…

दिहि : कितना कठिन है कहानी में सत्य को परोसना?

हरनोट : सत्य को हूबहू नहीं परोस सकते, लेकिन जिन घटनाओं को हम कहानी में लेते हैं, वे इस तरह लगनी चाहिए जैसे कि किसी सत्य का बखान कर रही हों।

दिहि : चिंतन-धारा के बीच या संवदेना से महरूम यथार्थ में रहना कितना आसान है?

हरनोट : कहानी में संवेदना और यथार्थ दोनों जरूरी हैं। संवेदना होनी चाहिए, तभी पाठकों के दिल तक पहुंचती है।

दिहि : कहानी को बुलंद करते पात्र की खोज व पहचान को आप कैसे छू पाते हैं? उदाहरण के लिए ‘आभी’ के चरित्र में लेखक की घुसपैठ कैसे संभव हुई?

हरनोट : कहानी के लिए पात्र बहुत आवश्यक है, लेकिन पात्र तब बनता है जब कहानीकार उस पात्र के भीतर प्रवेश करता है। आभी का उदाहरण ही लें, तो वह तभी संभव हो पाया जब चिडि़या के भाव को अपने में महसूस किया।

दिहि : कहानीकार की ऑब्जर्वेशन और नैपथ्य की खनखनाहट में कौन-सा पक्ष ज्यादा कौंधता है?

हरनोट : कहानी का ऑब्जर्वेशन समाज से आता है। पात्रों, परिवेश व घटनाओं को महसूस किया जाता है, फिर  कहानी को पाठक के सामने पेश किया जाता है। पाठक उसी भाव से अगर ग्रहण करता है, तो इसी में सुंदरता है।

दिहि : कहानी आपको पुकारती है या आप उसे कभी चुपके-से बुला पाते हैं?

हरनोट : दोनों ही बातें हैं, परिस्थितियों पर निर्भर करता है। कई बार कोई घटना व पात्र मन में इस तरह बस जाते हैं कि

वे बार-बार आपको सृजन के लिए उकसाते हैं।

दिहि : वर्गीय संघर्ष और जातीय असमानता के बीच एसआर हरनोट की कहानी का जन्म बार-बार होता है या इस संवेदना को कबूल करवाने की जिद्द परिवेश से टकराती है?

हरनोट : लेखक जिस परिवेश में रहता है, वह उसी समाज की अच्छाइयां व बुराइयां ग्रहण करते हुए किसी रचना को जन्म देता है। यदि आप पहाड़ी समाज के साथ अन्य समाज की बात करें तो जातिगत समस्याएं बहुत मुखरता से हमारे समाज में आज भी मौजूद हैं जिन्हें आप समुदाय विशेष में देख सकते हैं। मंदिरों में प्रवेश के अतिरिक्त ये समस्याएं सियासी गलियारों तक मौजूद हैं। मैंने जातिगत असमानताओं को न केवल भीतर तक महसूस किया, बल्कि समय-समय पर वंचित वर्ग के उत्थान के लिए काम भी किया। यह जरूरी है कि एक रचनाकार समाज की इन कुरीतियों पर तीखा प्रहार करे।

दिहि : कहानी से भाषायी दुरुस्ती या विस्तार के बीच जीवन की खाइयों को भौतिक विस्तार में खोजना आपकी विशिष्टता रही है, ऐसे में पीढि़यों का घर्षण समेटना आपको कितना सालता है?

हरनोट : वर्तमान में पीढि़यों के संघर्ष और उनकी दूरियों के साथ आपस में खाइयां काफी बड़ी दिखती हैं जिसे एक रचना में समेटना बड़ी चुनौती है। किसी रचना की सफलता वही है जब आप एक उस कहानी का निर्माण करते हैं और पीढि़यों के आपसी रिश्तों को मधुरता से पढ़ते हुए उन्हें बराबर सम्मान देते हैं।

दिहि :  आपके लेखन पर प्रभाव भी है और दबाव भी है, तो क्या आप कहानी के पक्षकार को आंदोलित होते देखे पाए?

