खलती हैं आकाशवाणी की खामियां

By: Oct 3rd, 2017 12:05 am

कश्मीरी लाल कश्मीरी लाल नोते लेखक, शिमला से हैं

आकाशवाणी, खासकर आकाशवाणी शिमला, भारत सरकार के प्रसार भारती विभाग के अधीन एक पुराना और अत्यंत लोकप्रिय केंद्र है। यह सरकारी अदारा सुबह 5ः55 बजे से शुरू होकर रात के 11ः10 बजे तक मीडियम, शॉर्ट और एफएम बेतार तरंगों पर उत्तरी भारत के लाखों शौकीन श्रोताओं को देश-विदेश की विस्तृत खबरों व हालात-ए-हाजिरा, स्थानीय खबरों के साथ-साथ क्षेत्रीय/पहाड़ी गायन/संगीत बारे प्राप्त फरमाइशों के अनुसार गीत, गजलें, भजन, शब्द, ‘महिला जगत’, और कृषक समुदाय के मतलब की खेती-बाड़ी बारे जानकारी प्रसारित करता है। यह केंद्र दिन-रात के 24 घंटों में विभिन्न चैनलों पर लगभग 36 घंटों के बराबर कार्यक्रम हफ्ते के सातों दिन व वर्ष के तीन सौ पैंसठ दिन बराबर प्रसारित करता आ रहा है। जाहिर है कि इतने व्यस्त प्रसारण में अधिकारीगण द्वारा ब्रॉडकास्टिंग की गुणवत्ता बारे पूरा-पूरा ध्यान दिया जाता है। इसके बावजूद छोटी-मोटी त्रुटियां रह जाने की गुंजाइश बराबर रहेगी। आजकल हर सरकारी दफ्तर/अदारे में नियमित कर्मियों की संख्या को घटाकर अनियमित मुलाजिमों द्वारा सस्ते में काम चलाने के दौर में संस्थान के कामकाज में गुणवत्ता के प्रभावित होने की संभावना बढ़ गई है। अतः मैं आकाशवाणी शिमला के प्रसारणों व कार्यक्रमों को बड़े चाव व गौर से सुनते हुए यहां की ब्रॉडकास्टिंग के गुण-दोषों के बारे में विचार करता रहा हूं। उन पहलुओं से मैं संस्थान को भी वाकिफ करवाता रहा हूं। एक ज्यादा खटकने वाली त्रुटि और उसके निवारणार्थ सुझाव प्रस्तुत करने के लिए मैं 16 अक्तूबर, 2015 को आकाशवाणी शिमला के चौड़ा मैदान स्थित स्टेशन पहुंच गया था। आकाशवाणी के आम केंद्रों, खासकर शिमला, जो कि विभिन्न जन कल्याणकारी प्रसारणों के साथ-साथ बहुत सारे सरकारी व निजी इश्तिहारों समेत देश के अन्य समानांतर प्रसार भारती केंद्रों के प्रसारण बारे ये सुझाव मददगार साबित हो सकते हैं। इनमें से कुछेक इस प्रकार हैं-

(1) महिला उद्घोषकों का ‘दोस्त’ बनना और ‘प्यार भरा’ अभिवादन कहना- आकाशवाणी शिमला की महिला उद्घोषकों का श्रोताओं के सम्मुख ‘दोस्त’ बन कर प्रस्तुत होना इसलिए अटपटा लगता है, क्योंकि भारत/एशिया की पितृसत्ता वाली संस्कृति में ‘दोस्त’ शब्द का सीधा-सीधा अर्थ ‘प्रेमी’ होता है। मैंने अपने इस संशय को प्रकट करने के लिए केंद्र के पूर्व निदेशक देवेंद्र सिंह जोहल से वर्ष 2015 में मुलाकात यह सुझाने के लिए की थी कि आकाशवाणी के केंद्रों में कार्यरत महिला उद्घोषक अपने व्यावसायिक रुतबे को बतौर ‘दोस्त’ बताने के बजाय ‘एंकर’, ‘होस्ट’, ‘मेजबान’ इत्यादि कहें। ये अभिवादन को ‘प्यार भरा के बजाय’ साधारण शब्द ‘सस्नेह’ या ‘स्नेहमयी’ कहें, तो ज्यादा शोभनीय रहेगा। तब जोहल साहब ने मेरी असहमतियों को सोच की संकीर्णता बताते हुए स्पष्टीकरण दिया था कि आकाशवाणी के नियंत्रक विभाग प्रसार भारती ने सन् 1996 में व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के मद्देनजर महिला उद्घोषकों को ‘दोस्त’ बनने/बनाने के लिए स्वीकृति दे रखी है। अतः महिला उद्घोषकों द्वारा श्रोताओं के साथ उनके वार्तालाप के लिए परिचय देते हुए अपने लिए विशेषण शब्द ‘दोस्त’ और अभिवादन में ‘प्यार भरा’ शब्दों के उपयोग को जायज बताया था।

