समस्या नहीं, संसाधन है कचरा

By: Sep 11th, 2017 12:02 am

कुलभूषण उपमन्यु

लेखक, हिमालय नीति अभियान के अध्यक्ष हैं

कचरा गलत जगह पड़ा हो तो समस्या है, परंतु सही रूप में उपचारित कचरा उपयोगी संसाधन भी है। दृष्टि में इस बदलाव के आते ही कचरे के प्रति हमारे व्यवहार में भी बदलाव आना स्वाभाविक है, लेकिन यह बदलाव केवल सरकार की दृष्टि में आने से काम नहीं बनेगा। यह बदलाव तो समग्र समाज की सोच में आना चाहिए…

हिमाचल और सुरम्य पर्वतीय राज्यों में कचरे का बढ़ता अंबार नित नई समस्याओं और तनाव का कारण बनता जा रहा है। यह सुंदर वादियों में बदनुमा धब्बे पैदा करके भू-दृश्य को बिगाड़ रहा है और नदी-नालों के जल को प्रदूषित कर रहा है। स्थानीय सिंचाई की नालियां कचरे से पटती जा रही हैं। डंपिंग स्थलों में सब तरह का कचरा इकट्ठा पड़ा सड़ता रहता है, जिससे आसपास के इलाकों में बदबू फैलने से सामाजिक तनाव फैलता है और प्रशासनिक स्तर पर भी समस्याएं पैदा होती हैं। कचरे के ढेरों में जानबूझ कर या असावधानी वश आग लग जाती है। गांवों में भी कचरा खुले में जलाया जा रहा है, जिससे वायु प्रदूषण फैलने से भी तनाव और स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो जाता है। इस परिस्थिति का निर्माण कचरे को केवल समस्या के रूप में देखने के कारण होता है। एक समाज के रूप में इस समस्या के समाधान की सारी जिम्मेदारी सरकार पर डाल देने के कारण समाधान और कठिन हो जाता है। पर्वतीय राज्यों में तो पर्यटन की संभावनाओं के क्षरण के रूप में भारी खतरे का कारण इससे उपस्थित हो सकता है।

हमें यह समझना होगा कि कचरा गलत जगह पड़ा हो तो समस्या है, परंतु सही रूप में उपचारित कचरा उपयोगी संसाधन भी है। दृष्टि में इस बदलाव के आते ही कचरे के प्रति हमारे व्यवहार में भी बदलाव आना स्वाभाविक है, लेकिन यह बदलाव केवल सरकार की दृष्टि में आने से काम नहीं बनेगा। यह बदलाव तो समग्र समाज की सोच में आना चाहिए। इसी से हम कचरा निपटाने के मामले में गंभीर और व्यावहारिक कदम उठाने में सक्षम हो सकेंगे। कचरा प्रबंधन के लिए हमें इस समस्या को चार चरणों में निपटाने की तैयारी करनी होगी। पहले चरण के रूप में हमें प्रति व्यक्ति कचरे की मात्रा कम करने का प्रयास करना चाहिए। इसमें थोड़ी कमी भी बहुत बड़ा सकारात्मक कदम सिद्ध होगा। दूसरा कदम रिसाइकिलिंग होना चाहिए। एक टन लोहे को रिसाइकिल करने से लौह धातु का खनन उतना कम तो होगा ही, इसके साथ एक टन कार्बन डाइआक्साइड का वायु में उत्सर्जन होने से बचेगा। तीसरे चरण में जो कचरा पुनः प्रयोग और रिसाइकिल से बच जाएगा, उसमें से जैविक कचरे से बायो गैस और जैविक खाद बना लेनी चाहिए। धातुएं, बैटरियां, बल्ब, अलग इकट्ठी की जानी चाहिएं। शेष ज्वलनशील कचरे को बिजली बनाने के लिए ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाना चाहिए, जिससे जीवाश्म ईंधन की बचत होगी और वायुमंडल में कुल उत्सर्जित होने वाली ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा कम हो जाएगी।

