स्वरोजगार की राह पर चलें हिमाचली युवा

By: Sep 20th, 2017 12:02 am

जसवंत सिंह चंदेल

लेखक, बिलासपुर से हैं

जो युवक दिन-रात मेहनत करते हैं, कामयाब हो जाते हैं, जो नहीं करते, वे मां-बाप पर बोझ बन जाते हैं। मेरा मानना है कि पढ़ा-लिखा युवक अपने आपको असहाय और सरकार पर आश्रित न पाएं। बेकारी और गरीबी न केवल आर्थिक अपराधों को जन्म देती है, बल्कि प्रजातंत्रीय मूल्यों के लिए भी चुनौती है…

बेकारी और निर्धनता का संबंध हमारी बढ़ती जनसंख्या से है। लगभग 2.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ने वाली जनसंख्या समस्त विकास कार्यों को ग्रस्त कर लेती है और बेकारी को और अधिक बढ़ा देती है। हमारा सामाजिक ढांचा ऐसा है कि उच्च जातियां कहलाने वाले लोग छोटे काम-धंधे नहीं करना चाहते हैं। निर्धनता और बेकारी हिमाचल प्रदेश के विकास के रास्ते में दो बड़ी बाधाएं हैं। क्या सरकार हर युवक और युवती को नौकरी दे सकती है। क्या हर पढ़े-लिखे युवक और युवती को दफ्तर का काम मिल सकता है? क्या एक इंजीनियर बच्चा उतना पैसा कमाकर अपने मां-बाप को हर महीने दे पाता है, जितना उन्होंने उसकी पढ़ाई पर खर्चा है? इस तरह के बहुत से सवाल हैं और उत्तर लगभग हर सवाल का ‘न’ ही है। आज खेत-खलिहान खाली पड़े हैं। कोई युवक खेत में काम नहीं करना चाहता है। मां-बाप किसी तरह कुछ पूंजी इकट्ठा करते हैं और अपने बच्चों को कोई धंधा करने में लगा देते हैं, जो युवक दिन-रात मेहनत करते हैं, कामयाब हो जाते हैं, जो नहीं करते, वे मां-बाप पर बोझ बन जाते हैं। मेरा मानना है कि पढ़ा-लिखा युवक अपने आपको असहाय और सरकार पर आश्रित न पाएं। बेकारी और गरीबी न केवल आर्थिक अपराधों को जन्म देती है, बल्कि प्रजातंत्रीय मूल्यों के लिए भी चुनौती है।

पढ़ाई इसलिए की जाती है कि बुद्धि का विकास हो और जीवन की हर चुनौती का सामना करने में आदमी सक्षम हो जाए। हर गांव में दर्जी बिहार के हैं। हर शहर और कस्बे में मकान बनाने वाले व फर्नीचर बनाने वाले दूसरे प्रांतों के हैं। रंग-रोगन करने वाले भी दूसरे प्रांतों के हैं। बस अड्डों पर कुलियों का काम करने वाले अधिकतर कश्मीरी मुसलमान हैं। खेत मजदूर बाहरी राज्यों के हैं। हिमाचली युवक ये सब काम क्यों नहीं कर सकते हैं? क्या इच्छा शक्ति की कमी है या ये काम करने में शर्म आती है। इसका जवाब युवकों को ही देना होगा। युवकों को स्वावलंबी बनना पड़ेगा। स्वावलंबी व्यक्ति में कार्य करने की प्रेरणा अपने भीतर से आती है। ऐसे असंख्य उदाहरण हैं, जहां लोगों ने थोड़ी सी पूंजी से व्यापार प्रारंभ किया और करोड़पति बन गए। किसी ने छोटी सी संस्था चलाई और अंततः विश्वव्यापी संस्था बन गई। मुंबई की डिब्बा संस्था इसका जीता-जागता उदाहरण है। खाने के डिब्बे लेकर संस्था के लोग खाना घर-घर पहुंचाते हैं। वे कभी किसी के यहां देर से नहीं पहुंचते हैं। मौसम उनके काम में कभी बाधा नहीं पहुंचा सकता है। डिब्बे की संस्था के लोग कर्मठ हैं, मेहनती हैं और काम की वे लोग पूजा करते हैं।

