सियासी उम्र का तकाजा

By: Sep 19th, 2017 12:02 am

बात पते की कह गए नड्डा। मौका व दस्तूर चुनावी है, तो सियासत अपना हलक साफ करेगी। इसलिए नेताओं की उम्र दराज हो चुकी पांत को विश्राम करने की सलाह देते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा यह भी गिन सकते हैं कि उनकी पार्टी में कितने शीर्ष स्तर के नेता रिटायर हो जाएंगे। हालांकि बुजुर्ग नेताओं की एक बड़ी शृंखला हिमाचल कांगे्रस की विरासत में दर्ज है, फिर भी भाजपा के अनुशासन में उम्र की पड़ताल लाजिमी हो चुकी है। भाजपा ने कई वरिष्ठ नेताओं को केंद्रीय मंत्रिमंडल से दूर रखा, तो यही शर्तें हिमाचली संताप में दर्ज हैं। इस समय भाजपा का सबसे बड़ा सवाल भी यही है कि क्या प्रेम कुमार धूमल ही होंगे वह आदर्श चेहरा, जो दो बार मुख्यमंत्री पद की विरासत का जोरदार दावा है। अगर यह प्रश्न आसान या पार्टी का मर्यादित आचरण इतना सरल होता, तो हिमाचल में भाजपा आगामी नेतृत्व की बागडोर थमा चुकी होती। ऐसे में नड्डा ने भले ही कांगे्रस की ओर गेंद उछाल कर ‘उम्र का तकाजा’ बताया है, लेकिन असल में यह फांस उनकी पार्टी के गले पर दिखाई देती है। भले ही भाजपा में अदृश्य रेखाओं को नजरअंदाज किया जाए, लेकिन यह स्पष्ट है कि पार्टी का आम कार्यकर्ता राजनीतिक गणित में फंसा है। राजनीति में उम्रदराज होने के भी कई अर्थ हैं और इन्हें बारीकी से समझना होगा। कमोबेश यह सभी दलों की अमानत का रखरखाव है और जहां उम्र के पैबंद बरकरार हैं। कांग्रेस में मुख्यमंत्री समेत चार मंत्री गिने जा सकते हैं, जो उम्र के आधार पर सेवानिवृत्ति को लगातार ठुकरा रहे हैं। एक उदाहरण भाजपा के भीतर सांसद शांता कुमार का भी है, जो पिछले चुनाव में उतरने की मनाही कर चुके थे और सियासत के भीतर सनातनी होने की लगातार घोषणा करते हैं। एक अन्य मिसाल विजय सिंह मनकोटिया की है, जो इस उम्र में भी युवाओं सरीखा विरोध व विद्रोह करने की एक और पारी का इंतजार कर रहे हैं। इसी क्रम में एक चौथी पायदान भी है, जो मंडी में पंडित सुखराम की सियासत को सुरक्षित करती है। परिवार का सियासी पलड़ा इस कद्र भारी हो चुका है कि बेटे अनिल शर्मा के बाद पोते आश्रय शर्मा की तकदीर भी लिखी जा रही है। कांगे्रस में ऐसा होना इसलिए भी आश्चर्यजनित नहीं, क्योंकि परिवारवाद पर राहुल गांधी के हालिया बयान में भाजपा भी बराबर की भागीदार है। राजनीति में उम्र या परिवार का बंधन हो, तो युवा क्षमता का बेहतर इस्तेमाल हो सकता है और इस बार चुनावी यथार्थ भी ऐसे विषयों पर ही लिखा जाएगा। भाजपा को अगर अपनी उम्र देखनी है तो युवाओं के साथ कदमताल करते उत्साह को देखना होगा। प्रदेश में सवा लाख के करीब नए मतदाताओं को जोड़ना है, तो उम्मीदवारों के चयन में निश्चित रूप से उम्र का तकाजा सामने आएगा। हिमाचल के नए मतदाताओं की संख्या में ऐसा फौलादी समीकरण जरूर है, जो काम आए तो किसी भी राजनीतिक दल को भविष्य बता सकता है। इस दृष्टि से कांगड़ा में भाजपा की हुंकार रैली पार्टी के फेफड़ों में टनों आक्सीजन भर सकती है, लेकिन असली शिनाख्त तो चुनाव में युवा न नए चेहरे उतार कर ही होगी। जाहिर तौर पर जिस राजनीतिक दल की रगों में नया रक्त होगा, वही तेजी से मुकाम तक पहुंचेगा। सुक्खू बनाम वीरभद्र द्वंद्व की एक वजह द्वितीय पांत का संघर्ष है और इसलिए जीएस बाली सरीखे नेताओं को सुना जाता है या उनकी चर्चाओं के हर बिंदु में कोई न कोई समीकरण है। देखना यह है कि नड्डा जिस तीर से कांगे्रस के बुजुर्ग नेताओं पर प्रहार कर रहे हैं, उसी से उनकी सीमा रेखा पर खड़े भाजपा नेता भी शिकार होते हैं या अभी भाजपा केवल मुआयना ही करती रहेगी, कहना कठिन है। बहरहाल राजनीतिक सक्रियता को प्रदर्शन के हिसाब से जांच रही भाजपा के दो मापदंडों का हिमाचली मतदाता को भी इंतजार है कि किस प्रकार उम्र और परिवार के मोह से अपने नेताओं का शुद्धिकरण या विमुक्तिकरण कर पाती है।


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