अप दीपो भवः

By: Oct 14th, 2017 12:12 am
दीपावली के दिन बाहरी अंधेरे को दूर भगाने के लिए बाहरी दीपों को जलाने का अपना महत्त्व है,  लेकिन दिवाली तभी सार्थक होती है जब हमने संकल्प और सृजन का दीप जलाकर आंतरिक अवगुणों को दूर करने की कोशिश करते हैं। स्वयं ही दीप बनने की कोशिश करते हैं-अप्प दीपो भवः …
लोग इस पर्व  को मनाते समय आज भी बाहरी और आंतरिक अंधेरे को दूर करने का प्रयास करते हैं। अपने परिवेश तथा व्यक्तित्व को परिष्कृत करने की कोशिश करते हैं। आत्मशोधन का यह महापर्व हम सभी के जीवन अधिक उदात्त और सामर्थ्ययुक्त बनाए, ऐसी कामना की जानी चाहिए…

दीप अर्थात घने अंधकार में प्रकाश का एक टिमटिमाता स्रोत। एक ऐसा माध्यम जो अपने छोटे से अस्तित्व के बावजूद अंधकार के अखंड साम्राज्य को चुनौती देता है। हमें इस योग्य बनाता है कि हम लक्ष्य तक पहुंचाने वाले पथ को पहचान सकें और उस पथ पर सही ढंग से चल सकें। दीप की महत्त्वपूर्ण भूमिका से परिचित होने का अवसर है दीपावली। दीप के गुणों को जीवन में उतारने के लिए प्रेरित करने वाल उत्सव है दीपावली। दीपावली एक प्रकाशधर्मी देश का महापर्व है। इस दिन लक्ष्मी का पूजन करने का मर्म यही है कि जीवन में आने वाली विपत्तियों का सामना करने लायक समृद्धि हम सभी को उपलब्ध रहे। दरिद्रता जीवन का सबसे बड़ा अंधकार है।  विपन्नता और कंगाली से घिरे हुए जीवन के लिए जीवन अंधकारमय हो जाता है, लक्ष्मी की कृपा से यह अंधकार छंटता है। जीवन उल्लासमय हो जाता है। हम स्वाभिमान के साथ जीवन व्यतीत करने के योग्य बनते हैं। यह दीपावली का एक पक्ष है। हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि असली संपदा सदैव आंतरिक होती है। यदि हमारे पास सकारात्मक दृष्टिकोण है, लगन से काम करने की मनोवृत्ति है और विपरीत परिस्थितियों में डटे रहने का सामर्थ्य है,तो धन-संपदा स्वयं ही पास आ जाती है। दीपावली के दिन बाहरी अंधेरे को दूर भगाने के लिए बाहरी दीपों को जलाने का अपना महत्त्व है, लेकिन दिवाली तभी सार्थक होती है जब हमने संकल्प और सृजन का दीप जलाकर आंतरिक अवगुणों को दूर करने की कोशिश करते हैं। स्वयं ही दीप बनने की कोशिश करते हैं-अप्प दीपो भवः।

इस दिन रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मीजी, विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की जाती है। ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि अर्थात अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीक़े से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है, वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं। इसलिए इस दिन घर-बाहर को खूब साफ-सुथरा करके सजाया-संवारा जाता है। दीपावली मनाने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होकर स्थायी रूप से सद्गृहस्थों के घर निवास करती हैं। धर्मग्रंथों के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री रामचंद्रजी चौदह वर्ष का वनवास काटकर तथा आसुरी वृत्तियों के प्रतीक रावण का संहार करके अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। इसीलिए दीपावली हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व अलग-अलग नाम और विधानों से पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि इसी दिन अनेक विजयश्री युक्त कार्य हुए हैं। दीपावली पर लक्ष्मीजी का पूजन घरों में ही नहीं, दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में भी किया जाता है। कर्मचारियों को पूजन के बाद मिठाई, बरतन और रुपए आदि भी दिए जाते हैं।  धार्मिक दृष्टिकोण से आज के दिन व्रत रखना चाहिए और मध्यरात्रि में लक्ष्मी-पूजन के बाद ही भोजन करना चाहिए। जहां तक व्यावहारिकता का प्रश्न है, तीन देवी-देवों महालक्ष्मी, गणेशजी और सरस्वतीजी के संयुक्त पूजन के बावजूद इस पूजा में त्योहार का उल्लास ही अधिक रहता है। इस दिन प्रदोष काल में पूजन करके जो स्त्री-पुरुष भोजन करते हैं, उनके नेत्र वर्ष भर निर्मल रहते हैं। इसी रात को ऐन्द्रजालिक तथा अन्य तंत्र-मंत्र वेत्ता श्मशान में मंत्रों को जगाकर सुदृढ़ करते हैं।

पूजन की सामग्री

महालक्ष्मी पूजन में केसर, रोली, चावल, पान, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बताशे, सिंदूर, सूखे मेवे, मिठाई, दही, गंगाजल, धूप, अगरबत्ती, दीपक, रूई तथा कलावा, नारियल और तांबे का कलश चाहिए।

पूजन विधि

लक्ष्मी जी के पूजन के लिए घर की साफ-सफाई करके दीवार को गेरू से पोतकर लक्ष्मी जी का चित्र बनाया जाता है। लक्ष्मीजी का चित्र भी लगाया जा सकता है। संध्या के समय भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन, केला, पापड़ तथा अनेक प्रकार की मिठाइयां होनी चाहिए। लक्ष्मी जी के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर मौली बांधनी चाहिए। इस पर गणेश जी की व लक्ष्मी जी की मिट्टी या चांदी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए तथा उन्हें तिलक करना चाहिए। चौकी पर छः चौमुखे व 26 छोटे दीपक रखने चाहिए और तेल-बत्ती डालकर जलाना चाहिए। फिर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करना चाहिए। पूजा पहले पुरुष करें, बाद में स्त्रियां। पूजन करने के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें। एक छोटा तथा एक चौमुखा दीपक रखकर लक्ष्मीजी का पूजन करें। इस पूजन के पश्चात् तिज़ोरी में गणेश जी तथा लक्ष्मी जी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें। अपने व्यापार के स्थान पर बहीखातों की पूजा करें। इसके बाद जितनी श्रद्धा हो, घर की बहू-बेटियों को रुपए दें। लक्ष्मी पूजन रात के समय बारह बजे करना चाहिए।दीपावली के पर्व में समय के साथ अनेक परिवर्तन होते रहे हैं, लेकिन अब भी लोगों के मन में इस पर्व का मूलभाव बरकरार है। लोग इस पर्व  को मनाते समय आज भी बाहरी और आंतरिक अंधेरे को दूर करने का प्रयास करते हैं। अपने परिवेश तथा व्यक्तित्व को परिष्कृत करने की कोशिश करते हैं। आत्मशोधन का यह महापर्व हम सभी के जीवन अधिक उदात्त और सामर्थ्ययुक्त बनाए, ऐसी कामना की जानी चाहिए।

लक्ष्मी पूजन मुहूर्त

19 बजकर 44 मिनट से 20 बजकर 38 मिनट तक


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