क्या हिमाचल प्रदेश के शहरों और उन कस्बों में जहां शिक्षण संस्थान हैं, इस तरह की कोई डिब्बा संस्था शुरू नहीं कर सकता है? जरूर कर सकता है और मेरा मानना है कि इस तरह की संस्था कामयाब होगी। इसके लिए किसी एक युवक या युवती को आगे आने की जरूरत है। इस काम के लिए बड़ी पूंजी की जरूरत नहीं है। इसके लिए एक गैस चूल्हा, एक गैस कनेक्शन, तीन-चार पतीले, तवा -रात और कुछ रखने के लिए गर्म किस्म के डिब्बे। कुछ राशन और मसाले। शुरू-शुरू में यह देखना लाजिमी होगा कि खाने के डिब्बे के कितने ग्राहक हैं। उसी तरह के इंतजामात करने होंगे। मैं एक गांव में रहता हूं। इस गांव में पीडब्ल्यू, पानी महकमा के एसडीओ के दफ्तर हैं। जंगलात महकमे का रेंज अफसर का दफ्तर है। डाकघर है, दो बैंक हैं, बिजली महकमे का जेई दफ्तर है। जमा दो स्कूल तथा प्राइमरी हैल्थ सेंटर व पशु चिकित्सालय हैं। पूर्व सैनिकों की सीएसडी कैंटीन है और लगभग 70 दुकानें हैं। बाजार में केवल एक छोटा सा ढाबा है। उस ढाबे पर दोपहर के समय खड़े होने की जगह नहीं होती है। यहां पर पोलिटेक्नीकल कालेज हिमाचल सरकार द्वारा बनाया जा रहा है।

बिल्डिंग का काम लगभग पूरा होने जा रहा है। अगर कोई युवा या कुछ युवा मिल कर यहां पर खाने के डिब्बों का कारोबार कर लें तो उन्हें अच्छा-खासा रोजगार मिल जाएगा। इस काम को केवल एक खाना बनाने वाला और आवश्यकता के मुताबिक खाने के डिब्बे ले जाने वाले युवक चाहिएं। अच्छा हो हिमाचल के युवक नौकरियों की तलाश छोड़ दें और अपना कोई न कोई काम शुरू कर लें। अपना कारोबार हो सकता है शुरू में न जमे, लेकिन इसमें धीरे-धीरे तेजी आने लगती है। एक दिन ऐसा जरूर आता है जब काम जमने लगता है। इसमें आय भी नौकरियों से अकसर ज्यादा होती है। ऐसा काम करने से व्यक्ति कुछ सीख भी लेता है। अपने काम में जो शान है, वह नौकरी में कहां। इसलिए युवाओं को स्वरोजगार को प्राथमिकता देनी चाहिए। स्वरोजगार शुरू करने के लिए राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार ने कई योजनाएं चला रखी हैं। इन योजनाओं के तहत सस्ती ब्याज दर पर ऋण भी दिए जाते हैं। कर्ज लौटाने के लिए इतना समय मिल जाता है कि व्यक्ति को कोई परेशानी नहीं होती। स्माल स्केल पर कई काम शुरू किए जा सकते हैं। बस, थोड़ी सी सृजनशीलता, उद्यम और प्रयास तथा प्रशिक्षण की जरूरत है। इस तरह के प्रयास विफल नहीं जाएंगे। बैंक भी आजकल आसानी से कर्ज देने लगे हैं। शेयर होल्डर्स से भी निवेश मंगवाया जा सकता है। आजकल अपना रोजगार खोलना पहले से काफी आसान हो चुका है।


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