‌हां… मैं लाहुली हूं

By: Sep 18th, 2017 12:05 am

जनसंख्या

31564

साक्षरता

76.81

लिंगानुपात  

916

शीत मरुस्थल के नाम से विख्यात लाहुल की भौगोलिक परिस्थितियां बहुत कठिन हैं, फिर भी लाहुलियों ने मेहनत के दम पर हर मुश्किल से पार पा लिया। लाहुलियों ने कैसे हासिल किया मुकाम, बता रही हैं, शालिनी राय भारद्वाज…

जिला लाहुल-स्पीति पूर्व में जिला किन्नौर अंतरराष्ट्रीय सीमा चीन से सटा है और उत्तर में जम्मू-कश्मीर, जिला लद्दाख कारगिल से जुड़ा है। साथ ही पश्चिम की ओर हिमाचल का चंबा  तथा दक्षिण से कुल्लू तक फैला हुआ है। लाहुल की भौगोलिक परिस्थितियां काफी कठिन है़ं, लेकिन यहां के मेहनतकश लोग हर मुश्किल को आसान कर लेते हैं।  लाहुल-स्पीति ने आज प्रदेश ही नहीं बल्कि देश-विदेश में भी अपनी खास पहचान बनाई है। एक समय था जब जिला लाहुल-स्पीति तक पहुंचना आसान नही था, लेकिन बदलते जमाने के साथ-साथ सुविधाएं भी मिलने लगीं। यहां के  लोगों ने जितनी  कठिन परिस्थितियां देखीं,आज उतनी ही सुविधाएं यहां के लोगों को मिलनी शुरू हुई हैं।  देश-विदेश से भी  हर साल यहां हजारों सैलानी घूमने के लिए पहुंचते हैं। निकोलस रौरिक  ने भी यहां की खूबसूरत वादियों को अपनी पेंटिंग्स के जरिए उभारा है। जहां पर जल्द ही अब जिला लाहुल -स्पीति का संबंध भी एशिया के साथ भी जुड़ जाएगा। क्योंकि  अक्तूबर  तक लाहुल के घुमशेल गांव में रौरिक मिनी आर्ट गैलरी बनकर तैयार हो जाएगी।

भारतीय सेना में भी दिखाई बहादुरी

अंग्रेज लाहुल के लोगों को डोगरा फौज में भर्ती किया करते थे। लाहुल की फौज या सेना प्रथम महायुद्ध में लड़ने के लिए इराक तक गई।  आजादी के बाद लाहुल की फौज लद्दाख में भी लड़ी।  लद्दाख के पाकिस्तान के युगल में जानें बचाने वाले लाहुल के फैज कर्नल पृथ्वी चंद और उनके छोटे भाई कर्नल खुशहाल चंद व चाचा कैप्टन भीम चंद ने अहम भूमिका निभाई थी। जिसमें लाहुल के एक सिपाही कर्मा टुडुप शहीद हुए थे।  बहादुरी को देखते हुए भारत सरकार ने कर्नल पृथ्वी व खुशहाल चंद को महावीर चक्र से नवाजा। वहीं, कैप्टन भीम चंद को  दो बार वीर चक्र मिला। इसी के साथ गौंधला  के भी  हवलदार  तजिन फुंजोग को भी महावीर चक्र से नवाजा गया। यही नहीं, बांग्लादेश में भी लाहुल के एक सिपाही ने कुर्बानी दी है। वहीं हाल ही में कश्मीर में उग्रवादियों से लड़ते हुए लाहुल के दो वीर शहीद हुए। जिसमें कमांडर शमशेर सिंह व तेजिन छुलटिम शामिल रहे।

ऐसे मिला कबायली दर्जा

लाहुल के दो ऐसे नेता थे, जिन्होंने लाहुल को कबायली दर्जा दिलाने में काफी संघर्ष किया था। लाख मुश्किलों के बाद भी ठाकुर देवी सिंह व ठाकुर शिव राम ने कभी अपने कदम पीछे नहीं किए। हिमाचल भी जब पंजाब का हिस्सा था, तो 1952 में पंजाब सरकार के अधीन होने पर कड़े संघर्ष के बाद जिला लाहुल-स्पीति को अनुसूचित जनजाति क्षेत्र घोषित किया गया।  इतिहासकार छेरिंद दोरजे की मानें तो अंग्रेजों के समय में ही लाहुल को ट्राइबल एरिया कहते थे, लेकिन यहां ठाकुर व नोनो का राज चलता था। ठाकुर देवी सिंह व ठाकुर शिव राम  डाक्टर अंबेडकर से मिलने के बाद सरकारी तौर पर लाहुल को ट्राइबल एरिया घोषित करवाना चाहते थे।

