कार्य और कविता में सामंजस्य प्रबंधन

By: Oct 22nd, 2017 12:05 am

परिचय

* नाम : संगीता सारस्वत/संगीता श्री

* प्रकाशित कृतियां : ढलानों पर खुशबू (काव्य संग्रह – 1983), सैलाब (गज़ल संग्रह), सवाल (गज़ल संग्रह), समय व संवाद गद्य लेखन। सुख में सुमिरन (गद्य)

* सहभागिता : साहित्यकार कलाकार विवरणिका (1987), मानव मूल्य परक, शब्दावली विश्व कोष (2005), समकालीन कविता कोष (2015), विभिन्न ज्वलंत विषयों पर आकाशवाणी तथा दूरदर्शन पर शोध प्रबंध प्रस्तुत

* सम्मान : हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के महिला मंच द्वारा 2016 के वुमेन एचीवर्ज अवार्ड से सम्मानित

जीवन में जिए हुए तथा मौन रहकर आत्मसात किए हुए पलों को यदि शब्दों का भागीदार बना लिया जाए तो संतोष व आत्म साक्षात्कार, दोनों से ही लाभान्वित हुआ जा सकता है। शब्दों की भागीदारी तो सदैव चलती रहती है। परंतु भावों के उद्वेलन में कभी तो लेखनी नहीं सधती और कभी शब्द मुंह फेर कर बैठ जाते हैं। किंतु जब लेखन स्वभाव बन जाए तो वह जीवन के अन्य कार्यों के समान ही निरंतर प्रक्रिया के रूप में प्रवाहित होने लगता है। ….माता-पिता के प्रयास एवं सान्निध्य से आठवीं कक्षा से कविता लिखना आरंभ किया। उर्दू से पहचान भी वहीं से हुई। …बीड्ज महाविद्यालय की सहयोगी प्राध्यापिकाओं श्रीमती बाली तथा श्रीमती भसीन का योगदान साहित्य प्रेम को प्रदीप्त करने में हुआ। फिर एक बड़ा कारण जुड़ गया कि उन्हीं दिनों शिमला की एक निजी संस्था ‘हिमाचल साहित्य एवं कला परिषद’ का आरंभ हुआ, जिसमें प्रबुद्ध कवियों को सुनते हुए अंतर्मन में विकसित हो रही कविता ने पूरी आंखें खोल दीं। …अस्सी के दशक में भाषा कला संस्कृति विभाग तथा अकादमी के अनेक आयोजन होते थे जिनमें प्रांतीय व राष्ट्रीय कवियों को सुनने व अपनी रचनाएं प्रस्तुत करने का अवसर मिला। आकाशवाणी में प्रस्तुतियां आरंभ हो गई थीं। पालमपुर में आयोजित प्रथम महिला संगोष्ठी में प्रतिभागिता रही। इसी सब के फलस्वरूप 1983 में पहला संग्रह प्रकाशित हुआ। इस काव्य यात्रा में मनस्वी जीवन सहचर के साहचर्य से साहित्यिक प्रेरणा व परिवेश निरंतरता में साथ चलते रहे। … संतोष के भिन्न-भिन्न रंगों, विवाह के पश्चात संतती का व्यक्तित्व संवारने, शिक्षण के प्रति समर्पण में भी न्यून ही सही, मगर रचना धर्म तब भी चलता रहा। नारी अलग-अलग प्रकार से अपने भावों को अभिव्यक्त करती है। प्रचलित आंचलिक लोक गीतों में यह बात सत्य सिद्ध होती है। चाहे वे शादी ब्याह में गाए जाते गीत हों, उलाहने हों, प्रेम गाथाएं हों, युद्ध के ओजपूर्ण स्वर हों या त्योहारों के समय का उछाह हो। उनका महत्त्व, आज भी अक्षुण्ण है। …आज नारी शब्दों में निर्भीकता से अपनी बात कह सकती है। उसे किसी छद्म नाम की आवश्यकता नहीं है। यह भारतीय नारी की असीम क्षमता है कि वह एक बेटी के रूप में जितनी उन्मुक्त, स्वतंत्र व एक झरने सी मुक्त इठलाती है, उतना ही एक पत्नी व मां के रूप में एक नदी सी स्वयं को दो किनारों में नियंत्रित करके भी सदा गतिशील रहती है। वह समस्त कर्त्तव्यों को निभाते हुए, तमाम विरोधों के बावजूद एवं सभी विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए भी प्रसन्नता के क्षणों को जीने के अवसर निकाल ही लेती है। साहित्य से जुड़ी महिलाएं शब्दों के तपोवन में हृदय की शांति खोज कर संतोष का सुधापान कर ही लेती हैं। रचनाधर्मिता तो एक लेखक के लिए प्राणवायु है। …यथार्थ को जब तक एक साहित्यकार ही नहीं कहेगा तो समाज तक वह बात कैसे पहुंचेगी। यह बात और है कि प्रत्येक की अभिव्यक्ति की अपनी एक अलग शैली है। किंतु लेखनी की शक्ति तो युग परिवर्तन में सक्षम ही है तो सत्य कहने में संकोच कैसा…। अपने चार काव्य संग्रहों में समाज की दुखती रगों को पकड़ने का प्रयास किया है। ‘सुख में सुमिरन’ में स्थानीय संस्कृति के संरक्षण की चेष्टा मैंने की है। हमारे मुहावरों तथा लोकोक्तियों में मूल्यवान विचार संपदा है। आधुनिक समय में, हमारे युवा इससे वंचित रह जाएंगे यदि हम इनका समसामयिक संदर्भ में विश्लेषण नहीं करेंगे। ये हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं। हमारी संस्कृति तथा परंपराओं की सहज अभिव्यक्ति है। एक विस्तृत प्रसंग दो या चार पंक्तियों में स्पष्ट हो जाता है। मेरी दृष्टि में इस कार्य को महिला साहित्यकार निष्ठापूर्ण यदि करें तो समाज को महत्त्वपूर्ण योगदान वे देंगी। काव्यमयी ये लोकोक्तियां, मेरी बात का समर्थन करती हैं कि लेखन यदि स्वभाव बन जाए तो सतत प्रवाहमान रहता है सृजन। लोक मानस के सृजन स्वभाव का प्रमाण हैं ये मुहावरे तथा लोकोक्तियां।

-संगीताश्री, शिमला

लोकोक्ति का भावानुवाद

तुम्हारे पास दो साबुत पांव हैं/या एक अदद बैसाखी/क्या फर्क पड़ता है/रास्तों पर पांव नहीं चलते/बैसाखी भी नहीं/रास्तों पर/हौसला चलता है

उपरोक्त काव्यांश, निम्नलिखित कांगड़ा जनपदीय लोकोक्ति के भावानुवाद का विनम्र प्रयास है :

लट्टी जंग लटाका मारै/सुरगैं पाए फेरा

ए ही जंग सलामत रह खाणे जो बथेरा

-चंद्ररेखा ढडवाल


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App