हिमाचली पुरुषार्थ ग्रामीण अखाड़े से अंतरराष्ट्रीय अखाड़े तक योगराज

By: Sep 20th, 2017 12:07 am

बचपन में ही मामा के बेटों अंतरराष्ट्रीय पहलवान जगदीश तथा संजय को कुश्ती करते देख उनका भी शौक भाइयों के साथ अखाड़े में उतरकर पहलवानी में नाम चमकाने के लिए जागा। महज 15 साल की उम्र में ही घर से घुमारवीं पहुंच गए, जिसके बाद वह घुमारवीं के ही स्थायी निवासी बन गए…

हिमाचली पुरुषार्थ ग्रामीण अखाड़े से अंतरराष्ट्रीय अखाड़े तक योगराजबडे़ भाइयों को कुश्ती करते देख खुद को अखाड़े में समर्पित करने वाले घुमारवीं के योगराज (चंद्रवीर) ने विश्व भर में बतौर कुश्ती कोच बनकर चमक बिखेरी है। एथेंस में महिला कैडेट विश्व चैंपियनशिप में इतिहास की नई इबारत लिखने वाली भारतीय महिला टीम ने योगराज की कोचिंग में उपविजेता का खिताब जीता। एथेंस में गुरु योगराज के लक्ष्य पर निशाना साधने के दिए मंत्र से ही भारत की बेटियों ने महिला कुश्ती इतिहास में पहली बार उपविजेता बनने का गौरव हासिल किया। एथेंस में इस उपलब्धि के बाद योगराज कुश्ती में बतौर कोच स्वर्णिम समय मानते हैं। योगराज अब तक कुश्ती प्रतियोगिताओं में पांच बार सीनियर नेशनल में हिमाचल का प्रतिनिधितत्व कर चुके हैं। जिला मंडी की तहसील सरकाघाट के गैहरा गांव में पिता पूर्व सैनिक संतराम व माता बिमला देवी के घर जन्मे योगराज तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। बचपन में ही मामा के बेटों अंतरराष्ट्रीय पहलवान जगदीश तथा संजय को कुश्ती करते देख उनका भी शौक भाइयों के साथ अखाड़े में उतरकर पहलवानी में नाम चमकाने के लिए जागा। महज 15 साल की उम्र में ही घर से घुमारवीं पहुंच गए, जिसके बाद वह घुमारवीं के ही स्थायी निवासी बन गए। योगराज ने घुमारवीं में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जगदीश पहलवान से कुश्ती के दांव- पेंच सीखे। योगराज ने एक बार अखाड़े तथा मैट पर उतरने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। लेकिन, योगराज को असली ख्याति बतौर इंडिया कोच ताइवान तथा एथेंस में मिली। योगराज ने एमपीएड कर रखी है तथा एनआईएस पटियाला से 2010 में बतौर कोच का डिप्लोमा किया है। जिसके बाद खिलाडि़यों को उनके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करने की काबिलीयत को देखकर ताइवान में आयोजित अंडर-17 पुरुष कुश्ती चैंपियनशिप में बतौर कोच नियुक्त किए, जिसके बाद उनकी कोचिंग से प्रभावित कुश्ती महासंघ ने एथेंस में आयोजित विश्व महिला कैडेट चैंपियनशिप में बतौर कोच नियुक्त किए। जिनकी कोचिंग में एथेंस में भारत की बेटियों ने दो गोल्ड तथा चार ब्रांज मेडल जीतकर उपविजेता का खिताब जीतकर कुश्ती के इतिहास की नई इबारत लिखी है।

रिव्यू न मांगा होता, तो इंडिया के हाथ से निकल जाता गोल्ड ः

योगराज ने बताया कि जब एथेंस में इंडिया की पहलवान सोनम का र्क्वाटर फाइनल में हंगरी की पहलवान के साथ मैच चल रहा था, तो अंतिम पलों में इंडिया के पहलवान ने हंगरी की पहलवान को उठाकर बाहर फेंक दिया। लेकिन, सोनम पहलवान को रैफरियों ने एक ही अंक दिया। जबकि कायदे से उसे दो अंक मिलने चाहिए थे। उन्होंने इसका रिव्यू मांगा तथा बाद में रैफरियों ने फैसला बदलकर इंडिया की पहलवान को दो अंक देकर विजेता घोषित कर दिया। बाद में सोनम ने गोल्ड मेडल जीतकर भारत की झोली में डाला। यदि वहां पर रिव्यू मांगने की चूक हो जाती, तो भारत की बेटियां इतिहास रचने से वंचित रह जाती।

हिमाचल में सुविधाओं का अभाव ः

योगराज ने बताया कि हरियाणा सहित अन्य राज्यों की अपेक्षा हिमाचल प्रदेश में सुविधाओं का अभाव है। हिमाचल में प्रतिभा होने के बावजूद निखर नहीं पा रही है। प्रदेश की प्रतिभा भीतर ही दम तोड़ रही है। कुश्ती खेल के लिए सुविधाएं न के बराबर होने के कारण यहां के युवा प्रतिभा के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में इंडोर स्टेडियमों, अखाड़ों तथा मैटों का अभाव है। जबकि हरियाणा राज्य में प्रत्येक गांव में खिलाडि़यों के लिए बेहतरीन सुविधा है, जिसके कारण आज हरियाणा के खिलाड़ी विश्वभर में देश व प्रदेश का नाम रोशन कर रहे हैं।

-राजकुमार सेन, घुमारवीं

हिमाचली पुरुषार्थ ग्रामीण अखाड़े से अंतरराष्ट्रीय अखाड़े तक योगराजजब रू-ब-रू हुए…

हिमाचल में स्कूली खेलों को बढ़ावा देना होगा…

आपके लिए कुश्ती के क्या मायने हैं?