हरनोट : कहानी लिखना मेरे लिए हमेशा चुनौती भरा काम रहा है और जब हम समाज के भीतर पनपती कुरीतियों व अंधविश्वासों को रचना का माध्यम बनाते हैं तो उसमें बहुत सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। आज समाज में बहुत से ऐसे अंधविश्वास हैं जिनके प्रति लोगों की गहन आस्था भी है। इसलिए किसी भी कहानीकार का यह दायित्व भी और चुनौती भी है कि वह अपनी कहानी या रचना की मुखरता को साबित भी करे और समाज के किसी वर्ग को बुरा भी न लगे।

दिहि : गांव की कहानी में स्वाभाविक दर्शन के साथ जो दर्पण हमेशा आपकी लेखकीय क्षमता को प्रतिबिंबित करता है, उसमें कितना कठिन है सत्य को हूबहू परोसना या अंगीकार करना?

हरनोट : मेरा जन्म गांव में एक साधारण परिवार में हुआ जिस कारण वह गांव मेरे भीतर रचता-बसता है। लेकिन उसके भीतर के सुख-दुख और अच्छे-बुरे को आप रचना में तभी सार्थक कर पाते हैं जब आप उस परिवेश से बहुत गहराई से जुड़े हों। इसलिए चुनौतियां भी बहुत रहती हैं, लेकिन आसानी यह है कि आप उस परिवेश को अंदर तक जानते और समझ कर अनुभव करते हैं।

दिहि : आपकी कहानियों के दर्द को शब्द-सज्जा किस हद तक अभिव्यक्त करने में सफल रही या इस विषय पर आप खुद मूल्यांकन करते हैं?

हरनोट : मैं बहुत सरल और आम भाषा का प्रयोग करता हूं ताकि आम आदमी, बुद्धिजीवी और हर वर्ग तक कहानी पहुंचे।

दिहि : उत्तम रचना के लिए काल और समाज का योगदान या कहानीकार में राष्ट्र का प्रतिनिधित्व अगर खोजना हो तो रचना की ईमानदारी को कैसे छुआ जाए?

हरनोट : जो लिख रहे हैं, वह लगे कि आम लोगों की कहानी है, कोई बनावटी नहीं। जो लिखते हैं, वह समाज के इर्द-गिर्द घूमना चाहिए।

-अंजना ठाकुर -फीचर डेस्क

कहानी-उपन्यास लेखन को दी नई दिशा

हिमाचल पर्यटन विकास निगम में कई वर्षों तक डिप्टी जनरल मैनेजर के रूप में सेवाएं देने वाले साहित्यकार एसआर हरनोट मुख्यतः कहानीकार व उपन्यासकार हैं। अपने लेखन से उन्होंने इन विधाओं को नई दिशा दी। शिमला जिला से संबंधित हरनोट का जन्म 22 जनवरी 1955 को चनावग में हुआ। उन्होंने बीए आनर्स के बाद हिंदी में एमए की उपाधि प्राप्त की तथा साथ ही पत्रकारिता में भी डिग्री हासिल की। हिंदी व अंग्रेजी समझने वाले हरनोट एक संवेदनशील इनसान व रचनाकार हैं। प्रदेश तथा देश से प्रकाशित होने वाले हिंदी के समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं में इतिहास, संस्कृति, लोक जीवन और विविध विषयों पर नियमित लेखन करते रहते हैं। कई संपादित संग्रहों में कहानियां संकलित की गई हैं। अंग्रेजी, मराठी, कन्नड़, पंजाबी और गुजराती सहित कई भाषाओं में इनकी कहानियों के अनुवाद हैं। फ ोटोग्राफ ी में विशेष रुचि रखते हैं। उनकी कई प्रदर्शनियों का आयोजन हो चुका है। हिंदी साहित्य की लघु पत्रिकाओं के प्रचार-प्रसार में उनका सक्रिय सहयोग रहा है। कई साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं से भी वह संबद्ध रहे हैं। आर्थिक रूप से कमजोर व दलित वर्ग के लोगों के उत्थान के लिए वह निरंतर कार्यशील रहे हैं। आकाशवाणी शिमला और दूरदर्शन केंद्र जालंधर व शिमला से उनकी रचनाओं के प्रसारण होते रहे हैं। हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के गृह पत्र ‘पर्यटन परिवार’ का संपादन भी वह कर चुके हैं। उनकी कहानी ‘दारोश’ पर दिल्ली दूरदर्शन द्वारा कथा सरिता कार्यक्रम के लिए फिल्म का निर्माण किया जा चुका है।

