चक्रव्यूह भेद कर रास्ते तलाशने होंगे

By: Oct 8th, 2017 12:05 am

निजी अनुभव के आधार पर कहना चाहूंगी कि घर, परिवार एवं समाज वर्तमान बदलती परिस्थितियों एवं प्रगतिशील जागरूक सोच के चलते महिलाओं के लेखन के संग-संग चलते प्रोत्साहित करता है। विषय में गहरी घुसपैठ, समय से लड़ने का हौसला, शिल्प रचाव का धैर्य, रचना की सधी हुई कद-काठी, भीतरी कसाव-सह संयोजन, कुछ अलग से सीखने, चुनने व बुनने की बेचैन लगावट- सब कुछ घर-परिवार एवं समाज में रचते-बसते हुए मेरे भीतर के रचनाकार को हस्तगत होता है। परंतु मुझे यह कहने में भी संकोच नहीं कि बहुधा परिवारों में घर की चार-दीवारी के भीतर महिला लेखन को जबरन दबाने की साजिशें रची जाती हैं।

हिमाचल के परिदृश्य में पुरुष लेखकों की तुलना में महिला लेखकों को अंगुलियों पर गिना जा सकता है। जैसा कि हिमाचली भाषा, संस्कृति एवं कला विभाग में महिलाओं का नामांकन न के बराबर है। जन भावनाओं के उद्घाटन में अंचल विशेष की लोक संस्कृति एवं लोक संस्कृति की धारणाओं, विचारणाओं एवं संवेदनाओं को संगीत के महीन धागे से बारीक बुनते हुए लोक गायकों की भूमिका अत्यंत अहम एवं प्रशंसनीय रहती है। चरित्र परिष्कार करते हुए विकृतियों एवं भटकाव से बचाव का सशक्त माध्यम हैं ये गीत, लोक जीवन की भावनाओं को संप्रेषित करते हुए परस्पर जोड़ने वाले सेतु हैं ये गीत। इनमें शताब्दियों पुराने अनुभवों की थाती समाई हुई है, जिसका लाभ भटकती युवा पीढ़ी को मिलना ही चाहिए। प्रत्येक लेखक के सोचने का अपना-अपना नजरिया है। अपने परिवेश से उपलब्ध सच्चाइयों एवं तथ्यों को अपनी बुद्धिक्षमता की हैसियत के अनुसार अर्जित करना चाहेगा। मेरे भीतर का लेखक भावात्मक स्तर पर जो भोग रहा है, दुनियावी हलचलों के मध्य अनुभवों की थाती संग्रहित कर रहा है, उनको बेबाकी से, निडरता से संप्रेषित करने के प्रति समर्पित है। इस लेखक की जवाबदेही अपने समाज, अपने परिवेश से है तो किसी किस्म का दबाव या संकोच लेखन पर हावी नहीं है। आधुनिक युग गहन बदलावों का युग है। अन्य विमर्शों की भांति स्त्री विमर्श अति महत्त्वपूर्ण विचारोत्तेजक बहस का विषय है। आज स्त्री शोषण, स्त्री का संघर्ष, परंपरा मुक्ति, घरेलू हिंसा, बेटा-बेटी में भेदभाव, दहेज की सौदेबाजी, भ्रूणहत्या, ऑनर किलिंग, कार्यस्थलों पर उत्पीड़न, बलात्कार, पहचान का संकट-सब कुछ सभ्य समाज के समक्ष चिंता का विषय है। मेरी सोच यह है कि हमारे पुरुष प्रधान समाज ने रूढि़यों की बनावट अपनी सुविधा हेतु नारी शोषण के महीन धागे से बुन ली है। भारत के अति दुर्गम प्रदेशों, पिछड़े अंचलों में तो नारी प्रताड़ना का रूप अति भयावह है, जो कभी भी अखबारों की सुर्खियां नहीं बन पाते। यहां स्त्री को भेड़ों की भांति बाड़े में जमा करने का शौक है-खुलेआम क्रय-विक्रय, चुड़ैल घोषित कर पेड़ से बांधकर पीटना-जब तब पशु  सरीखा व्यवहार- सब दृश्य नारी सशक्तिकरण के बुलंद दावों को हैरान-परेशान कर रहे हैं। जितना मर्जी हम सभ्य सामाजिक एक-दूसरे को थपथपा लें, पर कड़वा सच यही है कि विवाह एक तरह से लड़की के लिए मायके से उखड़ना और ससुराल में शरणार्थी प्रवृत्ति है। पिछले दरवाजे किताबों में खुले, पर व्यवहार में जोरों से बंद। अब आत्म-सम्मान का झंडा गाड़े तो कहां गाड़ें? प्रायः कहा जाता है कि देर-सवेर लड़की घर से बाहर रहे तो सुरक्षित नहीं। भेडि़ए झपट पड़ेंगे। पर सरकारी आंकड़े कहते हैं कि लड़की की इज्जत पर होने वाले हमलों का 90 प्रतिशत घर-परिवार व परिचितों का है। लड़की सभ्य समाज के लिए  महज एक गुब्बारा है, जिसे हर कोई अपनी सुविधा के लिए भावात्मक एवं पारंपरिक हवाओं से फुलाए रखना चाहता है। यह कभी हो नहीं सकता कि नारी पर चर्चा हो और ‘यत्र नारी पूजयंते रमंते तत्र देवता’ का बिगुल न बजाया जाए। इन प्रणालियों से तथाकथित आधुनिक समाज नारी को न सुरक्षा व स्वाभिमान दे पाया है, न ही स्वयं को आत्मसंतोष। नारी की आजादी का सफर नारी उद्धार की व्यापक हलचलों से प्रारंभ होकर नारी सशक्तिकरण की मंजिल तक पहुंचने का राग अलाप रहा है, पर किसी भी भारी बदलाव हेतु अनेक बलिदानों की आहुति आवश्यक है। शोषित व वंचिता नारी की चिंता के आलोक में यदि नारी सशक्तिकरण को मूर्त करना है तो हर तरीके में अनेक क्रांतियां करनी होंगी। सबसे बढ़कर समाज को कागजी नहीं, व्यावहारिक बनना होगा। शोषिता को खुद भी हर चक्रव्यूह भेदना होगा, निकलने को रास्ते तलाशने होंगे। करो या मरो का जेहादी नारा बुलंद करना होगा।

-डा. आशु फुल्ल पालमपुर

परिचय

* नाम : डा. आशु फुल्ल

* प्रकाशित पुस्तकें : हिमाचल के हिंदी उपन्यास में नारी परिवेश का चित्रण (शोध प्रबंध), महादेवी वर्मा : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, कहानीकार प्रेमचंद, हिमाचल की हिंदी कविता, साहित्यिक निबंध (सह-संपादन), हिंदी के शब्द शिल्पी (सह-लेखन), हिंदी साहित्य का सुबोध इतिहास (सह लेखन)

* समीक्षाएं : तीन दर्जन से अधिक शोध एवं आलोचनात्मक लेख तथा पुस्तक समीक्षाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित

* पुरस्कार : पत्रिका संपादन में विशेष सम्मान से अलंकृत


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