कुश्ती मेरे जीवन में सब कुछ है। मैंने कुश्ती खेल को खेला ही नहीं, बल्कि जिया है। कुश्ती से पहचान मिली है।

कुश्ती के खेल के रूप में देख कर आए या शारीरिक क्षमता में सबसे बेहतर बनने की होड़ ने इस मार्ग पर डाल दिया?

कुश्ती को मैं एक व्यक्तिगत खेल के रूप में देखकर आया था, जिसका मुख्य कारण अपनी प्रतिभा को निखारना था। फिर साथ-साथ शारीरिक विकास तो होना ही था।

व्यक्तिगत उपलब्धियों ने कब आपने पहला शिखर चूमा और उस समय का अनुभव ?

इंडिया महिला कैडेट टीम के साथ बतौर कोच जाना सबसे बड़ी उपलब्धि है। एथेंस में मेरी कोचिंग में महिला पहलवानों ने इतिहास रचा।

आपके लिए सबसे बड़ा दांव और प्रतिद्वंद्वी की क्षमता जांचने का तरीका?

मैं कुश्ती में कलाजंग को सबसे बड़ा दांव मानता हूं। इस दांव से खिलाड़ी एक ही समय में चार अंक अर्जित कर सकता है। सामने वाले प्रतिद्वंद्वी की क्षमता उसके पहले अटैक से ही पता चल जाती है।

भारतीय टीम का कोच बनने के पीछे क्या रहा और एथेंस की सफलता ने कितना परिवर्तन पैदा किया?

मैं आभारी हूं डब्ल्यूएफआई का, जिन्होंने मेरी प्रतिभा को पहचाना व मुझे मेरी उपलब्धियों को देखते हुए इंडिया टीम कोच बनने का मौका दिया। एथेंस की सफलता ने मेरी सोच व मेरे जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन लाया।

आगामी लक्ष्य और जिम्मेदारी को कितना विस्तृत कर पाए?

डब्ल्यूएफआई ने जो जिम्मेदारियां दी, उनको बखूबी निभाया। आगे भी मुझे जो जिम्मेदारियां दी जाएंगी, उन्हें पूर्ण करूंगा।

कुश्ती में भारतीय संभावनाएं और पसंदीदा खिलाड़ी कौन हैं?

कुश्ती में भारत में अपार संभावनाएं हैं। बशर्ते की खिलाडि़यों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं प्राप्त हों। मेरा पसंदीदा खिलाड़ी सुशील कुमार है।

हम मात कहां खाते हैं?

सुविधाओं का अभाव।

हिमाचल में कुश्तियों का भविष्य? क्या प्रदेश की ओर से कभी आपसे संपर्क साधा गया है?

हिमाचल में कुश्तियों की संभावना बहुत ज्यादा है। प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, लेकिन कोई भी सरकार इन खेलों की तरफ ध्यान नहीं देती है। जिसका उदाहरण वह स्वयं हैं। एथेंस में बड़ी उपलब्धि हासिल करने के बाद भी अभी तक सरकार तथा अधिकारियों ने उनसे कोई संपर्क नहीं साधा है। अगर खेल से जुड़े हुए व्यक्तियों या खिलाडि़यों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाएगा, तो कैसे संभव है हिमाचल में खेलों का उत्थान।

हिमाचल के खेल ढांचे को आप किस तरह देखते हैं और अगर आपसे इस बाबत पूछा जाए, तो क्या सलाह देंगे?

हिमाचल के वर्तमान खेल ढांचे में प्रतिभावान खिलाडि़यों को सुविधाएं नहीं मिल रही हैं, जिसके कारण उनकी प्रतिभा दम तोड़ रही है। मेरी सलाह रहेगी कि खेल ढांचे को गांव स्तर तक पहुंचाया जाए।

हिमाचल के छिंज मेलों को कुश्ती के लिए बेहतरीन बनाना हो?

अगर हिमाचल में कुश्ती का स्तर ऊंचा उठाना हो, तो इसे तहसील स्तर से शुरू करना होगा। हर स्कूल में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।

क्या आपने दंगल फिल्म देखी। जो देखा या जो पर्दे पर आता है, क्या उससे खेलों को मदद मिलती है?

हां, बिलकुल इससे खेलों को समझने में अधिक मदद मिलती है।

खेल संगठनों में राजनीति किस कद्र और क्या इनके दांव-पेंच से खिलाड़ी पस्त हैं?

बहुत ज्यादा।

पहलवानी को आप जीवन से जोड़कर देखें, तो आपका निष्कर्ष?

एक अलग पहचान देती है पहलवानी। युवा इस खेल में आगे आएं तथा देश का नाम रोशन करें।


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