कुल्लू में सियासी दलों और जनता को महिलाओं पर भरोसा ही नहीं
भुंतर— जिला कुल्लू की महिलाओं को यहां की जनता और राजनीतिक दलों का चुनाव में साथ नहीं मिलता है। कुल्लू की एक भी महिला अभी तक प्रदेश विधानसभा में नहीं पहुंच पाई है। हैरानी की बात है कि प्रदेश के दोनों राजनीतिक दलों ने कुल्लू की एक भी महिला को चुनाव में उतारने के काबिल ही नहीं समझा। लिहाजा पिछले दस चुनावों में कुल्लू जिला की विभिन्न विधानसभा सीटों के लिए 152 प्रत्याशियों ने चुनावी दंगल लड़े हैं तो केवल चार महिलाएं ही मैदान में उतरने की हिम्मत जुटा पाई हैं। देवभूमि कुल्लू की महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं, लेकिन राजनीति में ये फिसड्डी साबित हो रही हैं। चुनाव आयोग के रिकार्ड के अनुसार अब तक के इतिहास पर नजर डालें तो कुल्लू जिला के विधानसभा क्षेत्रों में केवल पुरुष उम्मीदवारों का ही दबदबा चुनावी दंगल में दिखा है। साल 2012 के चुनावों में 22 प्रत्याशियों ने कुल्लू जिला के चार हल्कों से चुनावों में किस्मत आजमाई, जिसमें दो महिलाएं प्रेमलता ठाकुर व सरिता देवी कुल्लू विस क्षेत्र से मैदान में उतरी थीं। प्रेमलता ने 7256 वोट हासिल कर संघर्ष जरूर किया, लेकिन कामयाबी की दहलीज तक नहीं पहुंच पाई। वर्ष 2007 के चुनावों में 14 प्रत्याशी मैदान में उतरे थे, लेकिन केवल एक महिला उम्मीदवार रामेश्वरी शर्मा ही मैदान में उतरने की हिम्मत जुटा पाईं। साल 2003 में 18 और 1998 में 14 उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन एक भी महिला इसमें शामिल नहीं थी। वर्ष 1993 के चुनावों में 19 कैंडीडेट विभिन्न पार्टियों और आजाद प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे, लेकिन एक भी महिला उम्मीदवार को न तो किसी पार्टी ने तरजीह दी और न ही आजाद के तौर पर उतरी। वर्ष 1990 में 15 प्रत्याशी व 1985 में दस उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन इस बार भी महिला उम्मीदवारों के लिए एंट्री बंद रही। वर्ष 1977 के चुनावों में 16 उम्मीदवार कुल्लू की तीन विधानसभा सीट के लिए मैदान में थे, लेकिन इसमें केवल एक महिला उम्मीदवार मैदान में थी। आनी से जेएनपी ने शारदा देवी को मैदान में उतारा था, लेकिन महज 1087 मतों से चुनाव हार गईं और विधानसभा में पहुंचने की उम्मीद अधूरी रह गई। वर्ष 1972 में 16 व 1967 में आठ प्रत्याशी मैदान में थे, लेकिन महिला मैदान में नहीं थी। बहरहाल, कुल्लू की महिलाओं को चुनाव में उतारने का साहस न राजनीतिक दलों में है और न यहां की जनता को इन पर भरोसा है।
रास नहीं आ रही सियासत
पिछले दस चुनावों में जिला के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों के लिए 152 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे, जिसमें से सिर्फ चार महिलाओं ने ही सियासत के मैदान में कदम रखा। बाकी महिलाएं राजनीति में हाथ आजमाने के लिए आगे नहीं आईं। जिला की नारी शक्ति वैसे तो हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही है, मगर सियासत उनको रास नहीं आ रही।
चार ने आजमाया भाग्य
वर्ष प्रत्याशी महिलाएं
2012 22 02
2007 14 01
2003 18 00
1998 14 00
1993 19 00
1990 15 00
1985 10 00
1977 16 01
1972 16 00
1967 08 00
इन्होंने किया संघर्ष
साल 2012 में दो नेत्रियों प्रेमलता ठाकुर व सरिता देवी ने कुल्लू हलके से भाग्य आजमाया था, जिसमें प्रेमलता ने 7256 वोट हासिल कर संघर्ष जरूर किया, लेकिन कामयाब नहीं हो पाई। वर्ष 2007 में सिर्फ रामेश्वरी शर्मा ने ही चुनाव मैदान में उतरने की हिम्मत जुटाई। इससे पहले वर्ष 1977 में आनी से जेएनपी ने शारदा देवी को मैदान में उतारा था, जो कि 1087 मतों से चुनाव हार गई थीं।
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