सिक्के बताते हैं कि शिव ही थे कुनिंदों के प्रधान देवता
हिमाचल प्रदेश में शैव धर्म का विकास कुनिंदों के सिक्कों से भी जाना जा सकता है। इन पर भी अनेक शैव प्रतीक ‘नंदिपद’ और ‘सर्प’ मिलते हैं। यहां उनके एक विशेष प्रकार के सिक्कों का उल्लेख किया जा सकता है, जिन पर भगवत छत्रोश्वर महात्मन लिखा हुआ है। इससे यह स्पष्टतः पता चलता है कि कुनिंदों का प्रधान देवता शिव था…
हिमाचल में प्रचलित धर्म
शैव धर्मः स्पीति का सेन वंश, कुल्लू-भरमौर के वर्मन शासक, औदुंबर, त्रिगर्त, कुलिंद के राजगण सभी शैव थे। उनके सिक्के उनकी शिव भक्ति दर्शाते हैं। औदुंबरों के सिक्कों पर वृषभ, त्रिशूल तथा कुठार के रूप अंकित हैं, जो शैव धर्म से संबंधित हैं। वृषभ भगवान का वाहन है और अन्य दो प्रतीक उसके अस्त्र हैं। इनसे शैव धर्म का प्रचार और उसकी लोकप्रियता स्पष्ट प्रकट होती है। हिमाचल प्रदेश में शैव धर्म का विकास कुनिंदों के सिक्कों से भी जाना जा सकता है। इन पर भी अनेक शैव प्रतीक ‘नंदिपद’ और ‘सर्प’ मिलते हैं। यहां उनके एक विशेष प्रकार के सिक्कों का उल्लेख किया जा सकता है, जिन पर भगवत छत्रोश्वर महात्मन लिखा हुआ है। इससे यह स्पष्टतः पता चलता है कि कुनिंदों का प्रधान देवता शिव था और वे उसे छत्रोश्वर कहते थे। इससे उनका विश्वास था कि छत्रोश्वर छत्र की तरह उनकी तथा उनके राज्य की रक्षा करता था। यौधेयों के सिक्कों से भी इस क्षेत्र में शैव धर्म के प्रसार के प्रमाण मिलते हैं। भारत के इस क्षेत्र में इस समय शैव संप्रदाय का बड़ा विकास हुआ जान पड़ता है। शिव के पुत्र कार्तिकेय की भी पूजा अत्यधिक मालूम पड़ती है। शैव धर्म के विकास की यह स्थिति गुप्तकाल से पूर्व की है क्योंकि औदुंबरों, कुनिंदों तथा यौधेयों के राज्य का तब तक अंत हो चुका था। इस क्षेत्र में शैव धर्म का विकास गुप्त और गुप्तोत्तरकाल में और भी हुआ। इस काल में विद्वानों की रायानुसार समस्त क्षेत्र इस धर्म और उससे संबंधित कला से भर गया। कांगड़ा, कुल्लू और लाहुल आदि के अधिकतर प्राचीन मंदिर इसी काल में बनाए गए हैं। इन शैव मंदिरों को शैव प्रतिमाओं और अनेक हिंदू देवी-देवताओं से अलंकृत किया गया है। शैव धर्म के इन प्राचीन केंद्रों में कांगड़ा का बैजनाथ मंदिर, कुल्लू क्षेत्र में स्थित निर्मंड के शैव मंदिर और लाहुल में त्रिलोक नाथ का मंदिर विशेष रूप से उल्लेखनीय है। ये तीनों स्थान गुप्त काल में शैव धर्म के प्रधान स्थल बन चुके थे। कुल्लू क्षेत्र का दूसरा प्रधान शैव केंद्र बजौरा था। बजौरा का विश्वेश्वर महादेव का मंदिर कुल्लू के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। हिमाचल के अन्य शैव क्षेत्रों और केंद्रों में चंबा और भरमौर तथा वहां के प्राचीन मंदिरों का उल्लेख करना अनिवार्य है। यहां शैव के सबसे अधिक मंदिर पाए जाते हैं। चंबा के अवशिष्ट शैव मंदिर गुप्तोत्तरकालीन हैं। इनकी संख्या अनेक है। इन्हें चंबा के राजाओं ने समय-समय पर बनवाया था। यहां मणिमहेश का मंदिर संभवतया सबसे प्राचीन है, जिसे चंबा के प्राचीन राजा मेरू वर्मन ने बनवाया था। संभवत. इस प्राचीन मंदिर का निर्माण मध्यकाल के प्रारंभिक काल में हुआ था।
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