मुख्य कृतियां

उपन्यास : हिडिंब

कहानी संग्रह : पंजा, आकाशबेल, पीठ पर पहाड़, दारोश तथा अन्य कहानियां, जीनकाठी तथा अन्य कहानियां, मिट्टी के लोग, लिटन ब्लॉक गिर रहा है तथा  सरोज वशिष्ठ द्वारा अंग्रेजी में अनूदित 14 कहानियों का संग्रह ‘माफिया’

अन्य : हिमाचल के मंदिर और उनसे जुड़ी लोककथाएं, हिमाचल की कहानी, हिमाचल एट ए ग्लांस (संयुक्त कार्य)

पुरस्कार और सम्मान

* अंतरराष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान

* हिमाचल राज्य अकादमी पुरस्कार

* क्रिएटिव न्यूज फाउंडेशन, दिल्ली द्वारा श्रेष्ठ साहित्यकार पुरस्कार

* हिमाचल प्रदेश राजकीय अध्यापक संघ, हमीरपुर द्वारा श्रेष्ठ साहित्यकार सम्मान

* अखिल भारतीय भारतेंदु हरिश्चंद्र अवार्ड

* हिमाचल गौरव सम्मान

* हिमाचल भाषा और संस्कृति विभाग द्वारा कहानी और निबंध लेखन के लिए सम्मान

* प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़ द्वारा श्रेष्ठ साहित्य सम्मान

* हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा साहित्य सम्मान

* हिमाचल केसरी अवार्ड

यात्रा-विवरण

किन्नौर, स्पीति, लाहुल और मणिमहेश (हिमाचल के दुर्गम और जनजातीय क्षेत्रों की सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक यात्राएं)

क्यों चिंतित है ‘आभी’

चिडि़या शब्द सामने आते ही कई बार कुछ लोग कल्पना करने लग जाते हैं कि काश, हमें भी पंख होते तो हम भी उसी की तरह आकाश में स्वच्छंद घूमते-उड़ते और आनंद लेते।

इस तरह चिडि़या स्वच्छंदता का पर्याय मानी जाती है, जो केवल उड़ने का मजा लेती है, जिसे कोई चिंता या फिक्र नहीं। लेकिन जिस चिडि़या की हम बात करने जा रहे हैं, वह उड़ती जरूर है, पर किसी काम को करने के लिए ही।

वह इतनी स्वच्छंद व चिंतामुक्त भी नहीं है। उसके पास ढेरों काम हैं, उसे झील में पड़ा कूड़ा-कचरा साफ करना है जिसमें वह चौबीसों घंटों व्यस्त रहती है। इस तरह वह आदमी की तरह ही व्यस्त है। इस चिडि़या का नाम है ‘आभी’।

वह अब झील में गिरते तिनकों व पत्तों से ज्यादा इनसानों से डरने लगी है। तिनके-पत्ते तो वह अपनी चोंच से हटाकर कुछ समाधान निकाल लेगी, लेकिन उस भारी कूड़े का क्या करे जो जलोड़ी दर्रे की सरयोलसर झील में वहां आने वाले पर्यटक फेंक जाते हैं।

प्लास्टिक के लिफाफे, खाली बोतलें और अन्य कचरा वे यहां इस तरह फेंक देते हैं कि यहां स्थित बूढ़ी नागिन मां (मंदिर) से भी शर्म महसूस नहीं करते। इसी चिंता में डूबी चिडि़या के इन भावों को अभिव्यक्ति दी है एसआर हरनोट ने अपनी कहानी ‘आभी’ में।

इस अभिव्यक्ति के कारण आभी अब एक चिडि़या ही नहीं है, बल्कि वह एक सामाजिक कार्यकर्ता बन गई है। उसकी चिंता आदमी से भी बड़ी है, क्योंकि आदमी तो कचरा फैलाता है, जबकि नन्ही चिडि़या आभी उस कचरे को ठिकाने लगाने का काम करती है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App