योग आश्रम की जरूरत

छेरिंग दोरजे का कहना है कि लाहुल में  बाबा रामदेव योग आश्रम स्थापित करें तो लोगों को काफी लाभ मिलेगा। साथ  ही भारतीय फौज के लिए , जो हिमालय के रण क्षेत्र सियाचीन में  है, को भी इसका काफी लाभ मिलेगा।

स्वास्थ्य सुविधाएं नाकाफी

केलांग के प्रेम सिंह ठाकुर, गौंधला के क्रिस ठाकुर तथा गौशाल के अशोक राणा का कहना है कि लाहुल में काफी अधिक विकास हुआ है और जारी है। सरकारी योजनाओं का लाभ तो मिला है, लेकिन दुखद है कि स्वास्थ्य सुविधा के लिए अभी भी लोगों को तरसना पड़ता है। सरकार इस ओर ध्यान दे ,तो लाहुल के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिल सकती है।

लाहुली आलू ने मजबूत की आर्थिकी

जिला लाहुल-स्पीति में कारोबार देशभर तक होता है। जहां पहले कंबल, खेतीबाड़ी इत्यादि का छोटा मोटा कारोबार होता था। फिर आलू उगाने के बाद यह कारोबार धीरे-धीरे बढ़ता गया। लाहुलियों ने आलू की खेती करने के बाद न केवल खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत किया। बल्कि धीरे-धीरे लाहुल में नकदी फसलों का भी कारोबार बढ़ने लगा। देशभर में लाहुल आज आलू व मटर की खेती के लिए प्रसिद्ध है। अब लाहुल के आलू का बीज देशभर की मंडियों तक पहुंचने लगा है।

रघुवीर ने सिखाई फूलों की खेती

लाहुल के खुडा के रघुवीर ने  कृषि व बागबानी के क्षेत्र में काफी अधिक योगदान दिया है। उन्होंने लोगों को लिलियम फूल से  न केवल अवगत करवाया, बल्कि अन्य नकदी फसलें उगाने के लिए भी जागरूक किया। आज लोग सेब के अलावा लिलियम फूल सहित अन्य किस्मों के फूलों की सप्लाई भी बाहरी राज्यों को करते हैं। यही नहीं, रघुवीर लाहुल से हर साल यहां सीधे तौर पर आईव्रक(सब्जी) को भी मैकडोनल में भेजते हैं, जिनके साथ इनका सीधा समझौता है।

कांगड़ा से कश्मीर तक किया राज

प्राचीन काल से ही कांगड़ा से लेकर कश्मीर तक लाहुलियों ने राज किया है। इसका उदाहरण चंबा के इतिहास और कश्मीर के इतिहास(राजतरंगणी ) में भी मिलता है। ये लोग समूह में काम करते थे। ब्रिटिश व अंग्रेजों के काल में लाहुल-स्पीति ट्राइब चीफ द्वारा यहां राज किया जाता था। लाहुल में ठाकुर व स्पीति में नोनो द्वारा ही राज किया जाता था। हालांकि उस समय अंग्रेजों का राज था, लेकिन फिर भी हुकूमत ठाकुर व नोनो की ही रहती थी। प्रशासनिक तौर पर कोई अधिकारी नहीं हुआ करते थे। ठाकुर व नोनो के समक्ष ही फैसले हुआ करते थे।  ट्राइबल होने के नाते लाहुल ऐसा जिला था, उस दौरान यहां पर बिना लाइसेंस के हथियार को रखने का अधिकार भी था। यही कानून अंग्रेजों के समय पाकिस्तान के दक्षिण -पश्चिम ट्राइबल एरिया में था। नॉर्थ वेस्टर्न फ्रंटल एरिया होने की वजह से वहां पर जो ट्राइबल थे वे भी बिना लाइसेंस के हथियार रख सकते थे।

