करियर को नया आयाम देती ईकोलॉजी

By: Oct 11th, 2017 12:12 am

पर्यावरण के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसमें जरा सा भी परिवर्तन हमारे जीवन को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है। आज वैश्विक प्रतिस्पर्धा ने हमारे पर्यावरण को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है। सूखा, बाढ़, भूकंप आदि इसी के परिणाम हैं। इन समस्याओं से निजात पाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। लोगों को इसकी भयावहता के प्रति जागरूक किया जा रहा है। आने वाले समय में इसके और विस्तार की जरूरत महसूस की जा रही है। ऐसे में करियर के लिहाज से यह तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है…

newsnewsnewsnewsमनुष्य पूरी तरह से पर्यावरण पर निर्भर है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि आज हर देश पर्यावरण की समस्या से जूझ रहा है। ऐसे में पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए इकोलॉजी का अध्ययन आवश्यक है। इसके जरिए पर्यावरण के विभिन्न आयामों व उनके संरक्षण की विधिवत जानकारी मिलती है। पिछले कुछ वर्षों से यह तेजी से उभरता हुआ करियर साबित हो रहा है। पर्यावरण के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसमें जरा सा भी परिवर्तन हमारे जीवन को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है। आज वैश्विक प्रतिस्पर्धा ने हमारे पर्यावरण को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है। सूखा, बाढ़, भूकंप आदि इसी के परिणाम हैं। इन समस्याओं से निजात पाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। लोगों को इसकी भयावहता के प्रति जागरूक किया जा रहा है। आने वाले समय में इसके और विस्तार की जरूरत महसूस की जा रही है। ऐसे में करियर के लिहाज से यह तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है।

क्या है ईकोलॉजी

ईकोलॉजी जीव विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अंतर्गत जीवों व उनके वातावरण के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है। ईकोलॉजी को समझने के लिए मानव प्रजातियों का विधिवत अध्ययन आवश्यक है। इसके अलावा जलवायवीय कारक जैसे प्रकाश, ताप, वायु गति, वर्षा और वायुमंडल की गैसों आदि का अध्ययन भी जरूरी है।

योग्यता

यदि कोई छात्र ईकोलॉजी से संबंधित कोर्स करना चाहता है तो स्नातक में उसका साइंस बैकग्राउंड होना जरूरी है। खासकर बॉटनी,बायोलॉजी, जूलॉजी एवं फोरेस्ट्री संबंधी विषय सहायक साबित होते हैं। इसके बाद मास्टर कोर्स में दाखिला मिलता है। यदि छात्र रिसर्च, टीचिंग तथा अन्य शोध संबंधी कार्य करना चाहते हैं तो उनके लिए मास्टर डिग्री के बाद पीएचडी करना अनिवार्य है।

वेतनमान

पारिस्थितिकी के क्षेत्र में करियर आरंभ होने के बाद आरंभिक आय 15000 होती है। औद्योगिक क्षेत्र में कंपनियां लाखों का पैकेज भी देती हैं। वेतन आपकी योग्यता और अनुभव पर निर्भर करता है। बेशक यह नया विज्ञान है, पर संभावनाएं रोजगार के लिए बहुत ज्यादा हैं।

प्रमुख शिक्षण संस्थान

* जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली

* नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ  इकोलॉजी, जयपुर

* इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ  साइंस, सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंस, बंगलूर

* नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ  एडवांस स्टडीज, बंगलूर

* इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ  ईकोलॉजी एंड एन्वायरनमेंटल, नई दिल्ली

