समारोह की सार्थकता

By: Sep 3rd, 2017 12:10 am

कबीर दास जी ने सत्य ही कहा है गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोक्ष। गुरु बिन लखै न सत्य को गुरु बिन मिटै न दोष।

 भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान हमेशा ऊंचा रहा है, यह वही देश है जहां गुरु द्रोणाचार्य के कहने पर एकलव्य ने अपना अंगूठा काटकर अपने गुरु को दे दिया था। बिना गुरु के कामयाबी पाना बहुत कठिन होता है। जो हमें अच्छी सीख दे वह हमारा गुरु है।  अगर जीवन में कुछ करना है तो गुरु के कहे अनुसार चलना जरूरी है। अकसर घमंड में हम गुरु की महत्ता को कम कर देते हैं और गुरु की कही बात का पालन नहीं करते इसलिए आज हम आपको एक कहानी बताएंगे जिसमें गुरु के महत्त्व को बताया गया है। एक बार स्कूल के एक अध्यापक अपने शिष्यों को सूरजमुखी के बीज देकर उसका पौधा उगाने और उसकी देखभाल करने के लिए कहते हैं। सभी शिष्यों को यह कार्य ज्यादा पसंद नहीं आता, लेकिन इनमें से एक शिष्य को यह कार्य बहुत प्यारा लगता है और वह बड़ी उत्सुकता से इन बीजों को बोता है और कई दिनों तक इनकी देखभाल करता है।

जब पौधा उगना शुरू हो जाता है तब लड़का अपना संयम खो देता है और अपने अध्यापक के पास जाकर कहता है क्या मैं इस पौधे को उखाड़ सकता हूं। अध्यापक अपने शिष्य से कहता है की इस अपने पौधे को लगा रहने देना चाहिए और उसकी देखभाल करते रहनी चाहिए। इससे वह केवल एक सूरजमुखी से कई बीज ले पाएगा। इससे लड़का निराश हो जाता है, लेकिन सूरजमुखी की देखभाल करता रहता है, फिर भी वह इसे उखाड़ने के लिए बेताब होता रहता है और अपने अध्यापक से इसे उखाड़ने की अनुमति मांगता रहता है, इसके बावजूद अध्यापक उसे सयंम रखने को कहते हैं, लेकिन जैसे ही सूरजमुखी का पहला बीज निकलता है। लड़का उस पौधे को तोड़ देता है ताकि उसे खा सके, लेकिन पौधा अभी हरा ही होता है और बीज अभी पका हुआ नहीं होता, इसलिए वह उसे नहीं खा पाता। जिससे यह लड़का पौधे को तबाह कर देता है। इस प्रकार जिस सूरजमुखी के पौधे के लिए वह इतनी मेहनत करता है और उसकी कई समय तक देखभाल करता है  उसने अपने गुरु का कहा न मानने पर उसमें असफल रहता है।

बाकी सब शिष्य अपने अध्यापक की कही बात के अनुसार सूरजमुखी का पौधा उगाते हैं। अपने साथियों के विशाल सूरजमुखी के पौधे देखकर वह बहुत क्रोधित होता है और अपने अध्यापक से कहता है, इस कार्य के लिए सबसे उत्सुक मैं ही था, लेकिन आपकी कही बात न मानकर मेरी सारी मेहनत और समय की बर्बादी हुई। अतः अब से मैं कार्य में हमेशा संयम रखूंगा और आपकी कही बात का पालन करूंगा। ज्ञान होना एक बात है और उसे व्यवहार में लाना एक कला है। जिसे यह कला आती है उसके लिए जिंदगी में सभी मुश्किल काम आसान लगने लगते हैं और सफलता उनके कदमों में होती है। ज्ञान अनुभवों, कामयाबियों, असफलताओं से ग्रहण किया जाता है इसलिए ज्ञान कहीं से भी मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए, जो आपको अच्छा ज्ञान दे उस गुरु का स्थान ऊंचा है, उसकी महत्ता उसके ज्ञान से पहचानी जानी चाहिए न कि उसकी व्यक्तिगत कामयाबियों से तुलना करनी चाहिए। ज्ञान को ग्रहण कर उसका इस्तेमाल करना आना चाहिए, तभी आप सफलताएं प्राप्त कर पाएंगे।


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