पंजाब से लाहुल तक का सफर

जिला लाहुल-स्पीति आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है।   जिस तरह से   लोगों ने लाहुल को देशभर में पहचान दिलाने के लिए संघर्ष किया है, यह भी किसी से छिपा नहीं है। कड़े संघर्ष के बाद यहां के बच्चे बड़े अधिकारी व नेता बने, लेकिन उसके पीछे जो संघर्ष रहा है, उस संघर्ष को यहां के लोगों ने आज भी जारी रखा है। भले ही आज अनेक सुविधाएं मुहैया हैं, लेकिन आज भी जिस तरह से यहां के  पुरुष खासतौर पर महिलाएं संघर्ष करती हैं, उसका मुकाबला कोई भी नहीं कर सकता है। एक समय था जब लाहुल जाने के लिए और लाहुल से कुल्लू आने के लिए लोगों को पैदल ही मीलों सफर तय करना पड़ता था।  उन्हें तीन दिन का समय कुल्लू तक पहुंचने के लिए लग जाता था।   लाहुल वासी घोड़ों व भेड़-बकरियों की पीठ पर राशन इत्यादि अपने घरों तक ले जाया करते थे।   यही नहीं, सर्दियों का राशन भी पहले ही एकत्रित कर रखते थे। सर्दियों के दिनों में यहां लोग बर्फ को पिघला कर पानी पीते और इसे कई चीजों में इस्तेमाल करते। अंधेरे में कई दिनों तक रातें गुजारा करते थे। ठंड अधिक होने पर  कई मर्तबा तो लोग कई दिनों तक घरों से बाहर तक नहीं निकल पाते। पढ़ाई के लिए भी बाहर जाना पड़ता था।  फिर धीरे-धीरे समय बदलता गया। पंजाब के साथ हिमाचल जुड़ा होने पर भी पंजाब सरकार ने लाहुल-स्पीति के लिए काफी कुछ किया। इतिहासकार छेरिंग दोरजे की मानें तो पंजाब सरकार ने लाहुल-स्पीति को आगे लाने में काफी मदद की है।  पंजाब सरकार ने पंजाब ट्राइबल एडवाइजरी कौसिंल का गठन किया, जिसके चैयरमैन पंजाब के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। यहां के अधिकारी रहे एमएस गिल, बीएस वैष्णव व कमलजीत सिंह ने लाहुल-स्पीति के लिए काफी कुछ किया। पंजाब सरकार के समय में ही लाहुल-स्पीति के लिए सड़कों का निर्माण होने लगा। फिर लाहुल-स्पीति को एक सीट विधायक की मिली। फिर धीरे-धीरे लाहुल-स्पीति भी विकास की राह पर चलने लगा। फिर धीरे-धीरे लाहुल-स्पीति के लोगों को सुविधाएं मिलनी शुरू  तो हुइर्ं, लेकिन आज भी यहां की भौगोलिक स्थिति देखें तो अब भी लाहुल-स्पीति को काफी चीजों की दरकार है।

लाहुल के समुदाय

यंगजुन— आदिवासी लाहुल में आए और यहां बस गए। यहां तीन समुदाय के लोग बसे हैं, जिसमें एक यंगजुन समुदाय  है, जिन्हें किन्नर और किरात के नाम से जाना जाता है। ये दोनों जातियां अरुणाचल से कश्मीर तक हिमालय तक फैली हुई हैं।

तिब्बती—पूर्व से तिब्बती लाहुल आए, जो कश्मीर व चंबा तक फैले थे। यह लाहुल के तोद व म्याड़ व कोकसर घाटियों में आकर बसे हैं। जानकारी के अनुसार तिब्बती नरेश सोगसन घामो के राज्यकाल सातवीं शताब्दी में आकर यहां बसे हैं।

स्वांगा — एक अन्य भारतीय यूरोपियन वासी ट्राइबल, जिन्हें स्वांगा कहा जाता है भी यहां पर आकर बस गए, जो कि कश्मीर व किश्तवाड़ से आए थे।

डोवा व चिनार— डोवा व चिनार जाति के लोग भी यहां बसे हुए हैं, जो कि सबसे अंतिम समय में यहां आए। यह समुदाय समाज में अनुसूचित जाति में आता है।

लाहुली होने के मायने

प्रदेश में लाहुली सरहद पर रहते हैं, एक ओर जम्मू-कश्मीर तो एक ओर चीन सीमावर्ती है।  हिंदोस्तान में आर्य लोग जितने पुराने हैं, उतने ही लाहुली भी हैं।

रोहतांग टनल मिटाएगी दूरियां

आजादी के बाद से अब भी लोग यहां छह माह तक बर्फ की कैद में बंधे रहते है। लेकिन अब हमेशा के लिए जिला लाहुल-स्पीति सालभर के लिए पूरी दुनिया से जुड़ा रहेगा। रोहतांग टनल का निर्माण कार्य भी अक्तूबर माह तक पूरा हो जाएगा। फिर जो लाहुली कभी दुनिया से कटे रहते थे,वह भी हमेशा जुड़े रहेंगे।

रोहतांग टनल अटल की देन

इतिहासकार छेरिंग दोरजे की मानें तो रोहतांग टनल को बनाने के लिए लाहुल के तीन लोगों ने प्रयास किया है।  लाहुल तांदी जनजातीय विकास समिति के अध्यक्ष स्वर्गीय अर्जुन गोपाल, छेरिंग दोरजे व अभय चंद राणा ने मिलकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को प्रार्थना पत्र दिया था। अर्जुन गोपाल जो की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे और प्रचार के दौरान वह पीएम अटल  के साथ भी रहते थे। ऐसे में रोहतांग टनल के लिए उनका योगदान भी काफी अधिक है।