इस मामले में हम स्वीडन से काफी कुछ सीख सकते हैं। स्वीडन 47 फीसदी कचरे को पुनः प्रयोग और रिसाइकिल कर लेता है और 50 फीसदी कचरे को ऊर्जा उत्पादन के लिए ईंधन के रूप में प्रयोग कर लेता है। केवल तीन फीसदी अनुपयोगी कचरे को ही डंप करने की जरूरत पड़ती है। वहां भी यह ध्यान रखा जाता है कि जहरीले तत्त्वों का डंपिंग स्थलों से रिसाव न हो सके। डंपिंग स्थलों में जैविक और ज्वलनशील कचरा डालने पर रोक है। सबसे महत्त्वपूर्ण सीख स्वीडन से लेने योग्य यह है कि वहां कचरे को इकट्ठा करने और उपचारित करने की जिम्मेदारियां इस तरह बांटी गई हैं कि बहानेबाजी की कोई गुंजाइश ही नहीं बचती है। इस कार्य को कचरा पैदा करने वाले उद्योगों, व्यापारिक घरानों, नगरपालिकाओं और निजी उद्यमों में बांटा गया है। किस कचरे को कौन एकत्रित करेगा, कौन ढुलाई करके उपचारण केंद्रों में पंहुचेगा और कौन उपचारित करेगा, यह सब तय है। घरेलू कचरा इकट्ठा करना नगरपालिकाओं के जिम्मे है, तो खतरनाक कचरा जैसे बैटरियां, शीशा, बल्ब, इलेक्ट्रॉनिक कचरा  आदि उन्हें बनाने वाली कंपनियों की जिम्मेदारी है। व्यावसायिक कचरा व्यावसायिक घरानों की जिम्मेदारी है। म्युनिसिपल कचरे के लिए भूमिगत टैंक बनाए गए हैं, जिन्हें बड़ी-बड़ी ट्यूबों से आपस में जोड़ा गया है। इस संजाल का आखिरी सिरा लदान स्थल तक जाता है। कचरे को वेक्यूम पे्रशर से लदान स्थल तक धकेला जाता है, जहां ढुलान वाहनों में डाल कर उसे उपचारण केंद्रों में पहुंचाया जाता है। अलग-अलग तरह के उपचारण केंद्रों का संजाल बनाया गया है।

जैविक कचरे से बायो गैस बनाने का काम कितनी गंभीरता से किया जाता है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2013 में 5, 67, 630 मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन इससे किया गया। इसके लिए 14, 74, 190 टन  घरेलू जैविक कचरे को उपचारित किया गया। स्वीडन कचरे से बिजली पैदा करने वाला सबसे कुशल देश है। वह एक टन कचरे से तीन मेगावाट ऊर्जा पैदा कर लेता है। स्वीडन ने 2013 में ऊर्जा उत्पादन के लिए  यूरोप के अन्य देशों से 8,31,400 टन कचरा आयात करके उनको भी कचरे की समस्या से निपटने में मदद की। इंसिनेरेटरों में कचरा जलाने के बाद बची राख को डंपिंग स्थलों में निर्माण कार्य में लगा लिया जाता है। पैदा होने वाली फ्लू गैसों को भी जला दिया जाता है। इस तरह कचरा जब आय का साधन बन जाएगा, तब इसके उपचारण की व्यवस्थाएं और भी सुदृढ़ होती जाएंगी। इस आय को उपचारण व्यवस्था में लगे कामगारों और सफाई कर्मचारियों के वेतन पर खर्च करके उनकी स्थिति को भी सुधारा जा सकता है। सरकारी खजाने पर बोझ घटेगा और रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। एक जगह से सुनियोजित पहल की जाए, तो यह व्यवस्था अपनी ताकत से आगे बढ़ने की क्षमता रखती है। हमें एक समाज के रूप में भी कचरे के प्रति बरती जाने वाली लापरवाही से ऊपर उठ कर स्वच्छता के लिए कचरे को जगह-जगह फेंकने की आदतों को छोड़ना होगा और अपने आसपास के कचरे के उपचारण का आग्रही बनना होगा।


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