ईकोलॉजी का इतिहास

ईकोलॉजी शब्द का प्रयोग तो लगभग 100 साल पहले हुआ। जर्मन जीव शास्त्री एच रायटर ने पहली बार इस शब्द का प्रयोग किया। एक अन्य जर्मन जीव शास्त्री हेकेल ने पहली बार इसे परिभाषित करते हुए बताया कि पारिस्थितिकी विज्ञान की वह शाखा है, जिसका संबंध प्रकृति की व्यवस्था से है। 1927 में अंग्रेज वैज्ञानिक चार्ल्स एल्टन ने पारिस्थितिकी को प्रकृति का वैज्ञानिक इतिहास कहा। यद्यपि आधुनिक ईकोलॉजी का विकास मुख्य रूप से 1900 ई. के बाद हुआ है, लेकिन इसके विचारों पर जोर दिए जाने के संकेत प्रागैतिहासिक मानव के समय में मिलते हैं, जिसने भोजन, आश्रय और दवाइयों आदि के द्वारा प्राकृतिक विषमताओं में जीवन रक्षा हेतु वातावरणीय जानकारियों का प्रयोग किया। ग्रीक दार्शनिकों तथा वैज्ञानिकों ने भी प्रकृति के इतिहास पर लिखे अपने लेखों में विभिन्न क्षेत्रों में उगे पौधों तथा जानवरों की आदत का वर्णन किया है।

आवश्यक स्किल्स

इस क्षेत्र में सफलता पाने के लिए जरूरी है कि प्रोफेशनल्स प्रकृति से प्रेम करना सीखें और उसके संरक्षण के लिए उनके दिल में दर्द हो। कार्यक्षेत्र व्यापक होने के कारण जिस क्षेत्र में जा रहे हों, उसका विस्तृत अध्ययन जरूरी है। इसके अलावा उनमें समस्या के त्वरित निर्धारण का गुण, कम्प्यूटर व मैथ्स की अच्छी जानकारी, प्रेजेंटेशन व राइटिंग स्किल, कार्य के प्रति अनुशासन व टीम वर्क आदि का गुण उन्हें लंबी रेस का घोड़ा बना सकता है।

विस्तृत है कार्यक्षेत्र

अर्बन ईकोलॉजी- अर्बन ईकोलॉजी इस क्षेत्र की सबसे नवीनतम विधा है, जिसमें शहरों में रहने वाले लोगों के जनजीवन व प्राकृतिक परिदृश्य को इसमें भलीभांति परखा जाता है।

फोरेस्ट ईकोलॉजी- इसके अंतर्गत विभिन्न प्रजातियों के पौधों, जानवरों और कीड़े-मकौड़ों का अध्ययन व उनका वर्गीकरण किया जाता है। इसके अलावा जंगलों की भूमि और वहां के वातावरण पर मनुष्य और ग्लोबल वार्मिंर्ग के असर का अध्ययन भी करते हैं।

मरीन ईकोलॉजी- इसके अंतर्गत जलीय जंतुओं और उसमें रहने के दौरान वातावरण के असर को समझा जाता है।

रेस्टोरेशन ईकोलॉजिस्ट- ये प्रोफेशनल्स ऐसी जगह काम करते हैं, जहां परिस्थितिकी तंत्र खतरे में हों।

वाइल्ड लाइफ  ईकोलॉजी- इसमें इकोलॉजिस्ट पशुओं व उनकी जनसंख्या तथा उनके संरक्षण का प्रमुखता से अध्ययन करते हैं।

एन्वायरनमेंटल बायोलॉजी- इसमें एन्वायरनमेंटल बायोलॉजिस्ट किसी विशेष वातावरण तथा उसमें रहने वाले लोगों की शारीरिक बनावट का अध्ययन करते हैं।

इन पदों पर मिलता है काम

रिसर्चर, ईकोलॉजी साइंटिस्ट, नेचर रिसोर्सेज मैनेजर, वाइल्ड लाइफ मैनेजर, एन्वायरनमेंटल कंसल्टेंट, रेस्टोरेशन ईकोलॉजिस्ट।

