खुद को खुद की नजर से देखा जाए

By: Oct 15th, 2017 12:05 am

घर, परिवार समाज और परिवेश प्रोत्साहित ही करता है, आंतरिक आत्मविश्वास और संबल माता-पिता से प्राप्त होता है। रिश्तों और दोस्ती में नकारात्मक लोगों को हटाना प्रत्येक स्त्री को आना चाहिए। अवांछनीय खरपतवार को हटाकर जीवन की क्यारी को सुंदर बनाना, यह कलात्मकता न केवल लेखन अपितु प्रत्येक खुशमिजाज स्त्री के लिए जरूरी है। हर लेखिका अपने परिवेश को देर-सवेर अपने लेखन के अनुकूल बना लेती है, लेखन के लिए कम समय मिलने की शिकायत हम हर समय नहीं कर सकते। समय को साधना हर लेखिका के लिए दुरूह कार्य है, परंतु आर्थिक स्वावलंबन से उसे चुनौतियों का मुकाबला करने का आत्मबल भी मिलता है। आत्मनिर्भर स्त्री पर परिवार का ज्यादा दबाव नहीं रहता। वह निर्णय लेने का भी हौसला रखती है। अनुष्ठान, संस्कार, लोक गीत गाथाएं मानव उत्थान में महत्ती भूमिका निभाते हैं, मनुष्य की कमजोरी पर प्रहार करते हैं, उसे उत्कृष्ट होने में सहयोग करते हैं। पर पूरी दुनिया में स्त्री को दोयम दर्जे का समझा गया, तो कहीं न कहीं संस्कार स्त्री की क्षमताओं को बांधते भी हैं। कई बार अनुष्ठान, संस्कार गीत उसे रूढि़यों की ओर भी धकेलते हैं, जैसे पूजा, सत्संग, व्रत। उसे सामान्य इनसान नहीं होने दिया जाता। एक देवी होने के लिए प्रेरित भी किया जाता है। साहित्य जिसका सृजन समाज के बौद्धिक व्यक्ति करते हैं, उसका उद्देश्य नर को श्रेष्ठ बनाना रहा, क्योंकि अधिकतर पुरुष ने उसे रचा, किंतु जिन गीतों, जिन गाथाओं की रचना स्त्री ने की उसमें उसने अपने लिए विद्रोह गढ़ा। विद्रोह शोषित वर्ग करता है, विरोध का यह स्वर आक्रोश बनकर उभरता है। किसी क्षेत्र के धार्मिक अनुष्ठान मात्र से उस क्षेत्र की स्त्री की सामाजिक हैसियत का अनुमान लगाया जा सकता है। बेशक वे हमारे इतिहास का बहुमूल्य हिस्सा हैं, किंतु यदि नई पीढ़ी उनसे नजर चुराती है, तो यह अकारण नहीं है और भविष्य में नए संस्कार, नई गाथाओं, नए गीतों का बनना जारी रहेगा, यह प्रकृति का नवीनीकरण चक्र है। स्त्री विमर्श का एक हौवा खड़ा कर दिया गया है कि इसके द्वारा स्त्री पुरुष से श्रेष्ठ होना चाहती है या कि वह यौनिक स्वतंत्रता चाहती है। देह का खुलापन इसका मंतव्य है, जबकि यह एक सामान्य व्यावहारिक ज्ञान है कि एक स्त्री ही यह बेहतर जानती है कि वह क्या चाहती है और यह बात वही बता भी सकती है। उसे स्त्री विमर्श कहकर साहित्य की मुख्यधारा से विलग करना एक साजिश है। यदि पुरुष का लिखा पुरुष लेखन के दायरे में नहीं बंधता तो स्त्री लेखन या विमर्श केवल स्त्री के लिए है, यह सोचना संकीर्णता है। अतः यही सही है कि इस विमर्श और चिंतन को सामाजिक विकास की कोशिश के रूप में देखा जाए। जरूरी नहीं कि पुरुष, स्त्री के विरोध में ही लिखें और स्त्री हमेशा हक में ही लिखे। उदाहरण के लिए कुछ स्त्रियां घोर रूढि़वादी और स्त्रीविरोधी होती हैं। वे भ्रूण हत्या को प्रोत्साहित कर सकती हैं। जबकि कोई पुरुष उदारवादी हो सकता है। समाज को स्त्री-पुरुष दोनों की जरूरत है, सामाजिक संतुलन बनाए रखने के लिए। स्त्री के विषय में स्त्री के द्वारा बात होना जरूरी है, किंतु उसे दायरे में सीमित नहीं किया जा सकता, दायरे तोड़े जाने की जरूरत है। उसकी समस्या को पीडि़त की समस्या समझा जाए, केवल स्त्री की नहीं। भोगे हुए व देखे-समझे हुए को ईमानदारी से निर्द्वंद्व होकर कहने में कोई संकोच नहीं है। पंजाबी की एक कहावत है, ‘जिन्ने लाई लोई, कि करेगा कोई’ यानि जो अपना कंबल उतार दे, उसका कोई क्या बिगाड़ेगा। यदि हमें निर्भय होना है, अर्थात साहसी होना है तो अपने जीवन के सत्य को स्वीकारना होगा और स्त्री को बिना शर्म व बिना झिझक अपने अस्तित्त्व को समझना चाहिए। हमें समाज की नहीं, खुद को खुद की नजर से देखा जाना आना चाहिए। और समाज को निडर होकर देखना चाहिए। एक लेखक उम्र के साथ बढ़ता है, उसकी दृष्टि उम्र के साथ परिपक्व होती जाती है। इसलिए उसे संकोच रहित होना चाहिए। सीखने की प्रक्रिया में लाज की बाधा क्यों। लेखकीय ईमानदारी बहुत जरूरी है, क्योंकि पाठक बहुत चतुर हैं आजकल। यदि आप लाग-लपेट से लिखेंगे तो उसकी कोई कीमत नहीं होगी, आपका झूठ पकड़ा जाएगा। साहित्यकार समाज का चिकित्सक भी है, उसे कई रोगों का इलाज करना होता है। जिस तरह चिकित्सक का रोग से आंख चुराना गलत है, लेखक का समाज की सच्चाई से आंख चुराना भयंकर चूक है। जैसे हैं वैसे दिखने में कोई हर्ज नहीं और वैसा लिख्रने में भी नहीं। यदि सच लिखने में झिझकते हैं तो क्या जरूरी है कि हम लिखें ही?

               -शैली किरण, धनेटा

परिचय

* नाम : शैली किरण

* लेखन : कविता, कहानी तथा निबंध प्रांतीय व राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित

* रचनाएं अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुई हैं

* संपादित संकलनों में हिंदी व पहाड़ी की कविताएं संग्रहित हैं

* हास्य व व्यंग्यात्मक पहाड़ी कविता के क्षेत्र में विशेष स्थान

* मंचीय प्रस्तुतियों में अत्यंत सशक्त व प्रभावी

* शैल सूत्र पत्रिका का संपादन, महत्त्वपूर्ण कार्य


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