हिंदी का नया ‘कबूतर’: सोशल मीडिया

By: Sep 17th, 2017 12:05 am

हिंदी दिवस पर हाल में देशभर में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी कई तरह के आयोजन हुए। इनमें हिंदी के विकास में बेहतरीन योगदान देने वाले वैयक्तिक व सामूहिक प्रयासों का खूब अलंकरण हुआ। साहित्य, मीडिया व सिनेमा ऐसे प्रमुख स्तंभ हैं जो भाषायी विकास के लिए अविस्मरणीय योगदान कर रहे हैं। इस पन्ने पर हम यदा-कदा इन माध्यमों का विश्लेषण करते रहे हैं। आज जिस माध्यम की जबरदस्त चर्चा हो रही है, वह है सोशल मीडिया। देश ही नहीं, बल्कि विदेश में भी सोशल मीडिया आज हिंदी के प्रसार का नया प्रमुख माध्यम बन गया है। वह हिंदी की चमक पूरी दुनिया में बिखेर रहा है। संप्रति, इस अंक में पेश है हिंदी के विकास में सोशल मीडिया के योगदान का लेखा-जोखा…

सोशल मीडिया के प्रति लोगों का आकर्षण प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। भूमंडलीकरण के दौर में इस मीडिया का दायरा काफी विस्तृत हो चुका है, ऐसे में विभिन्न भाषाओं का विकास भी सोशल मीडिया के जरिए ही हो रहा है। आज की स्थिति में सोशल मीडिया और भाषा एक-दूसरे के अहम सहयोगी माने जा सकते हैं। भारत जैसे विशाल देश में जहां व्यापक क्षेत्र में हिंदी बोली जाती है, वहां इसके विकास में सोशल मीडिया के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। यह सच है कि सोशल मीडिया के असर से हिंदी के स्वरूप में इसके मूल स्वरूप से भिन्नता आई है, लेकिन यही भिन्नता इस विकास की गाड़ी के पहिए हैं। एक विस्तृत दायरे के साथ हिंदी अपने आप में व्यापक है। सोशल मीडिया के प्रयोगों के बावजूद हिंदी के अस्तित्व पर कोई संकट नहीं है। दूसरी भाषाओं के कुछ शब्दों के प्रयोग से ही हिंदी सोशल मीडिया के लायक बनी अन्यथा अपने मूल स्वरूप में हिंदी एक दायरे तक सीमित होकर रह जाती। यूं तो 80 के दशक में ही हिंदी को कम्प्यूटर की भाषा बनाने का प्रयास शुरू हो चुका था, परंतु सोशल मीडिया के साथ हिंदी का प्रयोग 20वीं सदी की समाप्ति के बाद शुरू हुआ। सन् 2000 में यूनिकोड के पदार्पण के बाद 2003 में सर्वप्रथम हिंदी में इंटरनेट सर्च और ई-मेल की सुविधा की शुरुआत हुई। हिंदी के विकास में यह एक मील-पत्थर साबित हुआ। 21वीं सदी के पहले दशक में ही गूगल न्यूज, गूगल ट्रांसलेट तथा ऑनलाइन फोनेटिक टाइपिंग जैसे औजारों ने सोशल मीडिया की दुनिया में हिंदी के विकास में महत्वपूर्ण सहायता की। भारत जैसे देश में जहां महज 10 प्रतिशत से भी कम लोग अंग्रेजी का ज्ञान रखते हैं, वहां हिंदी के इस स्वरूप की आवश्यकता बढ़ जाती है। हम कह सकते हैं कि सोशल मीडिया एक ऐसा गुरुकुल है जहां प्रत्येक भाषा एक संकाय की भांति प्रतीत होती है। इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यम और कम्प्यूटर आदि के उपयोग में हिंदी ने अपनी जगह बना ली है। इससे एक तरफ इन माध्यमों से हिंदी का प्रसार हो रहा है, तो दूसरी तरफ हिंदी का अपना बाजार भी बन रहा है। इससे हिंदी की अंतरराष्ट्रीय भूमिका मजबूत हो रही है। कुछ इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर एक पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा था कि यदि भारत को समझना है तो हिंदी सीखो। देवाशीष चक्रवर्ती के ‘एग्रीगेटर’ से शुरू हुआ हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। आलोक कुमार के ‘नौ दो ग्यारह’ नाम के हिंदी के पहले ब्लॉग से श्रीगणेश के बाद आज हजारों की संख्या में हिंदी ब्लॉग सोशल मीडिया में मौजूद हैं। अपनी अभिव्यक्ति को अपनी भाषा में प्रदर्शित करने का सुख सोशल मीडिया में ब्लॉगिंग के माध्यम से प्राप्त होता है। हिंदी के विकास में ब्लॉगिंग ने निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसका प्रमाण यह है कि हिंदी के कई ऐसे ब्लॉग हैं जो रोजाना 1000 से भी ज्यादा व्यक्तियों द्वारा देखे जाते हैं और यह कोई सामान्य बात नहीं है। शैली तथा वैचारिक रूप से अलग-अलग ये ब्लॉग अपनी भाषायी खुशबू को प्रतिदिन हजारों जनमानस तक पहुंचाते हैं। किसी भाषा के विकास व उत्थान के लिए इससे बेहतर क्या हो सकता है। सोशल मीडिया के आने से पूर्व सभी कृतिकारों को अपनी बात आम जनमानस तक पहुंचाने में अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। ढेरों प्रयास के बावजूद वे अपनी कृति को एक सीमित दायरे तक ही पहुंचा पाते थे। सोशल मीडिया ने इन सभी सीमाओं को तोड़ा है।

आज सभी लेखक गुमनामी की कालिमा को इस माध्यम के प्रकाश की सहायता से खत्म कर रहे हैं। इंटरनेट पर हिंदी में खोज आने के बाद हमारी मूल जिज्ञासा का जवाब हिंदी में ही पलक झपकते ही हमारे सामने होता है। यह सब इसलिए संभव हुआ है क्योंकि इंटरनेट के सागर में नित-प्रतिदिन हिंदी ज्ञान स्वरूपी नदियां समाहित हो रही हैं। इसी प्रक्रिया का परिणाम है कि आज भारत से बाहर सात समंदर पार भी हिंदी सभाएं, गोष्ठियां, सम्मेलन व पुरस्कार वितरण समारोह आदि आयोजित किए जा रहे हैं। भारत की भाषायी स्थिति और उसमें हिंदी के स्थान को देखने के बाद यह स्पष्ट है कि हिंदी आज भारतीय जनमानस के संपर्क की राष्ट्र भाषा है।

संख्या की दृष्टि से दुनिया की इस तीसरी सबसे बड़ी भाषा के जानने वालों की यह विशाल जनसंख्या हिंदी के अंतरराष्ट्रीय संपर्क का साक्षात्कार कराती है क्योंकि आज दुनिया के हर कोने में बसे भारतीय सोशल मीडिया की सहायता से हिंदी को तवज्जो देना शुरू कर चुके हैं। इन तथ्यों और बातों के आधार पर कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया ने हिंदी समेत सभी भाषाओं को एक समान वैश्विक मंच प्रदान किया है। चूंकि हिंदी की अपनी विशेषताएं हैं, इसलिए हिंदी अन्य भाषाओं से तेज व सकारात्मक रूप से परिवर्तनशील तथा विकासशील है।


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