रोजगार की संभावना

सफलतापूर्वक कोर्स करने के बाद छात्रों को रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ता। कई सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियां, एनजीओ,फर्म व विश्वविद्यालय हैं, जहां इन प्रोफेशनल्स को विभिन्न पदों पर काम मिलता है। मुख्य रूप से प्रोफेशनल्स को रिसर्च सेंटर जैसे सीएसआईआर, एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट, एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट, एन्वायरनमेंटल अफेयर डिपार्टमेंट, फोरेस्ट्री डिपार्टमेंट, नेशनल पार्क, म्यूजियम, एक्वेरियम सेंटर में काम मिलता है।

विषय में रुचि दिखाएं

प्रो. पुष्पा वर्मा प्रो. पुष्पा वर्मा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला

ईकोलॉजी में करियर से संबंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए हमने पुष्पा वर्मा से बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के  प्रमुख अंश…

ईकोलॉजी क्या है, इसके बारे में बताएं?

ईकोलॉजी दो शब्दों से मिल कर बना है, जिसका पहला शब्द है ओक्यिज और दूसरा लोगस। इसमें ओक्युज का मतलब है-प्लेस टू लीव और लोगस का मतलब है-अबाउट टू नो यानी एक ऐसे पर्यावरण के बारे में जानना, जो रहने के लायक हो। पारिस्थितिकी अन्य विज्ञानों की अपेक्षा नया विज्ञान है। प्रकृति के इस नाजुक संतुलन को बनाए रखने का अध्ययन हम ईकोलॉजी में करते हैं।

ईकोलॉजी का आज के दौर में क्या महत्त्व है?

विकास जितना जरूरी है, उससे भी ज्यादा पर्यावरण का ध्यान रखना जरूरी है। औद्योगिकीकरण तो हो रहा है, लेकिन उसके पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ रहे हैं और इसके लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं, इन चीजों का आकलन करना जरूरी है। इसके फायदे व नुकसान  बारे जानकारी होना भी जरूरी है।

ईकोलॉजी में करियर बनाने के लिए क्या शैक्षणिक योग्यता चाहिए?

ईकोलॉजी में करियर बनाने के लिए किसी भी संकाय में स्नातक की डिग्री होना अनिवार्य है। इसके साथ ही 12वीं कक्षा में विज्ञान संकाय के छात्र इस विषय में आगे ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त कर सकते हैं। क्षेत्र में करियर बनाने के लिए बॉटनी के साथ साइंस स्ट्रीम की पढ़ाई आवश्यक है। हिमाचल प्रदेश विवि में एमएससी एन्वायरनमेंट सांइस में इकोलॉजी विषय के रूप में छात्रों को पढ़ाया जाता है।

इस क्षेत्र में रोजगार की क्या संभावनाएं हैं तथा आरंभिक आय क्या है?

आज शिक्षण क्षेत्र से लेकर कंपनियों तक में ईकोलॉजिस्ट का पद भरा जाता है। इस विषय में शोध की भी अपार संभावनाएं हैं। इस में एन्वायरनमेंट इंजीनियर, पॉल्यूशन मानिटरिंग तथा अस्पतालों में भी कई तरह के कार्य होते हैं। आरंभिक आय लगभग 15 हजार रुपए है, वहीं औद्योगिक क्षेत्र में छात्रों को एक लाख के करीब सैलरी पैकेज कंपनी देती है।

हिमाचल में ईकोलॉजी का क्या स्कोप है ?

हिमाचल में भी इकॉलोजी का काफी ज्यादा स्कोप है। पिछले कुछ अरसे से राज्य में काफी उद्योग स्थापित हुए हैं। उद्योगों से क्या असर पड़ रहा है, इसको जानने के लिए ईकोलॉजिस्ट की मांग बढ़ रही है। जैसे-जैसे औद्योगिकीकरण बढ़ता  जा रहा है, वैसे-वैसे पर्यवरण से जुड़े विशेषज्ञों की मांग भी बढ़ती जा रही है, जो पर्र्यावरण संबंधी समस्याओं का सही समाधान तलाश सके। इसके लिए छात्रों को उद्योगों में, पॉल्यूशन बोर्ड सहित पर्यावरण संरक्षण में जुटी एनजीओ में भी रोजगार की अपार संभावनाएं हैं।

इस क्षेत्र में जाने वाले युवाओं को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है ?