(2) किसी एक आइटम विशेष का बारंबार प्रसारण-किसी एक ही आइटम का आकाशवाणी के किसी भी केंद्र से किसी एक दिन में बारंबार प्रसारण भद्दा सा लगता है। उदाहरणार्थ सन् 2014 के अगस्त महीने में आकाशवाणी शिमला से रक्षाबंधन वाले दिन, ‘भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना’, फिल्मी गीत को छह बार बजाया गया था। मेरा सुझाव सदैव यही रहा है कि आकाशवाणी के केंद्रों से इस प्रकार की गलतियों से बचा जाए।

(3) प्रसारणिक उच्चारण में अनुनासिक उच्चारण की बहुतायत-दूसरी आम उच्चारणिक विकृति श्रोता मंडली का ध्यान आकर्षित करने के लिए सादा-सही शब्द ‘श्रोताओ’ को बिगाड़ कर ‘श्रोताओं’ कह कर संबोधित करना है। सारी श्रोता मंडली का ध्यान आकर्षित करने के लिए अनुनासिक लहजे के बजाय सादा शब्द ‘श्रोताओ!’ कहकर पुकारना उपयुक्त है, पर अनुनासिकता वाला ‘श्रोताओं!’ पुकारना गलत है।

(4) ‘है’ और ‘हे’ का अंतर-आकाशवाणी शिमला के एक उद्घोषक अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए हैं। यह श्रीमान एक खास शब्द ‘है’ को गलत ‘हे’ कह जाते हैं। जैसे ‘यह आकाशवाणी शिमला हे’, जबकि सही उच्चारण ‘यह आकाशवाणी शिमला है’ होना चाहिए।

(5) उद्घोषणा में फिजूल के विराम व झटके-आकाशवाणी शिमला के एक अन्य पुरुष उद्घोषक की अपनी उच्चारणिक पहचान अलग ही है। यह महाशय किसी भी वार्ता को पढ़ते समय सारे लेखन को दो-दो शब्दों के जोड़ों में बांटते हुए हर दो शब्दों की जोड़ी को पढ़ने के बाद गैर जरूरी विराम लेते हैं। जैसे कि ‘अब आप’/ ‘आकाशवाणी-शिमला से’ / ‘अनंतराम शर्मा (कल्पित नाम)’ से / ‘खेतीबाड़ी संबंधी’/ वार्ता सुनिए। यह तरीका भी सही नहीं है।

(6) तकिया कलाम-जब-जब हमारी सोच और वार्ता उच्चारण में ठीक तालमेल नहीं बैठता, तब तब हम तकिया कलाम का सहारा लेते हैं। आकाशवाणी शिमला के एक कृषि प्रोग्राम वाचक अपनी वार्ता के हर वाक्य के शुरू में, ‘अगर हम बात करें’, शब्दों को बतौर ‘तकिया कलाम’ बार-बार प्रयोग किए जाते हैं। क्या ही अच्छा हो कि अपने तकिया कलाम में ये महोदय थोड़ा फेर-बदल लाएं और कहें कि ‘अब हम’ या ‘लीजिए’ या ‘आइए अब हम’ इत्यादि। तकिया कलाम का असीमित/अनियमित उपयोग उद्घोषक की खामियों को उजागर करता है।

(7) लाइव फोनिंग द्वारा जन कल्याण व जानकारी का आदान-प्रदान-आकाशवाणी शिमला और प्रसार भारती के अन्य केंद्र जनकल्याण के लिए श्रोताओं में जानकारी और संभव जागरूकता के लिए लाइव फोनिंग पद्धति चालू किए हुए हैं। यह केंद्र अपने प्रसारणों को जनहित से कहीं अधिक इश्तिहारों के ज्यादा से ज्यादा कमाई के लालच में अविरल चलता रखने के लिए लाइव फोनिंग पद्धति में कुछ समय मनोरंजन के लिए भी निर्धारित रखते हैं। इच्छुक श्रोता को आकाशवाणी के निर्धारित लैंडलाइन फोन जैसे शिमला में 0177-2808034 या 2808067/2808152 मिलाकर अपनी समस्या, जिज्ञासा या फरमाइश बतानी होती है। इस पद्धति द्वारा ‘रेडियो डाक्टर’ जैसे विषयों को आम तौर पर केंद्र के सीनियर एंकर तो सुचारू ढंग से संचालित करते हैं, पर नई-नई महिला उद्घोषकों के जिम्मे रहने के कारण इनमें सुधार की जरूरत महसूस की जाती है।


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