आईएएस अधिकारी अमरनाथ विद्यार्थी

लाहुल से संबंध रखने वाले अनेक युवा बड़े पदों तक पहुंचे हैं।  इनमें लाहुल से पहले आईएएस अधिकारी अमरनाथ विद्यार्थी हैं, जो हिमाचल सरकार से चीफ सेके्रटरी के पद से सेवानिवृत्त हुए।

आईपीएस टशी दावा

लाहुल के टशी दावा पहले आईपीएस अधिकारी बने। वह भी हिमाचल सरकार से आईजी के पद से सेवानिवृत्त हुए। टशी दावा की इस उपलब्धि पर लाहुल को नाज है।

ठोलंग के हर घर से एक अधिकारी

लाहुल में ठोलंग एक ऐसा गांव है, जिसके चंद घरों को छोड़  बाकी हर घर से क्लास वन अधिकारी बने हैं। आज यह गांव नई पीढ़ी के लिए भी आदर्श बना हुआ है।  यानी आज करीब 12 आईपीएस व 10 आईएस अधिकारी लाहुल से संबध रखने वाले हैं। इसके अलावा डाक्टर इंजीनियर ,प्रोफेसर, आर्मी, नेवी सहित हर पद में लाहुल का बेटा व बेटी तैनात हैं।

देवी सिंह, शिव राम सियासत के पुरोधा

शुरुआती दौर में लाहुल से ठाकुर देवी सिंह व शिव राम ठाकुर ही पहले राजनीतिज्ञ रहे। इसके बाद लता ठाकुर भी राजनीति  में सक्रिय रहीं। ठाकुर देवी सिंह वन मंत्री भी रहे थे। इसके बाद राजनीति  में सक्रिय तौर पर आगे आए स्पीति घाटी के फुजोंग राय, जो कि प्रदेश सरकार में स्वास्थ्य मंत्री के पद पर तैनात रहे और आज भी सक्रिय राजनेता के रूप में काम कर रहे हैं। इसके बाद लाहुल की राजनीति में रघुवीर सिंह ठाकुर, डा. राम लाल मार्केंडय, वर्तमान विधायक रवि ठाकुर ने सक्रिय भूमिका निभाते हुए, विधानसभा में कई बार जगह पाई।

कर्नल प्रेम चंद के नाम पर डाक टिकट

कर्नल प्रेम चंद विख्यात पर्वतारोही रहे हैं, जिन्होंने माउंनटेनियरिंग में ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जिसे आज तक दूसरा कोई भी हासिल नहीं कर पाया है। इनके नाम से भारत सरकार ने दो बार डाक टिकट जारी किया था।

अमर चंद-डिक्की डोलमा ने फतह किया एवरेस्ट

घाटी के स्वर्गीय अमर चंद भी ऐसे विख्यात पर्वतारोही हुए,, जिन्होंने बिना आक्सीजन ने एवरेस्ट फतह किया था।  उसके बाद कम आयु में डिक्की डोलमा ने भी एवरेस्ट चढ़कर लाहुल-स्पीति का नाम देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी रोशन किया है।

चंद्रमोहन ने दिलाई प्रसिद्धि

दो वर्षों से तांदी संगम को देशभर में प्रसिद्धि दिलाने में प्रोफेसर चंद्रमोहन परशीरा ने भी कड़ी मेहनत की है। आज उन्हीं के प्रयासों से ही लाहुल में तांदी संगम पर्व मनाया जाता है।  प्रोफेसर चंद्रमोहन के प्रयासों से ही आज चंद्रा नदी के महत्त्व को युवा पीढ़ी भी जान पाई है।

सियासत में लाहुलियों की धाक

केलांग से  सुशील बारोंपा दो बार राज्यसभा सदस्य  रहे हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लाहुल राजनीति में भी बड़ी पहचान रखता है।

लता ठाकुर की मुरीद थीं इंदिरा गांधी

केलांग से पहली महिला विधायक  बनने का तमगा लता ठाकुर के नाम है। उनका जनसेवा का जज्बा और राजनीतिक पकड़ लाजवाब थी । यही कारण था कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनकी मुरीद थीं। इसी के चलते लता ठाकुर के कार्यकाल में ही उन्होंने   लाहुल-स्पीति का दौरा किया।

डा. सतीश चंद्र पहले सर्जन

लाहुल के गांव गोधरमा के रहने वाले डा. सतीश

चंद्र ने दिल्ली में पहले लेप्रोस्कॉपी से सर्जरी कर देशभर में नाम कमाया। लाहुल को अपने डाक्टर बेटे पर नाज है।

एशियाड में जीता गोल्ड मेडल

स्पीति घाटी के सतलंग दोरजे (तीरअंदाजी) ने एशियाई खेलों में (ओलंपिक खेलों में) गोल्ड मेडल हासिल कर देश-प्रदेश का नाम रोशन किया।


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