विषय का पूरा ज्ञान होना जरूरी है। इसके लिए पढ़ाई व शोध जरूरी है। युवाओं में यह भटकाव नहीं होना चाहिए कि सीधे पैसा कमाने हैं। अनुभव के साथ पैसा व तरक्की सब संभव है।

युवाओं को आपका संदेश?

इस क्षेत्र में आने वाले छात्रों के लिए संदेश है कि इस क्षेत्र में करियर की अपार संभावनाएं  है। छात्रों को इस विषय के अध्ययन में रुचि दिखानी चाहिए और इसका गहनता से अध्ययन करना चाहिए।

-भावना शर्मा, शिमला

पर्यावरण प्रहरी वंदना शिवा

पर्यावरण प्रहरी वंदना शिवापर्यावरण के लिए किसी भी मंच पर लड़ाई लड़ने में सबसे पहले नाम आता है डा. वंदना शिवा का। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर उन्होंने पर्यावरण संरक्षण की आवाज बुलंद की है। इंटरनेशनल फोरम ऑन ग्लोबलाइजेशन की सदस्य वंदना शिवा ने 1984 में केंद्र सरकार की हरित क्रांति का भी विरोध किया था। उन्होंने हरित क्रांति के पीछे रासायनिक खादों के भयानक इस्तेमाल की तैयारी सूंघ रखी थी। 1970 में वंदना शिवा ‘चिपको’ आंदोलन से जुड़ीं थी। उसके बाद तो पर्यावरण संरक्षण की लड़ाई और वंदना शिवा एक दूसरे के पर्याय बन गए। ग्लोबल ईकोफेमिनिस्ट मूवमेंट में भी वंदना शिवा ने अहम भूमिका निभाई है। वह एक दार्शनिक, पर्यावरण कार्यकर्ता, पर्यावरण संबंधी नारी अधिकारवादी एवं कई पुस्तकों की लेखिका हैं। वंदना शिवा अग्रणी वैज्ञानिक और तकनीकी पत्रिकाओं में 300 से भी अधिक लेखों की रचनाकार हैं। 1982 में उन्होंने रिसर्च फाउंडेशन फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंड ईकोलॉजी की स्थापना की। वंदना जैविक खेती पर देश भर के किसानों को जागरूक कर रही हैं।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

वंदना शिवा का जन्म 5 नवंबर, 1952 को देहरादून में हुआ। वंदना के पिता वन संरक्षक और माता प्रकृति प्रेमी थीं। वंदना की शिक्षा नैनीताल के सेंट मैरी स्कूल और जीजस एवं मैरी कान्वेंट, देहरादून में हुई। सेंट मैरी स्कूल, नैनीताल की स्थापना सन् 1888 में हुई। उस समय इस स्कूल में केवल ब्रिटिश अफसरों और सैनिकों के बच्चे ही पढ़ते थे। दूसरे विद्यार्थियों को यहां दाखिला नहीं दिया जाता था। शिवा एक प्रशिक्षित जिम्नास्ट भी रहीं। भौतिक विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने 1979 में पश्चिमी ओंटोरियो विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।

करियर

कृषि और खाद्य पदार्थ के व्यवहार एवं प्रतिमान में परिवर्तन लाने के लिए संघर्ष किया। बौद्धिक संपदा अधिकार, जैव विविधता, जैव प्रौद्योगिकी, जैव नीतिशास्त्र और आनुवंशिक इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों के अभियानामें में शिवा ने बौद्धिक रूप से योगदान दिया।

सम्मान

1993- राइट लाइवलीहुड पुरस्कार

1993- नीदरलैंड द्वारा गोल्डन आर्क की मानद उपाधि

1995- प्राइड ऑफ दि दून पुरस्कार

1997- सेव दि वर्ल्ड पुरस्कार

2005- सिडनी शांति पुरस्कार

 


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